सरकारी अधिकारी पर हमला मतलब राज्य, राष्ट्र और जनता पर हमला

 इसके दोषी आनंद मोहन पर आखिर क्यों मेहरबान है बिहार सरकार?




लोकसभा चुनाव में वोट बैंक को साधने के लिए नीतीश ने यह फैसला किया

जब से नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हुए हैं, वो उसे हराने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. इस सिलसिले में वो विपक्ष को एकजुट करने के लिए कई पार्टियों के दिग्गजों से भी मुलाकात कर चुके हैं. इस बीच आनंद मोहन को कानून में बदलाव करके जेल से बाहर निकालना भी इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है.

एक तरफ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य से माफियाओं और बदमाशों के सफाए  में जुटी है, तो वहीं इससे सटे राज्य बिहार में पूर्व सांसद आनंद मोहन जो एक पूर्व आईएएस अधिकारी की हत्या के आरोप में जेल में बंद है उसके रिहाई को लेकर नीतीश सरकार की देश भर में काफी किरकिरी हो रही है. नीतीश कुमार पर आरोप लगाया जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में वोट बैंक को साधने के लिए उन्होंने यह फैसला किया है. दरअसल, बिहार सरकार द्वारा आनंद मोहन के साथ ही कुल 27 कैदियों को जेल से रिहा करने के संबंध में अधिसूचना जारी की गई है, जो उम्र कैद की सजा काट रहे हैं.

बिहार जेल नियमावली में हुआ बदलाव

बता दें, उम्रकैद के मामले में 14 साल की सजा काटने के बाद कुछ शर्तों के आधार पर लोगों की रिहाई होने का नियम है. लेकिन आनंद मोहन का मामला एक सरकारी अधिकारी की हत्या से जुड़ा है. इस मामले में सजा काट रहे अपराधी को इस नियम का लाभ बिहार में नहीं मिलता था, लेकिन अब बिहार जेल नियमावली 2012 के नियम 481 (1) क में राज्य गृह विभाग ने संशोधन कर दिया है और ‘काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या’ इस वाक्यांश को ही नियम से हटा दिया है. इसी नियम के तहत आंनद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ हो गया है.

 डीएम की हत्या से पूरा देश दहल गया था

5 दिसंबर 1994 के दिन बिहार के मुजफ्फपुर में सरेआम हत्या से पूरा देश दहल गया था. इस हत्या से एक दिन पहले बिहार का एक कुख्यात अपराधी छोटन शुक्ला मारा गया था, जिसको लेकर उसके समर्थकों में गुस्सा था. इन समर्थकों की अगुआई कुछ नेता भी कर रहे थे, जिसमें आंनद मोहन का नाम भी शामिल है. इसी दौरान भीड़ ने डीएम की हत्या कर दी. मामले में 13 साल बाद आनंद मोहन और उसकी पत्नी समेत कई लोगों को हत्या का दोषी माना गया, साल 2007 में ट्रायल कोर्ट ने आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई. इसके बाद मामला 2008 में हाईकोर्ट पहुंचा. हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. फिर 2012 में आंनद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम कराने की अपील की लेकिन कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया.

फ़ाइल फोटो

खानापूर्ति कर रहा विपक्ष

आनंद मोहन की रिहाई के खबर मिलते ही IAS अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी ने इसका विरोध किया है. वहीं विपक्ष भी नीतीश सरकार पर जुबानी हमले करना शुरू कर दिया है. बीजेपी के कई नेताओं ने नीतीश सरकार को घेरा है, हालांकि सोचने वाली बात ये है कि इस मामले में बीजेपी के विरोध की आवाज उतनी तेज नहीं है जितनी अक्सर हुआ करती है. वहीं सत्ता पक्ष के नेताओं का कहना है कि सरकार के सही फैसले को विपक्ष बेमतलब मुद्दा बना रहा है.

बिहार सरकार से सवाल

वैसे बिहार सरकार ने आखिर इस कानून में संशोधन क्यों किया? क्या इस नियम में बदलाव की वजह आनंद मोहन को जेल से बाहर निकालना ही था या कुछ और? क्या नीतीश कुमार के लिए आनंद मोहन इतना बड़ा बन गए हैं जिनके सहारे वो बीजेपी को हराने की जो रणनीति बना रहे हैं उसमें सफल हो जाएंगे? इन सब सवालों का जवाब तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इन सबके बीच एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या नेता जनता के पहरेदार होने का दावा झूठा करते हैं? एक सरकारी अधिकारी पर हमला मतलब सरकार पर हमला कहा जाता है. सरकार पर हमला मतलब राज्य और राष्ट्र पर हमला होता है. जिस शख्स को कोर्ट ने दोषी माना है उसे कानून में बदलाव कर आखिर जेल से बाहर निकालकर जनता के बीच बिहार सरकार क्या संदेश देना चाहती है?

शशि राय ,वरीय संवाददाता

By pnc

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