⁠⁠⁠⁠⁠नम्बर वन किलर बनने की प्रतिस्पर्धा है “बन्दूकबाज”
पटना नाउ की फ़िल्म समीक्षा




फ़िल्म बाबुमोशाय बन्दूकबाज, में बाबू बिहारी बने नवाजुद्दीन और बांके बिहारी बने जतिन, दो यूपी के कॉन्ट्रैक्ट किलर्स की कहानी है. 10 साल की उम्र में 4 दिन से भूखा बच्चा अपनी भूख के लिए पाने वाले 2 केले के बदले में पहली हत्या करता है वो भी पत्थर से मारकर. जेल जाने के बाद वह गोली चलाना सीखता है. फिर क्या बाबू बिहारी एक कंट्रेक्ट किलर बन जाता है. पैसे के लिए किसी की हत्या करने वाला बाबू फुलवा बनी बिदिता को देख लट्टू हो जाता है और उससे मिलने के दौरान ही वह हत्या को अंजाम देता है.

दरअसल बाबू द्वारा मारे गए शख्स फुलवा का बलात्कारी होता है जिसे दबंग होने के कारण कोई कुछ नही कर पाता है.पुलिस द्वारा पकड़े जाने के बाद भी फुलवा हत्या करने वाले को पहचानने से इनकार कर देती है और उसपर लट्टू बाबू जब उससे दोबारा मिलने जाता है तो अपने दो अन्य बलात्कारियो को भी बाबू द्वारा मरवा कर अपने आप को बाबू के लिए समर्पित कर देती है. कंट्रेक्ट किलर बाबू बिहारी फुलवा को पाने के लिए फ्री में ही उन दोनों को टपका देता है.

यही से शुरू होता है फिल्मी ड्रामा. सुमित्रा(दिब्या दत्ता) के लिए काम करने वाले बाबु बिहारी द्वारा अचानक 3 मर्डर उसे सुमित्रा से अलग कर देता है. बड़ा सरल भाषा और सहजता से बाबू के बोलने का स्टाइल जिसमे वो कहता है कि ” एक को मारने का पैसा लिए थे, कवनो दु गो का और थोड़े मांग रहे हैं. इसे बोनस समझिए हमारे तरफ से…” दर्शको को बाग-बाग कर जाता है.

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सुमित्रा से अलग होते ही बाबू को 3 लोगों के मरने का कंट्रेक्ट दुबे(अनिल) द्वारा मिलता है जिसमे सुमित्रा का एक खास आदमी त्रिलोकी(मुरली) भी है. सुमित्रा को यही बात बताने जाता है बाबू लेकिन वो इसे गलत समझकर उसे चैलेंज कर डेती है. इधर दुबे के खबरी सुमित्रा के पास से उसे खाली हाथ निकलते देख ये कॉन्ट्रेक्ट किसी और को भी बिन बताए दे देते है. यही से फ़िल्म में जबरदस्त टर्न लेती है. एक शिकार पर दो लोग….दो बंदूकबाजों के प्रतिस्पर्धा में स्थानीय पुलिस भी शामिल है. बाबू अपनी गर्लफ्रेंड फुलवा के साथ मजे में रह रहा होता है लेकिन बांके की उस पर नजर पड़ती है और वह भी फुलवा की तरफ आकर्षित हो जाता है. इस फिल्म के जरिए फुलवा के किरदार में बिदिता बॉलीवुड के लिए एक नई खोज है.

विदिता कामोत्तेजक दृश्य के साथ-साथ इमोशनल दृश्यों में फ़िल्म में प्रभावी दिखी है. गोलियों की आवाज का शोर और सेक्स सीन्स गैंग्स ऑफ वासेपुर की रह रहकर याद दिलाती है. हिंदी और भोजपुरी के मिश्रित डायलॉग भी इस फ़िल्म की USP कह सकते हैं. बांके की गर्लफ्रेंड यास्मीन के रोल में श्रद्धा ने भी बेहतरीन काम किया है. बॉलिवुड रीमिक्स पर डांस हाय रे हाय मेरा घुंघटा में घुंघराले बालों वाली श्रद्धा दर्शकों पर अपना जादू चला देती है. वही एक भोजपुरी गाने “फिर ना अइहें जवानी” पर बिदिता का बिंदास डांस कहर ढा देता है. दिव्या दत्ता ने भी लोकल बहनजी का दमदार अभिनय किया है.

नम्बर वन किलर बनने के लिए एक दूसरे से जंग होती है. दिलचस्प मोड़ एक बार तब आता है जब ये पता चलता है कि दूसरा किलर बांके बिहारी बना जतिन बाबू बिहारी को ही अपना गुरु मानता है. गुरु और चेले की इस नम्बर वन कौन बनता है यही फ़िल्म की खास बात है जो दर्शकों को रोके रहती है. अन्त क्या होता है ये तो देखने जाईये तब ही मजे से जान पाएंगे.

स्क्रीनप्ले मजेदार है और दर्शकों को बांधे रहने में कोई कसर नही छोड़ती है. जिसका सारा श्रेय निर्देशक कुशन नंदी को जाता है. फ़िल्म के एक दृश्य में हाफ पैंट पर एक छोटा बच्चा का बाइक पर बैठा पुलिस को लाना किसी प्रदेश की झलक दिखा जाता है. यही है एक कुशल निर्देशक की पहचान. बेहतरीन फ़िल्म के लिए उन्हें बधाई. फ़िल्म देखने से प्रतीत होता है कि अनुराग कश्यप के वे बहुत बड़े फैन है. क्योंकि फ़िल्म का स्टाइल उन्ही के फिल्मो जैसा प्रतीत होता है. नवाजुद्दीन ने खतरनाक किलर और प्रेमी के दो रूपों को नया अंदाज गढ़ा है. बॉलीवुड में अभी उनका जादू चल रहा है. फ़िल्म के स्टार्ट से लेकर अंत तक दर्शक उनके आवाज और अभिनय के कायल रहते है. नए कलाकर में जतिन ने एक नयी उम्मीद जगाई है. कुल मिलाकर हम रेटिंग की बात करें तो 5 में 4 स्टार इसे दिया जा सकता है.

 

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