स्त्री विमर्श के पहले व्यक्ति थे हिंदुस्तान के

सोशल इंफ्लुएंसर थे भिखारी ठाकुर




पटना,11 जुलाई(ओ पी पांडेय). राय बहादुर, अनगढ़ हीरा, ठाकुर जी और भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि के अवसर पर बिहार सरकार के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग ने नाच, नाट्य प्रस्तुति एवं परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया. कार्यक्रम का शुभारंभ कला संस्कृति एवं युवा विभाग के अपर मुख्य सचिव हरदीप कौल, निदेशक रूबी के साथ मुख्य वक्ता के रूप मे आये आगत अतिथियों में डॉ. नीतू प्रसाद नूतन वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार, लोक गायिका, मनीषा श्रीवास्तव,सन्तोष पटेल और डॉक्टर जैनेन्द्र कुमार दोस्त एवं प्रो. वीरेंद्र नारायण यादव(पूर्व राजभाधा अध्यक्ष) ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया.

इस अवसर पर कला एवं सँस्कृति विभाग की अपर मुख्य सचिव हरदीप कॉल ने विभाग की ओर से सभी आगत अतिथियों और दर्शकों का स्वागत और आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि कला विभाग का यह कार्य इसलिए है कि आज की पीढ़ी हमारे पीढ़ी को जान सके. अगर हमें अपनी सुनहरी विरासत का दम्भ भरना है तो यह हमारा दायित्व है कि हम इनके बारे में बताएं. आज वैश्विक दुनिया है जब हर देश अपने विचारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाता है तो उसको ही दुनिया अपनाने लगती है. उन्होंने कहा कि
“हम ही हम है तो क्या तुम हो
तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो
बात होगी तब जब हम तुम दोनों हों.”

उन्होंने भिखारी ठाकुर पर प्रकाश डालते हए कहा कि रामायण देखने के बाद उन्हें लगा कि जो वेदना से छुआ जा सकता है वह किसी और से नही छुआ जा सकता है. वनवास की बात हो या सीता की अग्निपरीक्षा तो वह सबको छू जाती है. वे सिर्फ स्त्री वेदना ही नहीं बल्कि पुरुष वेदना को भी बड़ी सहजता से अपने नाटकों में रखते हैं. साथ ही कई कुरूतियों को, घर की लड़ाई को, समाज के सामने प्रस्तुत करते थे. आजादी की लड़ाई में पति पत्नियों को छोड़कर चले गए उन्होंने नही सोचा की पत्नी भी स्वतंत्रता की लड़ाई में जा सकती है. उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर की जयंती इस साल पूरे बिहार में मनाया जाएगा और स्तरीय प्रस्तुति परक दलों को उन्होंने मंच से ही आमंत्रित भी किया.

कार्यक्रम में परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार ने किया. परिचर्चा का विषय भिखारी ठाकुर के नाटकों में स्त्री विमर्श था जिसमें वक्ताओं के रूप में डॉ. नीतू प्रसाद नूतन, लोकगायिका मनीषा श्रीवास्तव, सन्तोष पटेल, डॉक्टर जैनेन्द्र कुमार दोस्त प्रो. वीरेंद्र नारायण यादव (पूर्व राजभाधा अध्यक्ष) और अमरजीत शामिल थे. सभी ने विभाग को इस चर्चा के लिए धन्यवाद व आभार प्रगट किया.

भिखरी ठाकुर ने महिलाओं के हर रूप को छूने की कोशिश की है लेकिन उनकी रचना कितना रिलेवेंट है के जवाब में जैनेन्द्र कुमार दोस्त ने कहा कि स्त्री विमर्श क्या है? जेंडर में जो डिस्क्रिमिनेशन था उसके बारे में बात करना. डिबेट भी बाहर से आता है कि वे कैसे सोचे इनके बारे में. आपको बाहर के स्कॉलर की किताब पढ़ना पड़ता है स्त्री विमर्श पर. उन्होंने कहा कि स्त्री को दोयम दर्जे का माना गया है. जब संवाद की बात नाटकों में आती थी तो पुरुष संस्कृत में बोलेंगे लेकिन महिलाएं प्राकृत और लोक भाषा मे. उन्होंने लेखक हेनरिक होल्सन की बुक डॉल्स हाउस का जिक्र करते हुए कहा कि एक स्त्री के घर तलाशने की कहानी की पहली बुक है दुनिया की लेकिन उस बीच भिखरी ठाकुर पर नजर नही गया. किसी का ध्यान नही गया. समाज,पॉलिटिक्स और समाज शास्त्र पर वे पहले भारत के व्यक्ति थे जिन्होंने स्त्री विमर्श पर बात किया.

उन्होंने कहा कि दूरदर्शन के सहयोग से एक कार्यक्रम बनने में जब 6 महीना लगा तब पता चला कि कितना कठिन है रचना. जिसका टाइटल बनाने में इतना समय लगा. पिया नीसइल भिखारी ठाकुर का 60 साल पुराना नाटक है जिसे विभाग के प्रयास से प्रस्तुति का प्रस्ताव आया. सरकार चूंकि शराबबंदी और नशामुक्ति पर भी कम कर रही है. भिखारी ठाकुर ग्लोबल नही ग्लोकल हैं. वे स्त्री विमर्श का बीज रोपने वाले पहले व्यक्ति हैं. उन्होंने 1917 में नाच शुरू किया और 1957 तक काम किया. वे अंग्रेजो के साथ लड़ाई में नही थे लेकिन उन्होंने कितना आगे का सोचा कि देश को आजादी तो मिल जाएगी लेकिन स्त्री की ये समस्याएं आजादी के बाद भी रह जाएंगी.

गायिका नीतू कुमारी नूतन ने भिखारी ठाकुर की रचनाओं में अपने आप को कहाँ पाती हैं के सवाल पर कहा कि मैंने रेडियो में सुनकर मंचो पर गाना शुरू किया. माँ के गीतों को सुना और गया. उन्होंने गीतों में महिला के दर्द को दर्शाया..
“हम त खेलत रहनी हम त सुपनी मोरिया से
कर लेइले तब ही बियाह रे विदेसिया
गवना कराई पिया घरे बइठले
अपने बसले बिदेस रे बिदेसिया” पक्तियों नारी के बेबसी को साफ बयां करती है.

भोजपुरी के लिए कई अंदोलन में सक्रिय सन्तोष पटेल ने कहा कि नारी विमर्श,फेमीनिजम जैसे कई पैरामीटर मौजूद है भिखरी ठाकुर के प्रस्तुतियों में. 1940-66 तक के समय को याद करते हुए कहा कि 1940-46 में हिन्दू कोर्ट बिल और बारबरा सीमेन की बात की. स्त्री मुक्ति का धेरी गाथा नारी का पहला साहित्य था. हमारे यहां सारे पैरामीटर हैं बिधवा विवाह,बेटिबेचवा और गबरघिचोर जैसे नाटकों में.

हार्नेस नीनास मिलना नॉश जैसे तमाम लोग 1920 में लिख रहे थे. मुक्ति ने लिखा था चेरी गाथा. गबर घिचोर नाटक की बात करते हुए उन्होंने कहा कि गलीज बो( गलीज बहु) नाटक में अपने कोख के अधिकार की लड़ाई लड़ती है. 15 साल से आया नही है उसका पति और उसका 13 साल का बेटा हो गया है. गड़बड़ी, गोबर जैसे कैरक्टर हैं जो उनके चरित्र को प्रस्तुत करता है. ब्रेख्त ने लिखा है
ब्रेख्त से तुलना करना गलत है क्योंकि दोनों एक ही समय पर लिखते हैं और उन्होंने ब्रेख्त को कभी पढा नही होगा इसलिए तुलना गलत है.

वही प्रो. वीरेंद्र नारायण यादव, पूर्व राजभाधा अध्यक्ष ने भोजपुरी में बोलते हुआ कहा कि छपरा में बने प्रेक्षागृह के नाम का भिखारी ठाकुर के नाम पर रखने का अनुरोध किया और उपस्थित हरदीप कौर से पूछ लिया. फिर उन्होने नाच के बारे में अपने पुराने संस्मरण को गाड़ करते हुए कहा कि उदित बाबू से सुनने का अवसर मिला, वह अद्भुत था. जब वे मिरजई पहन कर मंच पर आते थे तो पिन ड्राप शांति हो जाती थी. उस जमाने मे हार्डिंग पार्क में कार्यक्रम होता था और कानून व्यवस्था की जब बात हुई तो ठाकुर जी ने कहा कि हमारे कार्यक्रम में कोई कानून की जरूरत नही हम खुद इसे ठीक कर देते हैं. जब राहुल सांस्कृयायान ने उनका नाटक देखा तो उन्होंने कहा कि भोजपुरी में किताब और पत्रिका निकलना चाहिए. विश्व भारती विवि के कुलपति को एक कार्यक्रम में जब विदेसिया की प्रस्तुति के समय उछलते देखा तो पता चला कि एक कलाकार के कला की पहुंच कैसे पहुंचती है. 1947 में राहुल सांकृत्यायन ने कहा उसपर अभी तक काम नही हुआ है उसपर काम होना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं ये नही मानता हूं कि वे अंग्रेजी नही समझते थे या वे आजादी की लड़ाई नही समझते थे उनकी लड़ाई आजदी के समक्ष समाजिक कुरीतियों की लड़ाई थी जो आजदी की लड़ाई से कम नही थी.

वही अमरजीत ने अपने अभिभाषण में कहा कि पटना का दियारा क्षेत्र सबसे ज्यादा अत्याचार का शिकार बना उस काल मे जिसे भिखारी ने देखा और उसकी पीड़ा को अपने नाटकों में स्थान दिया. बाप के प्रति आदर और शिकायत भी है जैसे-

कईसे कहीं कहे नईखे आवत बाबूजी,
मुह में दांत नईखे लार चुवत बा हो बाबूजी,

मन करे कि जहर खा के मर जाईं ए बाबूजी.”

उन्होंने कहा कि मैं कुल्हड़िया से आता हूँ और मैने देखा है उनके नाटकों को अपने गांवों में. समय के हिसाब से वे संवाद गढने के माहिर थे. कुल्हड़िया में एक नाटक के दौरान उन्होंने अपने पात्र से ख्वा दिया देरी से आने के कारण की देर से आओगे तो कुल्हड़िया के जमींदार के यहाँ रखवा देंगे देर करोगे तो और कोड़ा से मार कहोगे तो दिमाग सही आ जायेगा. भिखरी ठाकुर एक सोशल एन्फ्लुएंर थे उस काल मे जब कोई सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म नही था।

लोकचर्चित युवा लोकगायिका मनीषा ने कहा कि बहुत से लिखने वाले है जो स्त्री सौंदये और कोई उनके मन की बात पर कलम चलाया है लेकिन ठाकुर जी रचनाओं में नारी के लोक की बात होती थी जिसमे हर रस का वर्णन होता था. एक स्त्री शादी कर के घर मे रहती है जो घर से लेकर समाज तक के कई समस्याओं से लड़ती है. भिखारी ठाकुर ने समाज मे, परिवार में जो महसूस किया उसे गांव-गांव तक अपनी रचनाओं के जरिये पहुंचाते थे.

रोपिया गिनाई देहली पगहा धराई देहल
चेरिया के छेरिया बनाई दिहलs

इतना किसी और ने नही लिखा जितनी मार्मिक उन्होंने लिखा. बेटी बेचवा का एक्सटेंशन विधवा-बिलाप नाटक है जहां बड़ी उम्र के पति से शादी होने के बाद यह विधवा हो जाती है और उसका जीवन बदल जाता है. लोक धुनों को,लोक संस्कृति को उन्होंने अपनी रचनाओं में पिरोया था.

डगरिया जोहत ना हो
बीतत बाटे आठों पहरिया हो
डगरिया जोहत ना जैसे
परोसी कर थरिया डाल भात तरकरिया हो..
जैसे पंक्तियों को जँतसार धुन के जरिये प्रस्तुत किया है जो जाँता पर काम करते हुए अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है.

परिचर्चा के बाद जैनेन्द्र कुमार दोस्त द्वारा निर्देशित भिखारी ठाकुर के नाटक पिया नीसइल का शानदार मंचन हुआ. नशे की वजह से परिवार के तबाही की कहानी को भिखरी ठाकुर ने बड़ी ही सहजता से नाटक में ढ़ाला जिसे कलाकारों ने भरसक करने का प्रयास किया.

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