BHU में छात्राओं ने अपनी आबरू की सुरक्षा के लिए किया कैंडल मार्च
कॉलेज प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
जिनके पास वक़्त से पूछने के लिए सवाल हैं वो जिंदा हैं….और जिनके पास कोई सवाल नही है वो एक मरे हुए इंसान हैं ! एक मरे हुए इंसान और एक ज़िंदा इंसान के बीच किसी समाजिक समस्याओं के प्रति उठ रहे सवालों का ही अंतर है ! सैकड़ों की भीड़ लगी है…न्याय मांगे जा रहे ..न्याय सबसे जुड़ा है…न्याय का क्षेत्र व्यापक है ! अगर किसी लड़की को छेड़ने वाले लड़के को दोषी पाया जाता है तो इससे वो लड़की भी सुरक्षित होगी जो रात में इसलिए हॉस्टल से बाहर नही निकलती क्योंकि उसे डर रहता है कि कोई उसके साथ अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर सकता है ! इससे वो लड़की भी सुरक्षित होगी जो अभी तक कैंपस नही आयी है जो आने के बारे में सोच रही है…शायद अगले साल के लिए वो यहाँ आने की तैयारी कर रही हो…न्याय माँगने वाली लड़कियाँ एक लंबे समय से झेल रही है..हर बार उनके सवालों के प्रति प्रशासन मूक नज़र आता है..हर बार उनके सवालों के प्रति प्रशासन चुप हो जाता है क्योंकि उसके पास कोई जवाब नही है….हम कह सकते हैं “ये प्रशासन मरी हुई है और अब तो लाचार भी है !
बहुत सारे प्रदर्शन हुए और हर बार प्रशासन बच जाता है….सवाल सिर्फ सवाल बनकर रह जाया करता है…जिस तरह सैकड़ों की भीड़ में सवाल पूछे जाते हैं उसका जवाब एक लंबे वक्त तक कि चुप्पी होती है….ऐसा लगता है एक सवाल और जवाब के बीच एक लंबा अँधेरा है जिसे ख़त्म करने में अभी सालों लगेंगे…किसी आम आदमी के लिए सवाल पूछने से उसे कुछ नही मिलता क्योंकि उसे पता है उसका जवाब कोई नही देगा….उसके सवाल उसके मन मे ही रह जाते हैं….वो मन ही मन कुढ़ता रहता है !
एक गरीब किसी गरीब से कभी नही पूछता की तुम गरीब क्यों हो इसलिए क्योंकि उसे खुद नही पता कि वो गरीब क्यों है ? सवाल धमक चमक और आवाज़ के साथ कहें तो भी बहुत दूर तक नही जाते ….जाते भी तो उसके जवाब पाने तक एक लंबा वक़्त बीत जाता है शायद तब तक उस सवाल की महत्वता ख़त्म हो जाती है !
समाज में बदलाव के लिए सवालों का होना जरूरी है…हर वाक्य के बाद क्या,कहाँ,क्यों,कैसे लगाना जरूरी है….इसी से पता लगता है हम कितने सक्रिय हैं अपने वक़्त के लिए ! हम हर बार आँखें बंद कर लेते हैं ताकि कुछ दिखाई ना दे …अगर कुछ बुरा दिखता है तो भीतर से सवाल जन्म लेते हैं और जवाब ना मिलने पर हम कुढ़ जाते हैं….ऐसे कुढ़ने से बचने के लिए कई लोग ऐसे हैं जो समस्याओं के प्रति आँखें बंद करके गुज़र जाते हैं ताकि वो मन मे किसी सवाल को जन्म ना लेने दे…वो ऑंखें इसलिए भी बंद कर देते हैं ताकि उन्हें पता है उन्हें जवाब पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी…लंबी लड़ाई किसी सच को पाने के लिए हम नही लड़ना चाहते ! हम बस शाम तक घर लौटना चाहते हैं अपनी आँखें बंद करना चाहते हैं और सो जाना चाहते हैं !
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि कैंपस में तीस हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं हैं पर वहाँ केवल दो सौ लोग हैं जो न्याय की माँग कर रहे…. अपने सवाल पूछ रहे बाकी जो लोग अपने कमरों में सोये हैं मैं कह सकता हूँ वो बस एक मरे हुए इंसान हैं ! न्याय सबको प्रभावित करता है और अन्याय से भी सब पीड़ित होते हैं ! न्याय कभी भी व्यक्ति विशेष नही हो सकता और अन्याय भी नही ! अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से हमे ये मालूम होता है कि हम अपने कल को सुरक्षित कर रहे हैं !
जो किसी मरी हुई आत्मा के आवाज़ बने हैं उन्हें सलाम ! हमे जवाबों के लिए एक लंबा सफ़र तय करना है…और वो लगभग हमारे करीब है.
आशुतोष की रिपोर्ट