लीजिए आ गया पूर्वांचल के लिए भोजपुरिया कैलेंडर

राजभवन में हुआ ‘भोजपुरिया कैलेंडर’ का भव्य लोकार्पण

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने किया लोकार्पण, कहा– यह केवल कैलेंडर नहीं, भारतीय संस्कृति का उत्सव है




पटना,6 अप्रैल. भोजपुरी भाषा, भोजपुरी लिपि और भोजपुरी पेंटिंग के योग से बना भोजपुरिया क्षेत्र यानि पूर्वांचल के लिए अपनी भाषा और संस्कृति को समेटे भोजपुरिया कैलेंडर का आगाज शनिवार को हो गया.

राजभवन, पटना के ऐतिहासिक दरबार हॉल में ‘भोजपुरिया कैलेंडर’ का भव्य लोकार्पण राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के कर-कमलों से सम्पन्न हुआ. कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रगान के साथ हुआ, जिसके उपरांत दीप प्रज्वलन कर राज्यपाल ने विधिवत उद्घाटन किया.

इस अवसर पर कैलेंडर के निर्माता एवं विश्व रिकॉर्ड होल्डर चित्रकार संजीव सिन्हा, समाजसेवी धीरज कुशवाहा, संभावना आवासीय उच्च विद्यालय, आरा के निदेशक डॉ. कुमार द्विजेन्द्र, प्राचार्या डॉ. अर्चना कुमारी, तथा कला, साहित्य और भोजपुरी भाषा के अनेक सशक्त प्रतिनिधि उपस्थित रहे.

भावुकता भरा पल
कैलेंडर का अवलोकन करते हुए राज्यपाल भावुक हो उठे. उन्होंने पेंटिंग में बेहराइच का नाम देखकर कहा, “यह मेरा क्षेत्र है, मेरा नाम भी इसमें अंकित है.”

उन्होंने अपने उद्बोधन में भारत की सांस्कृतिक विविधता और भाषाई समरसता की सराहना करते हुए कहा, “यह केवल भोजपुरी का नहीं, भारत की विविधता का उत्सव है. हम विविधताओं को अपनाते हैं, यही हमारी विशेषता है.”

उन्होंने भारत की प्राचीन सभ्यता और शक-संवत, वेदों की वैज्ञानिकता, समय की चक्रीय अवधारणा और पंचांग की विशिष्टता पर भी विस्तार से प्रकाश डाला.

राज्यपाल को किया सम्मानित

इस मौके पर राज्यपाल को अंगवस्त्र से सम्मनित सम्भावना आवासीय उच्च विद्यालय आरा के निदेशक डॉ कुमार द्विजेन्द्र ने किया. वही सर्जना न्यास के चेयरमैन व कैलेंडर निर्माता विश्व रिकॉर्ड होल्डर चित्रकार संजीव सिन्हा ने उन्हें भोजपुरिया पेंटिंग से युक्त एक विशेष अंगवस्त्र, एक सम्मान पत्र, भोजपुरी पेंटिंग, भोजपुरी की किताब लबेद व गीतन के फुलवारी और ब्रोच देकर किया. उपहार दिए गए पेंटिंग परभोजपुरिया कैथी भाषा लिखा हुआ भोजपुरी पेंटिंग का ऐसा समिश्रण था जिसमें पूर्वांचल क्षेत्र में आने वाले सभी जिलों का नाम भी अंकित था. वही धीरज कुशवाहा को भी भोजपुरिया अंगवस्त्र और सम्मान-पत्र और ब्रोच देकर चित्रकार ने सम्मानित किया.

इस मौके पर कवि, साहित्यकार व उपन्यासकार निलय उपाध्याय ने भोजपुरी कैलेंडर पर कहा कि दुनिया को 1-9 अंक देने वाला भोजपुर क्षेत्र से हुआ. मुझे खुशी है कि कैथी, भोजपुरी का जनक वाला क्षेत्र आज भोजपुरिया कैलेंडर को लेकर प्रस्तुत है जो एक नए बहस के लिए तैयार है. आज जिस दौर में प्रकृति खतरे में है, भोजपुरी की गिरती स्तर के बावजूद भोजपुरी संस्कृति को सहेजने का यह कार्य जिस ऐतिहासिक स्थल पर हो रहा है मुझे खुशी इस बात की है कि न सिर्फ यह उचित जगह बल्कि उचित हाथों से अनावरण इस कैलेंडर को और भी ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण बनाएगा.

वरिष्ठ रंगकर्मी व नाट्य गुरु चंद्रभूषण पांडेय ने सर्जना न्यास की स्थापना (2011) से लेकर उसके सामाजिक कार्यों—टेराकोटा, लोककला, नुक्कड़ नाटक और चित्रकारी—का उल्लेख करते हुए बताया कि संस्था नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जनजागरण से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर भोजपुरी कला के पुनर्जीवन में अग्रणी रही है.

पूर्वांचल क्षेत्र के लिए कितना उपयोगी है यह कैलेंडर

भोजपुरी महीनों और पंचांग से लोगों को परिचित कराना

आज की पीढ़ी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जनवरी-फरवरी, मार्च-अप्रैल की जानकारी रखती है, लेकिन चैत्र, बैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भादो जैसे पारंपरिक महीनों की पहचान धीरे-धीरे समाप्त हो रही है. यह कैलेंडर लोगों को उनके पारंपरिक समय-चक्र से जोड़ने का काम करेगा.

पक्ष (शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष) का महत्व समझाना

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक महीने के दो भाग होते हैं –
शुक्ल पक्ष (जब चंद्रमा बढ़ता है, अमावस्या से पूर्णिमा तक)

कृष्ण पक्ष (जब चंद्रमा घटता है, पूर्णिमा से अमावस्या तक)

आज की पीढ़ी को इनकी जानकारी नहीं है. यह कैलेंडर पूर्णिमा, अमावस्या, एकादशी, चतुर्थी, संक्रांति जैसी तिथियों को दिखाकर पारंपरिक समय-गणना से परिचित कराएगा.

भोजपुरी भाषा को मिलेगी नई पहचान

भोजपुरी कैलेंडर पूरी तरह भोजपुरी भाषा में होने के कारण लोगों को इसे पढ़ने, लिखने और बोलने के लिए प्रेरित करेगा. इससे भोजपुरी भाषा के संवर्धन में मदद मिलेगी.

कैथी लिपि के पुनर्जागरण में सहायक

कैथी लिपि, जो कभी बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक कार्यों में प्रयुक्त होती थी, अब लगभग विलुप्त हो चुकी है. कैथी एक ऐतिहासिक लिपि है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से उत्तर भारत और बिहार, उत्तर प्रदेश तथा झारखंड के कुछ हिस्सों में किया जाता था. इसका नाम “कायस्थ” समुदाय से जुड़ा हुआ माना जाता है, क्योंकि यह समुदाय पारंपरिक रूप से प्रशासकीय और लेखन कार्यों में संलग्न था.

किसने बनाया है यह भोजपुरिया कैलेंडर

भोजपुर के संजीव सिन्हा सिर्फ चित्रकार नहीं, बल्कि भोजपुरी लोकसंस्कृति के सच्चे सिपाही हैं. BFA की पढ़ाई के दौरान ही इनके मन में लोककला के लिए जो जिज्ञासा जगी, वह अब एक आंदोलन बन चुकी है.

2002 में कोहबर चित्रों के जरिए पहचान मिली, फिर गाँव-गाँव घूमकर लोक संस्कृति को कैनवास पर जीवंत करते चले गए. उनकी पेंटिंग्स में सिर्फ रंग नहीं, एक पूरी सभ्यता बोलती है.

उन्होंने बिहार से लद्दाख तक साइकिल यात्रा कर भोजपुरी चित्रकला को राष्ट्रव्यापी पहचान दी. 2011 में सर्जना न्यास की स्थापना की, और 2000 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित कर यह कला अगली पीढ़ी तक पहुँचाई.

2022 में जब बापू के आरा आगमन के 100 साल पूरे हुए, तब संजीव जी ने 15 दिन की मेहनत से विश्व का सबसे बड़ा यरवड़ा चरखा तैयार किया — जिसमें भोजपुरी चित्रकला भी सजी हुई थी. इस चरखे को दो-दो विश्व रिकॉर्ड मिले.

समारोह का संचालन संभावना विद्यालय की प्राचार्या डॉ. अर्चना कुमारी ने किया और कार्यक्रम का कोऑर्डिनेशन रंगकर्मी, निर्देशक व पत्रकार ओ पी पांडेय ने.

चित्रकार संजीव सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन में कहा कि यह कैलेंडर मात्र तिथियों का संग्रह नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का माध्यम है. उन्होंने बताया कि आने वाले समय में सर्जना न्यास कम्युनिटी रेडियो और भोजपुरी कला अनुसंधान संस्थान की स्थापना की दिशा में कार्यरत है.

इस मौके पर उपस्थित गणमान्य शख्सियतों में धीरज कुशवाहा, बृजम पांडेय, रविंद्र भारती, संजीव सिन्हा, ओ. पी. पांडेय, विष्णु शंकर, डॉ. कुमार द्विजेन्द्र, डॉ. अर्चना सिंह, दीपा श्रीवास्तव, श्रील, अखौरी विजय कुमार, चंद्रभूषण पांडेय, लव कुमार, निलय उपाध्याय, भीम यादव, सत्य प्रकाश सिंह, मीरा कुमारी, गौरव कुमार सिंह, दीपक कुमार, डॉ. मधुरिमा कुमारी विक्रांत सहित अनेक सशक्त भोजपुरी योद्धा इस अवसर पर उपस्थित रहे.

OP Pandey

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