भोजपुरी भाषा की पढ़ाई बंद होने के बाद जिले में जनमानस में आये उबाल ने एक नई क्रांति को जन्म दे दिया है. यह क्रांति किसी पार्टी या समुदाय को लेकर नहीं बल्कि भोजपुरी भाषा की अस्मिता को लेकर है. बैठकों और आक्रोश के बीच जिला मुख्यालय में इन दिनों हर जगह एक नारा दिख रहा है जो भोजपुरी में लिखा हुआ मिलता है. ना भीख ना करजा चाहीं, भोजपुरी के दरजा चाहीं, दूध मंगब त खीर देहब, भोजपुरी छिनब त चीर देहब, भोजीपुरी के मान बढ़ाई, डेग बढ़ाई आगे आईं, जैसे कई नारे दीवालों पर लिखे मिल रहे हैं. ऐसे नारों से शहर का चौराहा, कॉलेज और रमना पटा पड़ा है.
सोशल मीडिया पर भी नारों ने पकड़ा जोर
भोजपुरी नारे सिर्फ जिला मुख्यालय के दीवारों पर ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर भी पट्टे पड़े हैं. भोजपुरी भाषा से जुड़े लोग अपने डीपी, स्टेट्स, फेसबुक के प्रोफ़ाइल और कवर फ़ोटो के साथ अन्य फोटो को भी उसपर भोजपुरी के ऐसे नारे लिखकर इसे रोज प्रचलित कर रहे हैं. इन दिनों सोशल मीडिया पर भोजपुरी का ट्रेंड जोरों पर है. नारों और इस अनोखे प्रचलन ने सबका ध्यान भोजपुरी पर केंद्रित कर दिया है.
भोजपुरी भाषियों में भाषा के अपमान का आक्रोश
भोजपुरी के लिए,भोजपुर जिले से उठी नवयुवकों की आवाज पुरे देश में गूंजेगी इसकी किसी को भनक तक नहीं थी लेकिन जिस तरह से नवयुवको ने “भोजपुरी बचाओ अभियान” की शक्ल में सर्वदलीय एकता दिखाई उसने देश के कोने-कोने में राजनीतिज्ञों के कान खड़े कर दिए हैं. देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी इस खबर को पाकर भोजपुरी भाषियों में एक नयी उम्मीद जगी है. दुबई, अमेरिका, सिंगापूर और मॉरीशस से भी लोग इस अभियान से जुड़ गए हैं. नित नए योजना के लिए लगातार सोशल मीडिया के जरिए भोजपुरिया लोग बातें कर रहे हैं. इस कारण दो बातें तेजी से हो रही हैं. एक तो वैसे लोग या संस्थाएं जो भोजपुरी को लेकर वर्षो से आयोजन या धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं वो भी नित नए आयोजन में लग गए हैं और दूसरे वो हैं जो भोजपुरी के नाम पर अपनी मठाधीशी अबतक कायम रखे थे,अब वो भी चिर-निद्रा से जग गए हैं और आगामी दिनों के लिए विशाल योजना बनाने में लग गए हैं. ऐसे लोगों को डर ये है कि कहीं इनकी हैसियत नवयुवक छीन न लें. भोजपुरी बचाओ अभियान के नाम से ही बक्सर,छपरा,सिवान,सासाराम और रोहतास में बैठकें शुरू हो गयी हैं. सभी लोग गोलबंद होकर अब सिर्फ भाषा की लड़ाई लड़ना चाहते हैं. पूर्वी चंपारण से भी भोजपुरी आंदोलन की खबर है. बैठकों और आयोजनों के इसी क्रम में कई सालों से बेहद सक्रिय रहे भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान,आरा ने भी भोजपुरी की पढ़ाई बंद होने का आक्रोश मौन-जुलुस निकाल कर किया. यह जुलुस सरदार पटेल बस पड़ाव से निकलकर शहर होते हुए वीकेएसयु विवि जाकर समाप्त हुआ जहाँ एक सभा भी की गई.
छाया -समीर अख्तर
इस मौन जुलूस में साहित्यकार,रंगकर्मी,पत्रकार शामिल थे.मौन जुलूस में शामिल लोगों ने जाग भोजपुरिया जाग, अब भाषा के विकास में लाग, कबहुँ संस्कृत कबहुँ हिंदी, भोजपुरी भाषा के बिंदी,जैसे नारों से लिखे तख्तियों को अपने साथ रखा था. संस्था के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में सात सदस्यीय शिष्टमंडल ने कुलपति से मुलाकात कर भोजपुरी की पढ़ाई अविलम्ब शुरू कराने की मांग रखी. कुलपति लीलाचंद साहा ने उन्हें भोजपुरी की पढ़ाई जल्द ही सुरु कराने का आश्वासन दिया. शिष्टमंडल के दल में रवींद्र शाहाबादी, डॉ पन्नालाल चौरसिया,जख्मीकांत निराला, कवि नंदकिशोर कमल, शिवदास सिंह और जगजीवन कॉलेज के पूर्व प्राचार्य गांधीजी राय थे. मौन जुलूस में भोजपुरीे के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ गदाधर सिंह भी शामिल थे.