पटना ।। बुधवार को जैव-विविधता का अन्तर्राष्ट्रीय दिवस मनाया गया. जैव-विविधता से परिपूर्ण इस राज्य में जैव-विविधता की रक्षा करना सभी का दायित्व है.
इस अवसर पर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा प्रत्येक माह आयोजित किये जाने वाले वैज्ञानिक व्याख्यान सह-परस्पर संवादात्मक श्रृंखला की 23 वीं कड़ी में डॉ. डी.के. शुक्ला, अध्यक्ष, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद द्वारा “जैव-विविधता और पर्यावरणीय प्रदूषण नियंत्रण बिहार में अनिवार्यता और संभावनाएँ” (Biodiversity and Control & Mitigation of Environmental Pollution – Scope & Opportunities in Bihar) विषय पर अपना सारगर्भित व्याख्यान दिया गया.
डॉ. शुक्ला ने अपने सम्बोधन में बताया कि हमारे वनों में जैव विविधता का खजाना भरा पड़ा है.वैश्विक तापमान में वृद्धि से जंगलों में आग लगने की घटना में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है. बिहार राज्य में भी जैव-विविधता से परिपूर्ण कई वन हैं जिन्हें तापमान में वृद्धि के कारण आग से रक्षा हेतु एक रणनीति बनाने की आवश्यकता है. अग्नि प्रभावित वनों में जल व मृदा संरक्षण हेतु अग्नि शमन योजना बनाकर इस पर अमल किया जाना चाहिए. इस हेतु ड्रोन की सहायता से वायुमंडलीय आद्रता के सेंसरों से, नासा से प्राप्त सेटेलाईट डाटा से ऐसे अग्नि की घटनाओं का ब्यौरा प्राप्त कर इसके व्यवस्थित व स-समय शमन उपायों की योजना बनाये जाने की तत्काल आवश्यकता है. उन्होंने बताया कि संयुक्त वन प्रबंधन समिति तथा इको डेवलपमेंट समिति के सहयोग से वनों की अग्नि पर काबू पाया जा सकता है. उन्होंने बिहार राज्य को वन-अग्नि मुक्त राज्य बनाने हेतु प्रयास किये जाने की आवश्यकता बताई.
उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि जैव-विविधता, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. जलवायु परिवर्तन और प्राकृतवास के नुकसान के कारण जैव-विविधता पर आ रहा खतरा आज एक वैश्विक समस्या है.
पर्यावरणीय प्रदूषण के कारकों में कार्बन डाईऑक्साइड, अमोनिया, ओजोन PM2.5 एवं PM10 के अतिरिक्त सल्फर डायक्साइड एवं जलवाष्प भी शामिल हैं. हलांकि सल्फर डायऑक्साइड एक ग्रीन हाउस गैस नहीं है, पर एक खास एयरोसोल से जुड़कर यह भी ग्रीन हाउस गैस का प्रभाव डालते हैं. पृथ्वी को गर्म करने में जलवाष्प की भी भूमिका है. राज्य में नदियों एवं अन्य जल स्रोतों के प्रमुख प्रदूषकों में फीकल कॉलीफार्म की सांद्रता प्रमुख है. जल स्रोतों में नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की बढ़ती मात्रा एक गंभीर समस्या है जिसके कारण कुल इलाकों में कुल जल समिति (Water bodies) विलुप्त होने की कगार पर है, आज माइक्रोप्लास्टिक की गिनती एक प्रबल प्रदूषकों में की जा रही है. यह हमारे भोजन श्रृंखला में शामिल होकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का प्रमुख कारक बन सकता है.
राज्य पर्षद की पहल पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पर्यावरण में माइक्रो प्लास्टिक पर अध्ययन कराने व भोजन श्रृंखला में इसकी मात्रा निर्धारित कराने हेतु राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षदों को इसकी जिम्मेवारी देने हेतु सहमति प्रदान की गई है.
इसके अतिरिक्त अर्सेनिक लेड, कैडमियम जैसी भारी धातुएं भी हमारे भोजन श्रंखला में आ रही हैं जो एक गंभीर समस्या का विषय है. मृदा प्रदूषण भी एक समस्या के रूप में सामने आ रहा है इसके माध्यम से भी हमारे भोजन श्रृंखला में रासायनिक खाद, कीटनाशक, थैलेट्स आदि शामिल हो रहे है. डॉ. शुक्ला ने राज्य में आम, जामुन, पीपल, शीशम की प्रजातियों पर राज्य की मृदा के संदर्भ में चर्चा करते हुए बताया कि इनकी कई प्रजातियां के संरक्षण पर सरकार संवेदनशील एवं क्रियाशील है.
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