लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए बड़ी चेतावनी
लोकसभा चुनाव परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चेतावनी है. मतदाताओं ने इस बार उसे सिर्फ हड़का कर छोड़ दिया है. अगर इसपर भी वह नहीं चेतती है और पार्टी तथा सरकार की कार्यशैली में बदलाव नहीं आता है तो अगली बार उसे विपक्ष में बैठने को तैयार रहना चाहिए. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी सार्वजनिक रूप से मोदी सरकार के कामकाज और व्यवहार से अप्रसन्नता व्यक्त कर उसे सुधरने की नसीहत दी है. हर काम का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी द्वारा खुद लेने को भी उन्होंने अच्छा नहीं माना है. मणिपुर में एक साल से जारी हिंसा पर केंद्र की उदासीनता पर भी संघ प्रमुख ने केंद्र सरकार को आड़े हाथ लिया है.
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बेशक मोदी सरकार ने अनेक ऐतिहासिक काम किये जो आजादी के तुरंत बाद होने चाहिए थे. देश की आर्थिक स्थिति सुधरी है. विश्व में देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है. भ्रष्टाचार मुक्त सरकार दिया है. आतंकी कार्रवाईयां और नक्सली हिंसा पर करीब करीब काबू पा लिया गया है. डिजर्विंग व्यक्तियों के चयन से पद्म सम्मान का ‘सम्मान’ बढ़ा है. हर घर शौचालय और स्वच्छता के प्रति जागरूकता की दिशा में सराहनीय कार्य हुए हैं और भी कई अच्छे काम हुए हैं. इसके बाद भी जनता ने इस सरकार को अपेक्षित समर्थन क्यों नहीं दिया, इस पर गहन चिंतन की जरुरत है.
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खुद प्रधानमंत्री मोदी की काशी से एक लाख 52 हज़ार वोटों से जीत यह दर्शाती है कि वहां के वोटर भी उनसे खुश नहीं हैं. काशी के लिए इतना काम करने के बाद भी मोदी के वोट क्यों घटे ? इस पर खुद मोदी जी को विचार करना चाहिए.
अयोध्या की हार भाजपा के मुंह पर एक बड़ा तमाचा है. कहां चूक हुई ? वहां के मतदाता क्यों मुंह फेर लिए ? ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ का नारा क्यों हवा में उड़ गया ? ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ और ‘पन्ना प्रमुख’ की परिकल्पना क्यों नाकाम रही? पार्टी को इस पर विचार करना चाहिए.
अच्छा काम और मजबूत नेता की छवि के बाद भी यूपी में भाजपा के औंधे मुंह गिरने के पीछे क्या पार्टी के अंदर की गुटबाजी जिम्मेवार है ? पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है लेकिन यह चर्चा आम है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बढ़ते कद को छोटा करने के लिए साजिश के तहत कमजोर और बदनाम उम्मीदवार दिए गए ? अगर ऐसा हुआ है तो फिर भाजपा का पतन तय है। यह भी लांक्षन लग रहा है कि भाजपा का कांग्रेसी करण होता जा रहा है.
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भाजपा का केंद्रीकरण और उसके नेताओं की आत्ममुग्धता उसके लिए घातक हुई. मोदी ने अपने मंत्रियों को उभरने नहीं दिया. हर जगह वे ही वे नजर आए. मंत्रियों की हैसियत सहयोगियों की नहीं सहायक की कर दी गई थी. इस ओर संघ प्रमुख ने भी इशारा किया है. हालांकि यह भी सही है कि हमारा देश व्यक्ति पूजक है, समाज पूजक नहीं. इस वजह से मोदी का एकछत्र नेता के रूप में खुद को स्थापित करना भाजपा के लिए लाभदायक भी रहा. व्यक्ति पूजा के कारण ही नेहरू वंश इतने वर्षों तक सत्ता पर एकाधिकार बनाए रखने में सफल रहा. मोदी ने उसी के अस्त्र से उसे धराशाई किया. लेकिन वह अस्त्र भोथरा हो रहा है.
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अपने भाषणों में अन्य नेताओं की तरह कई बार मोदी ने भी मर्यादाएं लांघी, जिसे लोगों ने पसंद नहीं किया. यह याद रखना होगा की अपने ऊटपटांग भाषणों के चलते ही राहुल गांधी को ‘पप्पू’ की संज्ञा से विभूषित किया गया था और उनके भाषणों के मीम बनते रहे हैं. प्रधानमंत्री समेत भाजपा के अनेक नेता भी कई बार वही गलती करते दिखे
बेरोजगारी, प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होना और अग्निवीर योजना से युवा वर्ग मोदी सरकार से उदासीन नजर आता है. वोटिंग के दिन वह घर बैठा रहा. वोट देने नहीं निकला.
वेतनभोगी मध्यम वर्ग की तरफ भाजपा सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. इसे यह वर्ग भी मुंह फुलाए हुए है. इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.
भाजपा विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के प्रचार का प्रभावी काट नहीं कर पाई. इससे भी उसे क्षति उठानी पड़ी.
पंडित नेहरू के लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने के रिकार्ड की बराबरी तो नरेंद्र मोदी ने कर ली, अगर उससे आगे निकलना है तो फीलगुड से बाहर निकल कर अपने अंदर झांकना होगा. कमजोर कड़ी की पहचान कर उसे सुदृढ़ करने की जरूरत है. संघ से अपने संबंधों को और प्रगाढ़ बनाना होगा तभी भाजपा अपनी बढ़त बनाए रख सकती है. देश को अभी मजबूत और राष्ट्रवादी सोच वाली सरकार की जरूरत है. इसलिए भाजपा को कुछ कड़े फैसले लेने होंगे
क्या भाजपा इसके लिए तैयार है?
प्रवीण बागी के सोशल मीडिया से साभार