patnanow ने बात की समाज के हर क्षेत्र से जुड़े लोगों से और जानने की कोशिश की ऐसे रिजल्ट के पीछे आखिर क्या वजह रही जिसने 8 लाख छात्रों का भविष्य अंधेरमय कर दिया.
कल दिन भर अपने बिहार से बच्चो के फोन आ रहे थे, कुछ शिक्षको ने भी कॉल किया था।
अब इस समस्या का समाधान मैं क्या दूँ, मेरी ही समझ मे नही आ रहा..!
बच्चो की यह चिन्ता कि, मेरे अंक कम क्यो आये या मैं बारहवीं की परीक्षा में पास क्यो नही कर पाया..?
शिक्षको की यह चिन्ता और साथ ही उचित आक्रोश भी कि, शिक्षण कार्य के लिए हमें समय ही कितना मिलता है, जो हम बच्चो को पूरे साल ठीक से पढ़ा सके..?
आज सुबह भी मैं देख रहा हूँ कि, राष्ट्रीय अखबारों में भी, प्रथम पृष्ठ पर ही, बिहार के शैक्षिक-सुनामी की चर्चा हो रखी है।
आज मैंने करीब सात-आठ अखबारों को बड़े ही ध्यान से पढ़ा है, कमोबेश सबमे केवल बच्चो की असफलता के मायने ही लिखे गए है, किसी भी अखबार में या टीवी चैनल में यह नही देख पा रहा हूँ कि, आखिर चूक कहाँ हुई, इस परिणाम को लेकर..!
परिणाम के साथ, अगर कारक तत्वो पर भी कहीं चर्चा होती दीखती, तो निश्चित ही यह सुखद होता..!
बार-बार शिक्षको पर यह आक्षेप लगा देना कि, उन्होंने बच्चो को पढ़ाया नही, शायद बहुत उचित नही लगता। गौर करना होगा कि, पूरे वर्ष इन शिक्षकों ने शैक्षिक कार्यो के अलावा, और भी कितने अलग कार्यो में संलिप्त रहे..?
जिस भी विद्यालयों के शिक्षक पूरे वर्ष, मुख्यतः शैक्षणिक कार्य मे भी संलिप्त रहे हो, उनके बच्चो का परिणाम निश्चित रूप से सुखद ही रहा होगा, बशर्ते कि, शिक्षक में शिक्षकीय-तत्व की उपस्थिति हो..!
अभी हाल में ही, CBSE के परीक्षा परिणामो पर भी नज़र दे, तो कम से कम शैक्षिक सुनामी ( जैसी उपमा दी गयी है) कि स्थिति नही दिखती है, शायद यह एक कारण हो कि, CBSE संचालित विद्यालयों में शिक्षको की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता हो या फिर, उन विद्यालयों के शिक्षको को शायद मतगणना, जनगणना या फिर विभिन्न सरकारी उत्तरदायी कार्यो के साथ ही मिड-डे मिल जैसी योजनाओं में नही संलिप्त किया जाता हो..!
मेरी धारणा गलत हो सकती है, इस मायने में कि, सरकारी विद्यालयों के शिक्षको की संलिप्तता शैक्षिक कार्यो से इतर भी कई अन्य कार्यो में होती है, इसी कारण से शायद वे बच्चो की पढ़ाई में अपना शत-प्रतिशत परिणाम नही ला पाते..!
मैने बहुत पहले भी अपने कई सेमिनारों और कार्यशालाओं में इस बात की बड़ी ही पुरजोर कोशिश की है कि, शैक्षिक व्यवस्था को चलाने के लिए, बड़े-बड़े भवन-प्रयोगशाला-बड़े मैदान से अधिक महत्वपूर्ण है, बच्चो में शिक्षा उतारने वाले, कारक-तत्व “शिक्षक” पर बड़ा निवेश किये जाए..!
अगर शिक्षक अपने “शिक्षकीय-तत्व” से आप्लावित नही रहेंगे तो, सारे बड़े भवन-प्रयोगशाला धरे के धरे ही रह जायेंगे।
हर व्यवस्था अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर तो बहुत ही भारी निवेश करने की पक्षधर होती है, पर शिक्षको पर निवेश करने में, सारे हाथों में थोड़ी कमी या तंगी का अहसास होते देख गया है।
क्षेत्र निजी हो या सरकारी, स्थिति कमोबेश सभी जगह एक ही है। सस्ते से सस्ते शिक्षक मिल जाये और अपने देश के स्वर्णिम भविष्य का जिम्मा उन्हें दे दिया जाता है।
मैंने पहले भी कहा है और लिखा भी है कि, कम से कम शिक्षको को “ठेकेदारी-प्रथा” से मुक्त करने की गहन आवश्यकता है। जिस राज्य के शिक्षको की नियुक्ति ही Contractual (ठेकेदारी) हो, उन शिक्षको से हम किस स्वर्णिमता की उम्मीद कर सकते है..?
अगर शिक्षको की नियुक्ति हो, तो पहले यह देखना आवश्यक है कि, क्या उनमें शिक्षकीय गुण है, या फिर क्या वे मानसिक रूप से तैयार है, एक शिक्षक की आत्मा को जीने के लिए..?
सारे क्षेत्रो में असफल होने के बाद, किसी भी जुगाड़ से शिक्षक बन जाना या सरकारी नियुक्ति के समय किसी भी मानदेय पर जॉइन कर लेना, निश्चित रूप से एक शैक्षिक आत्मा की हत्या ही मानी जायेगी।
शिक्षकों की नियुक्ति के बाद, सबसे महती कार्य होता है, उनकी शैक्षिक कुशलता को और निखारना, विभिन्न सेमिनारों और कार्यशालाओं में उनकी सहभागिता को भी सुनिश्चित करना।
यह कार्य नियोक्ता को बड़ी गम्भीरता से करनी चाहिए। शिक्षक को शिक्षक ही रहने दे, उन्हें अपने विभिन्न प्रकल्पों के एजेंट न बनने दे, उनकी क्षमता का पूरा सदुपयोग बच्चो के चारित्रिक और सांस्कृतिक निर्माण में हो, तभी हमारा सम्प्रभु राष्ट्र अपने स्वर्णिमता को परिभाषित कर पायेगा।
पिछले वर्ष, दिल्ली में आयोजित एक शैक्षिक सेमिनार में निमन्त्रित था, देश भर के करीब साढ़े चार सौ शिक्षको, प्राचार्यो और निदेशकों की सहभागिता हुई थी। इसी विषय पर मेरा सम्बोधन भी था। उसी वीडियो को मैंने यहाँ शेयर भी किया है।
हो सकता है, मेरे वैचारिक समझ से आपका मतैक्य नही हो, पर अपनी बातों को परोसने का अधिकार तो सभी को है, मित्रो..!
याद रखिये, शिक्षा से अधिक “शिक्षको” पर कार्य करने की आवश्यकता है, क्योंकि शिक्षक की गोद मे “निर्माण” और “विध्वंश” दोनों पलते हैं- -डॉ. अरूणोदय
Is Results ke baad out of Bihar bahut Kharab massage jayega ki is baar govt ne kafi strictly behave kiya to result kafi poor raha.sath hi yah Bhi darsata hai ki bachho Ka Palayan hua hai anya rajyo me for studying.
Teachers ki quality Bhi iski ek Wajah Ho Sakti hai.itni jyada salary hone Ka baad Bhi teacher Nitya agitation karte rahte hai.govt school se kafi better result private schools Ka aya hai.
But private school ki fees kafi Mahgi Hona Bhi ek Karan Ho sakta hai Kyo ki Har tabka high fees pay nahi Kar sakta- –रामलाल खेतान, BIA
निश्चित रूप से बिहार इंटरमीडिएट बोर्ड का रिजल्ट दुखद है।यह तब और दुखद लग सकता है जब इस रिजल्ट के कारणों में कापी जांचने की अनियमितता भी चर्चे में हो। लेकिन यदि वाकई परीक्षा में कड़ाई के कारण यह रिजल्ट है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।यह बहाना नहीं हो सकता कि पढ़ाई नहीं तो कड़ाई नहीं। आखिर कहीं से तो शुरुआत करेंगे,इस बार के रिजल्ट और परीक्षा में हुई कड़ाई से यह तो उम्मीद की जा सकती है कि अगले सत्र में शिक्षकों पर पढ़ाने और छात्रों पर पढ़ने काम दबाव बढ़ेगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी परीक्षा कार्यक्रम मतलब सिर्फ पास करना नहीं होता,आज हम देख रहे हैं शिक्षक के रूप में ऐसी ही डिग्री के बल पर ऐसे ऐसे लोग बहाल हैं जो कायदे से अपना नाम भी नहीं लिख सकते, क्या फायदा ऐसे इंटर पास की भीड़ बढ़ाने का। बेहतर है वैसे छात्र ही डिग्री लेकर सामने आएं जो वाकई डिजर्व करते हों- -डॉ विनोद अनुपम
मैट्रिक पास होने के बाद बड़े बड़े संस्थानों में दाखिला ले लेते है।सारा ध्यान इंजीनियर और मेडिकल की तैयारी में लगा देते है।इन्हें इंटर का सिलेबस तक मालूम नही होता है।ऐसे में परीक्षा कैसे पास करेंगे।
सरकार के सख्त रवैया के कारण नकल पर भी रोक था ।छात्रों का आदत नकल करने का बन चुका था।यह भी असफलता का कारण रहा।एफिलेटेड महाविद्यालय के शिक्षकों को अधिक से अधिक छात्रों को पास करना ही हितकारी था।लेकिन इस बार रुबी राय के डर ने इनके कलम को रोक दिया।
इंटर का परिणाम ठीक हैं।कौंसिल सिर्फ दाखिला लेने और डिग्री देने का मशीन बनकर रह गया था।मैं इसे नीतिश सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धि मानती हूँ।अब अभिभावक अपने बच्चों को महाविद्यालय जाने और पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे-– डॉ पुष्पलता, देवघर
Result kharab hone ka sara shraye school and college ki padhaee ka asthar girna. teachar and.B.E.O..D.E.O. Jimedaar hai- -डॉ सुधीर कुमार मिश्रा, पटना
Bihar govt is more interested in quantity in education than quality.--डॉ अजय कुमार, IMA
परीक्षा में चोरी रोक कर जिस तरह वाहवाही ली गयी,,,सही है,,,पर स्कूल में पढ़ाई,शिक्षको की कमीं और सुविधाओं पर अगर ध्यान दिया जाता तो परिणाम सम्मानजनक होती,,,सरकार और प्रशासन को अपनी पीठ थपथापनी चाहिए थी,,,,मेरे समझ से सरकार की प्राथमिकता स्वथ्य और शिक्षा पहली होनी चाहिए,,पर आज सरकार लगता है एक सूत्री कार्यक्रम शराब ,,लेकर चल रही है।भले जरूरत मंद लोगों को दवा और शिक्षा मिले न मिले,,,, एक साल तक गुरुगोविंद सिंह की जयंती,चंपारण सत्याग्रह,बिहार दिवस आदि समारोह के नाम पर ,,,,,? पर हासिल करना चाहती है--सुधीर मधुकर, वरिष्ठ पत्रकार
This has to happen because not a single government school is working properly. Not a single trained teacher who is literate working in schools.
Books are not reaching to students, no one is their to monitor. So the results are. We are shocked, Bihari’s are so intelligent, what they need is proper monitoring--अमृता भूषण, बीजेपी नेत्री
इंटर का रिजल्ट एक खास मौका होता है विद्यार्थी जीवन का। बिहार बोर्ड का परिणाम आज प्रकाशित हुआ है। लाखों विद्यार्थी सफल हुए हैं तो कुछ असफल भी हुए हैं। सफल विद्यार्थियों के लिए तो आगे के जीवन की ढेरों बधाई और शुभकामनाएं। लेकिन जो असफल हो गए हैं, उनके लिए भी निराशा वाली स्थिति नहीं होनी चाहिए। कुछ कमी रही, तभी असफल हुए हैं, यह मानते हुए अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास शुरू कर देना चाहिए। इस रिजल्ट को भी सामान्य तौर पर देखें क्योंकि यह रिजल्ट आखिरी नहीं है। इसके बाद भी मौके हैं, गलतियों पर काबू पाकर आगे बढ़ने का-कमल नोपानी
इसमें कोई शक नही कि बिहार के होनहारों में क्षमता भरी पड़ी हैं, चाहे वो मामला किसी भी क्षेत्र का हो। तभी तो देश की सबसे कठिन परीक्षा (IAS) में भी 50 फीसदी से भी ज्यादा उत्तीर्ण छात्र बिहार के होते हैं। बस उन्हें मौका और कामचलाऊ सुविधा चाहिए होती है। दुख तो जरूर है कि 12वीं (बिहार बोर्ड) के परिणाम अच्छे नही हुए। इसका सिर्फ और सिर्फ यही कारण है कि परीक्षा बिल्कुल कदाचार मुक्त हुई। अब सरकार को चहिए कि जिस तरह कदाचारमुक्त परीक्षा को एक मुहिम की तरह संचालित किया उसी प्रकार सरकारी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की चुनौती को स्वीकार करे क्योंकि पढ़ाई के बाद ही परीक्षा की बारी आती है। CBSC & ICSE बोर्ड में आखिर इसी बिहार के ही तो बच्चे होते हैं, सिर्फ हर तरह की सुविधा उपलब्ध होने के कारण बच्चे अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त करते हैं और परीक्षा में भी अच्छा करते हैं। इसके लिए विद्यालयों में सभी विषय के पर्याप्त शिक्षक, अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता, बैठने की पर्याप्त व्यवस्था, पढ़ने और पढ़ाने केलिए पर्याप सुविधा, पर्याप्त शौचालय की जल्द से जल्द व्यवस्था करे तभी कदाचारमुक्त परीक्षा की सार्थकता सिद्ध होगी- -डॉ सुहेली मेहता, मगध महिला कॉलेज
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति पटना द्वारा इंटरमीडिएट वार्षिक परीक्षा 2017 की परीक्षा परिणाम घोषित होने पर मै सभी सफल छात्र – छात्राओं को बधाई देता हूँ और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ | साथ ही साथ जो छात्र असफल हुए है उनके लिए यह कहना चाहता हूँ कि किसी परीक्षा में असफलता आत्ममंथन के लिए अवशर देती है | ताकि हम यह जान सके की हमारी कमजोरी क्या है , और कहाँ और किस विषय व् पहलु पर हमें और अधिक मेहनत करने की जरुरत हैं. परीक्षा में अंक से ज्यादा महत्वपूर्ण है, विषय – वस्तु की जानकारी जो व्यवहारिक एवं पेशेवर ज़िन्दगी को सफल बनती हैं- -बीरबल झा
बिहार इंटर की परीक्षा का परिणाम असंवेदन तंत्र की सिसकती शिक्षा नीति की मात्र एक संक्रमित स्तम्भ हटने का परिणाम है| तात्पर्य यह कि शिक्षा नीति व व्यवस्था में सुधार की नियत से सरकार ने आंशिक नकल रोककर व बार-कोडिंग के प्रयोग से पैरवियां निरस्त कर शिक्षा की गुणवत्ता के दशा को समझी है व मै इसे बिहार सरकार के सकारात्मक कदम के रूप में देखता हूँ | लेकिन सरकार के समक्ष वास्तविक चुनौतियों का सामना करने की जिम्मेदारी अब होगी| कर्मठ मानव व भौतिक दोनों प्रकार के संसाधनों के अभाव में शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने की इच्छाशक्ति कैसे आकार लेगी? निन्यानवे प्रतिशत बेपटरी हो चुके व्यवस्था को कागजी न रहने देने के लिए जिस विशाल धनकोष व नियत की जरूरत होगी, वह कहां से आयेगी? अनुबंध के छोटे वेतन प्रारूप में क्षमतावान शिक्षक योगदान क्यों करेंगे?बिना भवन व भूमी वाले जाली विद्यालयों का जो जाल है, उसका क्या होगा? प्राथमिक विद्यालय के संविदाकर्मी शिक्षक से लेकर विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं लिपिक से लेकर शिक्षामंत्री तक जो योजनाओं की बंदरबॉट होती रही है उस पर क्या लगाम लग पायेगा? क्या शिक्षकों को पढा़ने के अलावा अन्य कार्यो से मुक्त कर दिया जाएगा?
यदि सरकार इस प्रकार की समस्याओं को समझ रहीं है व इसका समाधान करने को उद्धृत है तो माननीय मुख्यमंत्री उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं जिसका सपना उन्होनें साइकिल क्रांति के जरिए देखा था| अन्यथा इस बदहाल तंत्र को ठीक करना मगरमच्छ के जबड़े में फंसे हाथ निकालने जैसा होगा …………… और श्रीमान कुमार के पास यह बेहतर मौका है कि पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के कार्यकाल से जो पतन व पराभव इस व्यवस्था का हुआ एवं उत्तरोत्तर सभी सरकारों में यह लगातार गिरता हुआ इनके कार्यकाल में पतन की पराकाष्ठा पर है……… कम से कम अब सुधारोन्मुख कदम बढ़ाकर अपने पाप धो ले- -गगन गौरव, सहसंयोजक, शिक्षा स्वराज, बिहार
In 12 lakhs only 4 and half lakhs have been got pass result this signifes that what was the standard of education in bihar and what is the condition now in bihar- -मणिभूषण प्रताप सेंगर, पटना हाई कोर्ट