धांधली को ले पूर्व परीक्षा नियंत्रक पर VKSU ने दर्ज की प्राथमिकी
नामांकन के ‘गोलमाल’ ने बढ़ायी डॉ प्रसून्जय की मुश्किलें, या बन गए ‘बलि का बकरा’ ?
‘पटना नाउ’ की खास तफ्तीश
आरा, 12 जनवरी. वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय और विवादों का का जैसे पुराना नाता है. आए दिन विवाद यहां थमने का नाम नहीं लेता लेता नहीं लेता लेता है. कभी परीक्षा में गड़बड़ी को लेकर तो कभी एडमिट कार्ड नही मिलने को लेकर, कभी परीक्षा में नकल को लेकर तो कभी परीक्षा में नकल पर रोक लगाने को लेकर. विवाद और हंगामा न हो तो लगता ही नही कि VKSU भोजपुर जिले में है ही नही.
इस बार तो हद हो गई जब विश्वविद्यालय ने B.Ed के नामांकन में धांधली को लेकर अपने ही परीक्षा नियंत्रण के ऊपर प्राथमिकी दर्ज कराई. यह प्राथमिकी विश्वविद्यालय ने 2016 में B.Ed में हुए काउंसलिंग से अतिरिक्त नामांकन में को लेकर की है. पूर्व परीक्षा नियंत्रक और पंजीयन कार्यालय के लिपिक के तालमेल से यह गोलमाल चलता रहा जिसमें बिना प्रवेश परीक्षा में बैठे ही छात्रों के नामांकन कर दिए गए. जाहिर है इस गोलमाल में कईयों की जेब मोटी भी हुई होंगी लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि महाविद्यालयों के निदेशक, प्राचार्य, लिपिक से लेकर विवि के कर्मचारी और अधिकारियों तक यह ‘गोलमाल’ चलता रहा लेकिन FIR की भेंट चढ़े सिर्फ दो लोग….
क्या है पूरा मामला ?
VKSU से संबंधित सभी BEd कॉलेजों के लिए B.Ed
शैक्षणिक वर्ष 2016-18 के लिए महामहिम राज्यपाल द्वारा अनुमोदित रेगुलेशन और ऑर्डिनेंस के आलोक में एक केंद्रीय एवं संयुक्त प्रवेश परीक्षा का आयोजन 9 सितंबर 2016 को किया गया था, जिसे विश्वविद्यालय सम्बद्ध B.Ed महाविद्यालयों ने माननीय उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिया. इस चुनौती के बाद ये महाविद्यालय इस प्रवेश परीक्षा में सम्मिलित हुए और 11 नवंबर 2016 को परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों का काउंसलिंग विवि में हुआ. विवि महाविद्यालयों के निदेशकों और प्राचार्यो की सयुंक्त बैठक कर नामांकन के लिए काउंसिलिंग किये गए छात्रों की सूची सौपी. लेकिन कई महाविद्यालयों ने विवि द्वारा जारी सूची के अतिरिक्त भी नामांकन किये. B.Ed महाविद्यालयों द्वारा की गई इस मनमानी का जब विवि को पता चला तो उसने B.Ed प्रथम वर्ष 2017 परीक्षा-प्रपत्रों का मिलान काउंसिलिंग सूची से करने तथा उस सूची से बाहर आये प्रपत्रों को स्वीकार नही करने का आदेश निर्गत किया. बताते चलें कि ऊपर उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश को सम्बद्ध पक्षो द्वारा चुनौती दी गयी, जिसका आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने 30 जनवरी 2017 को दिया. जिसमे लिखा हुआ था- “we only protect the admissions given by virtue of the interim orders passed by the high court & direct that the students shall be permitted to appear in the examination & their result shall be published”.
विवि के पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रसून्जय सिन्हा पर यह आरोप है कि उन्होंने विश्वविद्यालय व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को ताख पर रख काउंसलिंग के अतिरिक्त कई छात्रों के नामांकन किए. इसके लिए उन्होंने विवि के ही एक निम्नवर्गीय लिपिक रमेश कुमार के साथ मिलकर निर्धारित पंजीयन तिथि के बाद भी छात्रों का पंजीयन कराया. इसके लिए विवि ने एक जांच कमेटी भी बनाई थी, जिसमें पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ प्रसून्जय सिन्हा और रमेश कुमार दोषी पाए गए. बतातें चलें कि इस नामांकन में धांधली को लेकर छात्र संगठनों ने कई दिनों तक आंदोलन कर विरोध भी जताया था.
डॉ प्रसून्जय के स्पष्टीकरण में दो तरह के बयान क्यो?
धांधली के आरोप से घिरे उस समय के तत्कालिक परीक्षा नियंत्रक डॉ प्रसुनजय सिन्हा ने अपने सफाई में 21 जुलाई 2017 को कुल सचिव को दिए स्पष्टीकरण में लिखित दिया है कि काउंसिलिंग के अतिरिक्त लिए गए सारे उक्त तिथियों में नामांकन Pro-VC के आदेश के बाद ही लिया गया. साथ ही यह भी लिखा कि समय की कमी के कारण उक्त विषय को सुलझाया नही जा सका. वही 2 जनवरी 2018 को उन्होंने अपने दूसरे स्पष्टीकरण में कहा कि ” इस विषय पर गम्भीरता से विचार किया जाय तो उनके द्वारा किये गए कार्रवाई से विवि उच्चतम न्यायालय की अवमानना आदि के दायरे में नही आता है”.
क्या डॉ प्रसून्जय बन गए ‘बलि का बकरा’ ?
आनन फानन में की गई प्राथमिकी कहीं पूर्व परीक्षा नियंत्रक को बलि का बकरा बनाने की साजिश तो नही? अगर नही तो फिर अभीतक उन्हें NSS के प्रभारी से क्यों नही हटाया गया? जबकि विवि के जाँच टीम ने इन्हें बहुत पहले दोषी करार दे दिया है. क्योंकि अगर कागजी तफ्तीश में गौर करें तो यह FIR डॉ राजीव नयन ने किया है. यानि डॉ राजीव नयन रजिस्ट्रार के हैसियत से यह पत्र निकालते हैं. डॉ राजीव नयन भभुआ के सरदार बल्लभ भाई पटेल के एसोसिएट प्रोफेसर हैं. जबकि आधिकारिक रूप से इस पद पर अभी फिलहाल डॉ मनोज कुमार हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि फिर इस पत्र में डॉ मनोज की जगह डॉ राजीव नयन का नाम क्यों? विवि सूत्रों के अनुसार 10 जनवरी 2018 को निर्गत पत्र वाले दिन वर्त्तमान रजिस्ट्रार मनोज कुमार विवि में अनुपस्थित थे. तो सवाल यह उठता है कि ऐसी कौन सी आफत आ गयी कि विवि एक दिन रजिस्ट्रार का इंतजार न कर सका? कहीं कोई डॉ राजीव को एक दिन के लिए रजिस्ट्रार का प्रभार दे वर्त्तमान रजिस्ट्रार डॉ मनोज कुमार को बचा तो नही रहा? क्योंकि अगर एक निम्न वर्गीय लिपिक रमेश इस धांधली में शामिल है तो रजिस्ट्रार को कैसे इस बात की सूचना नही हुई? क्योंकि पंजीयन के कोई भी आदेश की प्रति तो जनाब के पास से गुजरती है. तो ऐसे में दोषी रजिस्ट्रार डॉ मनोज कुमार भी हुए फिर इनका प्रथमिकी में नाम क्यों नही? क्योंकि धांधली और फर्जीवाड़ा के खेल में पैसे कोई छोटा ही क्यों न ले ले, लेकिन बंटता ऊपर तक है वर्ना फाईल और आवेदनों पर बाबुओं की कलम नही चलती. मतलब माल महाराज का और मजा कोई और लेता है. कहीं इस पूरे प्रकरण से इन्हें(डॉ मनोज कुमार) अलग रखने की कोशिश तो नही? ऐसे में कहीं बलि का बकरा डॉ प्रसुनजय और रमेश तो नही बन गए? क्योंकि कभी-कभी हम विश्वास में भी कई काम कर जाते हैं और जब आंख खुलती है तो सबूत ही नही रहता है. भोजपुरी भाषा की पढ़ाई के लिए भी इसी तरह CCDC डॉ जमील अख्तर को 5 दिन के लिए रजिस्ट्रार का प्रभार दिया गया था. उसी दौरान उन्होंने भोजपुरी विभाग को बंद करने के लिए हाई कोर्ट से पूछे गए सवाल का जवाब, आनन-फानन में दिया था और भोजपुरी विभाग को उसी समय से ग्रहण लग गया और वे भोजपुरी पर कलंक के टिका रूपी सकुनी बन गए.
विवि के VC और पूर्व परीक्षा नियंत्रक से इस संदर्भ में बात करने की पटना नाउ ने कोशिश की तो किसी ने फोन नही उठाया. 10 जनवरी को हुए FIR में अभी पुलिस भी जांच की बात कह रही है. सवाल तो बहुत हैं पर देखना यह दिलचस्प होगा कि पुलिसिया कार्रवाई के बाद कितने चेहरों से शरिफी का नकाब उतरता है.
आरा से ओ पी पांडेय की स्पेशल रिपोर्ट