“द वर्ल्ड ऑफ बाउल्स” के दूसरे दिन श्रोताओं पर चढ़ बोला बाउल गायन
संगीत के माध्यम से आध्यात्मिकता का है प्रसार
“इन सर्च ऑफ द मैन ऑफ हार्ट” तथा “द पाथ ऑफ सहजियाज’’ वृत्त चित्र दिखाई गई
बाउल संगीत व परम्परा पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम “द वर्ल्ड ऑफ बाउल्स” के दूसरे दिन, 8 अक्तूबर को समापन सत्र में पार्वती बाउल तथा उनके साथी बाउल साधकों ने बाउल गायन से दर्शकों का मन मोह लिया. बाउल गायन सिर्फ शब्दों और सुर का संयोजन नहीं है, बल्कि संगीत के माध्यम से आध्यात्मिकता का प्रसार है. उस परम सत्ता के समीप होने की यात्रा है. बाउल साधक जब ईश्वर के साथ एकत्व की अनुभूति करता है, एक विशिष्ट मानसिक अवस्था में पहुंचता है, तब बाउल संगीत की सृष्टि होती है. बाउल गान अग्नि को प्रज्जवलित करने के समान है. यह “शब्द गान” है और शब्द ब्रह्म होता है. हम अगर इस गायन की भाषा समझते हैं, तो इसकी भाषा में डूब जाते हैं, और अगर भाषा नहीं समझते हैं, तो अपने शरीर व आत्मा के साथ इसमें डूब जाते हैं. कार्यक्रम का आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने दातृ फाउंडेशन और एकतारा कलारी संस्था के साथ मिलकर किया है, जिसकी संकल्पना कात्यायनी अग्रवाल ने तैयार की थी.
कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत पूर्वाह्न 11.30 बजे पार्वती बाउल द्वारा क्यूरेट की गई फोटो प्रदर्शनी के अवलोकन से हुई. पार्वती बाउल ने अतिथियों और दर्शकों को प्रदर्शनी में लगाए गए चित्रों के बारे में विस्तार से बताया. इसके बाद पार्वती जी ने “बाउल परम्परा” के बारे में एक विस्तृत व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि बाउल साधना कुछ ऐसी है, जो गहन अनुभूति और कई वर्षों के अभ्यास से प्राप्त होती है. बाउल सम्प्रदाय में कोई धर्मग्रंथ नहीं है, यहां सारी शिक्षाएं स्मृति और मौखिक परम्परा से प्रदान की जाती हैं. यह एक यौगिक परम्परा है. इसी सत्र में पार्वती जी ने अपने गुरु भाइयों श्री विश्वनाथ बाउल, जो उनके गुरु सनातन दास बाउल के पुत्र हैं, और मदन बाउल के साथ बाउल परम्परा पर चर्चा की. उन्होंने दर्शकों द्वारा बाउल परम्परा पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर भी दिया. इसके बाद बाउल संप्रदाय पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी द्वारा निर्मित वृत्तचित्र के साथ दो और वृत्तचित्र- “इन सर्च ऑफ द मैन ऑफ हार्ट” तथा “द पाथ ऑफ सहजियाज” दिखाए गए.
इसके बाद पैनल चर्चा में वक्ताओं ने बाउल दर्शन पर अपने अनुभव और विचार साझा किए तथा इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने का प्रयास किया कि बाउल नाचते और गाते क्यों है? पैनल में प्रोफेसर सुनीति कुमार पाठक, जर्मन मूल की कृष्णकांता, सुकन्या सर्बाधिकारी, पार्वती बाउल, मंजरी सिन्हा और सुमित डे शामिल थे. रामचंद्र रोद्दम ने इस सत्र का संचालन किया.
यूनेस्को की “मानवता की मौखिक और अमूर्त विरासत की उत्कृष्ट कृतियां” सूची में शामिल बाउल परम्परा पर दो दिवसीय आयोजन “द वर्ल्ड ऑफ बाउल्स” का उद्घाटन 7 अक्तूबर को शाम 4 बजे नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में प्रसिद्ध सिने अभिनेत्री, गायिका व राजनेत्री रूपा गांगुली ने किया था.
नई दिल्ली,संवाददाता