नई दिल्ली (ब्यूरो रिपोर्ट) | संकेत तो महीनों से थे, लेकिन अंततः मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के सत्तारूढ़ गठबंधन ख़त्म हो गया क्योंकि भाजपा ने मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से समर्थन वापस ले लिया. इसके साथ ही कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.
खराब सुरक्षा और राज्य के जम्मू और लद्दाख के हिस्सों में “भेदभाव” जैसे कारणों का जिक्र करते हुए बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव ने कहा, “कश्मीर में पीडीपी सरकार के साथ गठबंधन जारी रखना मुश्किल हो गया था. कश्मीर में शांति बहाल करने और जम्मू-कश्मीर में तेजी से विकास को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से हम पीडीपी के साथ सरकार बनाने में शामिल हुए थे. मोदी सरकार द्वारा राज्य के विकास के लिए जो कुछ भी जरुरी था, वो सब किया गया. कश्मीर घाटी में आतंकवाद, हिंसा और कट्टरपंथीकरण बढ़े हैं और नागरिकों के मौलिक अधिकार खतरे में हैं. केंद्र सरकार से समर्थन के बावजूद, पीडीपी स्थिति को नियंत्रित करने में असफल रहा. भारत की अखंडता के बड़े हित को ध्यान में रखते हुए और राज्य में खराब स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए जम्मू-कश्मीर के गवर्नर को शासन सौपना ही उपयुक्त होगा, ” राम माधव ने कहा.
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के 87 सीटों में बीजेपी के 25 विधायक हैं जबकि पीडीपी के 28 है। विधानसभा में कांग्रेस के 14, एनसी 15 सदस्य हैं.
रमजान के ख़त्म होते ही ईद के दूसरे दिन महीनेभर से घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ जारी सीजफायर को ख़त्म करने के केंद्र के फैसले पर पीडीपी नाखुश थी. मेहबूबा मुफ्ती चाहती थी कि सीजफायर बढ़ाया जाए, जबकि केंद्र ने घाटी की स्थिति को देखते हुए इसके खिलाफ फैसला लिया.
कहा जाता है कि अनुभवी पत्रकार शुजात बुखारी की क्रूर हत्या और सेना जवान औरंगजेब के अपहरण व हत्या ने केंद्र को यह निर्णय लेने को प्रेरित किया.
ट्वीट्स की एक श्रृंखला में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की कि कश्मीर में सुरक्षा बलों को संचालन शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं.