साधकों और भक्तों के लिए है ज्यादा असरदार,

10 दिवसीय अनुष्ठान में 10 महाविद्याओं की भी होती है पूजा




पटना,6 जुलाई(ओ पी पांडेय). आज से आषाढीय गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार यह गुप्त नवरात्रि शनिवार (6 जुलाई, 2024) से शुरू हो रही है जो 15 जुलाई, 2024, सोमवार को समाप्त होगी. तृतीया तिथि दो दिनों की होने के कारण यह गुप्त नवरात्रि इस वर्ष 9 दिनों की जगह 10 दिनों की होगी. 10 दिनों तक चलने वाली इस नवरात्रि के दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग, त्रिपुष्कर और रवि योग जैसे योग भी लग रहे हैं जिसका विशेष महत्व माना जाता है जो भक्तों को विशेष फल भी देंगे.

वर्ष में चार बार मनाए जाने वाले नवरात्रि के पीछे जहाँ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है वही इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. आषाढ़ में गर्मी और वर्षा का ऐसा समिश्रण रहता है जो कभी विशेष गर्मी तो कभी ठंडे का एहसास दिलाता है. वर्षा की बूंदों का लुत्फ उठाते हम अधिकाशतः चटपटे, नमकीन, मसालेदार और तीखे खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन करते हैं जिससे हमारा पित्त का स्तर बढ़ जाता है.यह पित्त मानसिक तनाव और गुस्से को जन्म देता है जो कई बीमारियों को जन्म देता है. ऐसे में गुप्त नवरात्रि के दौरान पूजा-पाठ, ध्यान और फलहार व नियमित संयमित भोजन शरीर में पित्त के स्तर को नियंत्रित कर हमें स्वथ्यय बनाता है. चूंकि सिर्फ चैत्र और कार्तिक नवरात्रि में अधिकाश लोग पूजा करते हैं इसलिए अन्य दो को बहुत कम लोग जानते हैं. यह थोड़ा कठिन है इसलिए फलदायी भी अधिक होता है इसलिए इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं.

ये हैं आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2024 तिथियां :

6 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि, घटस्थापना मुहूर्त
7 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि द्वितीया तिथि
8 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि तृतीया तिथि
9 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि तृतीया तिथि
10 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि चतुर्थी तिथि
11 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि पंचमी तिथि
12 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि षष्ठी तिथि
13 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि सप्तमी तिथि
14 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि महाष्टमी
15 जुलाई 2024 – आषाढ़ गुप्त नवरात्रि महानवमी

कलश स्थापना मुहूर्त (Ashadh Gupt Navratri 2024 )
इस वर्ष पंचांग के अनुसार कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 06 जुलाई को सुबह 05 बजकर 11 मिनट से लेकर 07 बजकर 26 मिनट के बीच का है. इसके साथ ही अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजे से 12 बजे तक है.

गुप्त नवरात्रि की पूजा विधि :

गुप्त नवरात्रि की पूजा से पूर्व अहले सुबह उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ या नवीन वस्त्र धारण कर लें. इसके बाद पूजा आरंभ करें. सबसे पहले एक चौकी पर या मंदिर में लाल रंग का कपड़े बिछाकर मां दुर्गा की तस्वीर रखें और फिर जमीन में थोड़ी सी मिट्टी डालकर या फिर मिट्टी के बर्तन में मिट्टी डालकर जौ बोल लें. इसके बाद नवमी तिथि तक रोजाना जल अर्पित करें. इसके साथ ही एक कलश स्थापना करें. कलश के अंदर गंगाजल,जल,एक सुपारी के साथ एक सिक्का डालकर ऊपर आम के 5 पत्तों के साथ अनाज भरकर कटोरी रख दें. इसके ऊपर एक नारियल में कलावा लपेट कर रख दें.

कलश स्थापना के बाद कलश के साथ-साथ मां दुर्गा को फूल, माला, सिंदूर, अक्षत आदि चढ़ाने के साथ भोग लगाएं. इसके बाद एक पान के पत्ते में लौंग, इलायची, बताशा और एक रूपए का सिक्का रखकर चढ़ा दें. इसके बाद घी का दीपक और धूप जलाकर मां दुर्गा चालीसा, मंत्र , सप्तशती का पाठ और फिर अंत में आरती करें.

10 महाविद्याओं की भी होती है गुप्त नवरात्रि में पूजा

गुप्त नवरात्रि तंत्र-मंत्र की साधना के लिए उत्तम मानी जाती है. गुप्त नवरात्रि के दौरान 10 महाविद्याओं की पूजा करने का विधान है जिसमें मां काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला माता शामिल है.

इस मंत्र से करें मां दुर्गा ध्यान :
ॐ जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम|
लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम॥

दुर्गा मंत्र :
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

दुर्गा आरती :
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

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