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इसी मिट्टी ने किया था बिहार का निर्माण

By om prakash pandey Jan 25, 2020

आरा के चौंगाई के थे बिहार निर्माता डॉ सिन्हा मिट्टी के लाल बिहार निर्माता डॉ सच्चिदानंद सिन्हा

Patna now Special




आरा, 25 जनवरी. क्या आप जानते हैं कि बिहार के जनक शाहाबाद के ही थे. हैरत में पड़ने की जरूरत नही है यह सच है. पुरातन काल से इस मिट्टी ने एक से एक नामों को अपनी गोद मे पाला-पोसा है और उसे समय की मांग पर दुनिया के सामने लाया है. उनमे से एक है बिहार निर्माता डॉ सच्चिदानंद सिन्हा. आरा की मिट्टी में जन्मे डॉ सच्चिदानंद सिन्हा ने आरा का मान-सम्मान और गुमान साहित्यिक, सामाजिक और राजनैतिक पहलुओं से काफी बढ़ाया है. इतना ही नहीं इनकी अहम् भूमिका भारत के संविधान निर्माण में भी रही है. इनके व्यक्तित्व से आरा,बिहार और पूरा देश अपना सीना चौड़ा कर ये स्वीकारता है कि डॉ सिन्हा महान शख़्सियत में से एक थे. डॉ सिन्हा भारत के प्रसिद्ध सांसद,शिक्षाविद,अधिवक्ता तथा एक सफल पत्रकार थे. इनका योगदान बिहार को बंगाल से पृथक कर बिहार को एक अलग राज्य स्थापित करने में प्रमुख है. डॉ. सिन्हा प्रथम भारतीय थे जिन्हें एक प्रान्त का राज्यपाल और हॉउस लॉर्ड्स का सदस्य बनने का श्रेय प्राप्त है.

बंगाल से बिहार को पृथक कर बिहार को एक नया राज्य बनाने वाले व संविधान गठन सभा के प्रथम अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म 10 नवंबर 1871 को आरा में हुआ था. इनका परिवार शाहाबाद जिले के चौंगाई प्रखण्ड के मुरार गाँव में एक इज़्ज़तदार कायस्थ परिवार से संबंध रखता है. इनके पिता बक्सी शिव प्रसाद सिन्हा एक वरिष्ठ और अनुभवी अधिवक्ता थे. इनकी माता काफी अनुशासन प्रिय थी और साथ ही साथ डॉ सिन्हा को बहुमुखी प्रतिभा निखारने वाली एक मजबूत स्तम्भ थी. इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई थी. ये पढ़ने में काफी कुशाग्र बुद्धि वाले थे.

इनका दाखिला आरा जिला स्कूल में 1877 में हुआ और डॉ सिन्हा ने मैट्रिक की परीक्षा आरा जिला स्कूल से 1888 में पास की थी. मैट्रिक की परीक्षा अच्छे नंबर से पास करने के बाद इनका दाखिला पटना कॉलेज पटना में हुआ किन्तु वहां इनका मन पढाई में नहीं लगा. उसी समय इनका रुझान वकालत की तरफ बढ़ने लगा और इनकी इच्छा यही होती की ये इंग्लैंड जाकर बेरिस्टरी करें. वकालत के प्रति इनकी दिलचस्पी देख घर वालों ने अठारह साल की उम्र ही 26 दिसंबर 1889 को बेरिस्टर की पढाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया और डॉ. सिन्हा पहले बिहारी कायस्थ थे जो विदेश गए. वहां इनकी मुकालात मज़हरूल हक़ और अली इमाम से हुई. यह समय 1880 का था. इंग्लैंड से 1893 में स्वदेश वापस लौट कर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सालों तक प्रैटिक्स की.

1894 में सच्चिदानंद सिन्हा की मुलाकात जस्टिस खुदाबख्श खान से हुई. जस्टिस खुदाबख्श छपरा के थे. खुदाबख्श ने पटना में 29 अक्टूबर 1891 में खुदाबख्श लाइब्रेरी की बुनियाद रखी,जो भारत के सबसे प्राचीन पुस्तकालयों में से एक है. जब जस्टिस खुदाबख्श खान से सच्चिदानंद जुड़े उसके बाद बहुत सारे कामों में डॉ. सिन्हा उनकी मदद करते थे. जब जस्टिस खान का तबादला हो गया तो उनकी लाइब्रेरी का पूरी जिम्मेदारी सिन्हा ने अपने कंधों पर ले ली. उन्होंने 1894 से 1898 तक खुदाबख्श लाइब्रेरी के सेक्रेटरी की हैसियत से अपनी जिम्मेदारी को संभाला. कई समय बाद डॉ. सिन्हा ने अपनी पत्नी के नाम से ‘श्रीमती राधिका सिन्हा संस्थान एवं सच्चिदानन्द सिन्हा पुस्तकालय’ की स्थापना की जिसकी आज लोकप्रियता पटना में सिन्हा लाइब्रेरी से है.


बिहार को बंगाल से पृथक कर बिहार को स्वतंत्र राज्य में सम्मलित करने का श्रेय डॉ. सिन्हा का ही है. उन दिनों “द बिहार हेराल्ड ” अखबार था जिसके एडिटर गुरु प्रसाद सेन थे. 1894 में डॉ. सिन्हा ने एक अंग्रेजी अखबार ” द बिहार टाइम्स ” निकला जो 1906 के बाद “बिहारी ” के नाम से जाना गया. इसी जरिये उन्होनें अलग रियासत बिहार के लिए मुहिम छेड़ी ,उन्होंने सभी को बिहार के नाम पर एक होने की लगातार अपील की. इनके अथक प्रयास के बाद 19 जुलाई 1905 को बिहार बंगाल से पृथक हुआ.
जब संविधान की पहली बैठक हुई जिसमें कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य जे. बी. कृपलानी ने अस्थाई अध्यक्ष के लिए डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा के नाम का प्रस्ताव रखा जिसको आम सहमति से पारित किया गया. डॉ. सिन्हा काफी बुजुर्ग और तजुर्बे से परिपूर्ण थे. डॉ सिन्हा पहले और एक मात्र भारतीय थे जिसे सरकार में एक्जीक्यूटिव कौसिंलर के बतौर फाइनेंस मेंबर बनने का अवसर मिला था. अस्थाई अध्यक्ष चुने जाने पर उन्होंने अपने जीवन का सर्वोच्च सम्मान माना. जब संविधान की मूल प्रति तैयार हुई तब डॉ. सिन्हा की तबियत काफी ख़राब हो गई. तब उनके हस्ताक्षर के लिए मूल प्रति दिल्ली से विशेष विमान से डॉ. राजेंद्र प्रसाद पटना लाये. डॉ. राजेंद्र प्रसाद डॉ. सिन्हा को अपना गुरु मानते थे. 14 फरवरी 1950 को डॉ. सिन्हा ने संविधान की मूल प्रति पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सामने हस्ताक्षर किया. 6 मार्च 1950 को 79 साल की उम्र में डॉ. सिन्हा की मृत्यु हो गई.

1944 में डॉ. सिन्हा की दो किताबें प्रकाशित हुई –
1) Eminent bihar contemporaries
2) some eminent Indian contemporaries .

आरा से सावन कुमार की रिपोर्ट

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