मुख्य विवाद स्नातक के नया पाठ्यक्रम
नाक की लड़ाई को कुलपति ने दिया विराम
ओ पी पांडेय की रिपोर्ट
“ऊँची नीची है डगरिया जरा धीरे चलो जी,” कुछ ऐसा ही हाल है वीर कुंवर सिंह विश्विद्यालय के वर्तमान कुलपति का. सुनने में अजीब सा लग रहा होगा,लेकिन भोजपुरी के लिए तमाम कोशिशों के बाद कुलपति महोदय फूँक-फूँक कर कदम रख रहे हैं. दरअसल 25 सालों से चली आ रही भोजपुरी की पढ़ाई के अचानक बंद हो जाने से पूरे प्रदेश की नजर विवि की गतिविधियों पर है और विवि अपनी फ़जीहत भोजपुरी के लिए चल रहे आंदोलन में आए दिन देख रही है. 21 तारीख को एकेडमिक काउन्सिल (विद्वत परिषद) की बैठक रखी गई है. लेकिन इस बैठक से पहले ही विवादों ने जोर पकड़ लिया है.दरअसल विवाद स्नातक के नए पाठ्यक्रम को लेकर है, जिसे वर्तमान के भोजपुरी विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर गुरुचरण सिंह तैयार कर रहे हैं. भोजपुरी के साहित्यकारों और पूर्व विभागाध्यक्षों का आरोप है कि भोजपुरी के लिए नया पाठ्यक्रम नियमों को ताख पर रखकर तैयार किया जा रहा है, जिसके विरोध होना पाठ्यक्रम बनने के बाद पुनः तय है. विद्वानों का कहना है कि किसी भी पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए,एक से ज्यादा विवि के विभागाध्यक्षों का एक दल होता है जो उसे तैयार करता है लेकिन वर्तमान में डॉ नीरज सिंह अकेले ही पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं.
इस बात की जानकारी मिलते ही कुलपति ने इसे बहुत ही संवेदनशीलता से लिया है और पाठ्यक्रम के लिए शिष्टमंडलों में गदाधर सिंह सहित कुछ और भी लोगों से संपर्क कर इस मामले को जल्द ही सुलझाने का फैसला लिया है.इस मामले को भोजपुरी आंदोलन से जुड़े लोग भी मिलकर सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि पाठ्यक्रम के बाद पुनः भोजपुरी पर कोई तलवार न लटके. कुलपति ने भोजपुरी के लिए इस तरह के प्रेम को देखते हुए विद्वत जनो का स्वागत किया है और एक बैठक बुलाकर तैयार पाठ्यक्रम की समीक्षा विद्वत जनो की राय से की जा सकती है.
पाठ्यक्रम को ले साहित्यकारों में नई जंग छिड़ी
साहित्यकारों के आपसी मनभेद,और मतभेद के अहम की लड़ाई में भोजपुरी आटे की तरह पीस रही है. वर्षो से चल रहे विभाग का रद्द हो जाना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. अब पाठ्यक्रम को ले साहित्यकारों में नई जंग छिड़ गई है.साहित्यकार और पूर्व भोजपुरी विभागाध्यक्ष रहे डॉ गदाधर सिंह वर्तमान के भोजपुरी विभागाध्यक्ष डॉ नीरज सिंह को अंहकारी बताया. साथ ही यह भी बताया कि अभी वर्तमान में जलेस के अध्यक्ष और हिंदी विभाग भी देखते हैं. ऐसे में उनकी भोजपुरी के प्रति निष्ठा पर संदेह है. उनके काल में भोजपुरी भाषा में नामांकन में भी कमी आयी है. वे खुद ही पाठ्यक्रम तैयार कर रहे है,जिसमे किसी की सहभागिता नहीं लेना चाहते हैं. इस बाबत जब डॉ नीरज सिंह से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि पाठ्यक्रम को वो प्रोफेसर गुरुचरण सिंह के साथ मिलकर तैयार कर रहे हैं. हालांकि गुप्त सूत्रों से पता यही चला है कि पाठ्यक्रम तैयार करने में डॉ नीरज सिंह किसी को शामिल करना नहीं चाहते हैं.हालांकि कुलपति डॉ लीलाचंद साहा और परिक्षा नियंत्रक प्रोफेसर प्रसून्जय सिंह ने इस मामले की खबर पाते ही मध्यस्तता कर एक अच्छे प्रशासक की भुमका निभाकर स्थिति पर काबू पा लिया है.
पूर्व में भी भेजा गया था भोजपुरी के लिए तैयार ड्राफ्टऑर्डिनेस
29 अप्रैल 2015 को राजभवन भेजे गए एक पत्र(ccdc/281/Estan/15) के जरिये विवि(वीकेएसयु) ने ये जिक्र करते हुए कहा कि 6 जून 2000 को विद्वत परिषद और 15 अक्टूबर 2001 को सिंडिकेट की बैठक गठित कर भोजपुरी भाषा के स्नातकोत्तर विभाग के लिए एक संक्षिप्त रूप रेखा तैयार की गई है,जिसे महामहिम की अनुमति के लिए भेजा जा रहा है. उस पत्र में वर्ष 2000 से अबतक भोजपुरी को पुनः सुचारू रूप से चालू करने की मांग की गयी थी.यह पत्र उस समय के रजिस्ट्रार डॉ ज़मिल अख्तर ने राजभवन भेजी थी. लेकिन चालू तो दूर भोजपुरी का भविष्य ही अधर में लटक गया. इस पत्र के जरिये डॉ ज़मिल अख्तर ने भोजपुरी के लिए महामहिम के पास अनुशंसा भेजा था, लेकिन क्या वजह था कि इन्होंने ही एक रिट-पेटिशन के जवाब में इस पत्र के आलोक में ही, एक एफडेविट के जरिये कोर्ट को इसे निरस्त करने की भी मांग भी कर डाली.
अगला क्रम – 2012 की रेशनलाइजेशन कमिटी की रिपोर्ट. कितना ग्रोथ था प्रत्येक वर्ष नामांकन का?