राजधानी के लोगों को देखने मिल रहे हैं अच्छे नाटक
तीसरे दिन दो मंचीय नाटक ‘खोया हुआ आदमी’ और आरा के कलाकारों ने ‘गंगा स्नान’ नाटक की प्रस्तुति
रंगमंच हमारे जीवन संघर्ष, चुनौतियों और सम्भावनाओं को रचनात्मकता के साथ संप्रेषण का उपादान है जो जीवन दर्शन विशिष्टता प्रदान करता है : सुमन कुमार
प्रांगण द्वारा आयोजित 37वां पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन दो मंचीय 2 नुक्कड़ प्रस्तुतियों के साथ-साथ सुमन कुमार जी एवं स्थानीय कलाकार और दर्शकों के बीच खुली बातचीत हुई. केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी दिल्ली के उप सचिव और वरिष्ठ रंगकर्मी सुमन कुमार ने कहा है कि रंगमंच हमारे जीवन संघर्ष, चुनौतियों और सम्भावनाओं को रचनात्मकता के साथ संप्रेषण का उपादान है जो जीवन दर्शन विशिष्टता प्रदान करता हैं. वे 37वें पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के दौरान कालिदास रंगालय में ” नाटक पर चर्चा ” सत्र के दौरान पटना शहर के रंगकर्मियों से मुखातिब थे उन्होंने कहा कि बिहार सहित हिंदी पट्टी में रंगकर्मियों के लिए संभावनाओं के अनेक द्वार खुल रहे हैं . इसका लाभ बिहार के रंगकर्मियों को मिलने लगा है . कार्यक्रम में वरिष्ठ रंगकर्मी उषा वर्मा डॉ ध्रुव कुमार, नीलेश्वर मिश्रा, अभय सिन्हा, आशीष कुमार मिश्र, अभिषेक कुमार, सोमा चक्रवर्ती और मनीष महिवाल उपस्थित थे .
काइट एक्टर स्टूडियो (कर्मयोगी क्रियेटिव ग्रुप), मुंबई नाटककार : रिशीष दुबे, खोया हुआ आदमी,निर्देशक : साहेब नितीश
आज के दौर में पूरी इंसानियत तकनीक, महत्वाकांक्षाओं और पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर झूठा और दिखावटी जीवन व्यतीत करते हुए खुद को खुशियों से कोसों दूर करता जा रहा है. समस्त मानवता से झूठी और खोखली अपेक्षाओं के चलते जीवन के वास्तविक उद्देश्य को ही भुला बैठा है,सफलता के पीछे भागते हुए व्यक्तिगत भावनाओं, रिश्तो और अहसासों को भुला बैठा है. सफलता के पीछे रात-दिन भागने की इसी कोशिश में सही-गलत की भी परवाह नहीं जिसके कारण अंततः गलत दिशा और संगत में फंसकर अपने अस्तित्व को ही खो देता है.
खोया हुआ आदमी” इसी मनोदशा मे जी रहे और मेट्रो शहर में रह रहे एक दंपति की कहानी है जिसके पास एक दूसरे के लिए न भावनाएं है न संवेदनाएँ. छोटी बातों को भी बड़ा समझने की मानिसकता और बेवजह की चिंता में डूबे रहने का अंततः परिणाम होता क्या है. यही इस नाटक का मूल उत्स है.
मंच पर-अमर रंधावा : साहेब नितीश, सीमा रंधावा : अंकिता दुबे, कुलजीत रंधावा / चोर : अनिल शर्मा ,डॉक्टर सिंह/चोर : चिरंजीवी जोशी
नेपथ्य-संगीत संचालन : शुभम जोशी, प्रकाश संचालन : अर्जुन ठाकुर,संयोजन : समर मेहदी.
दुसरी प्रस्तुति मनोज कुमार सिंह निर्देशित और भिखारी ठाकुर लिखित गंगा स्नान की हुई
“गंगा पूजनीय तो वृद्ध भी पूजनीय बनें, उन्हें वृद्धाश्रम मत पहुँचाओ.
नाटक में मलछु की शादी को सात साल हो गए है पर वह अबतक निःसंतान है. वह गाँव के लोगों के साथ सपरिवार गंगा स्नान के लिए जाना चाहता है. उसके साथ बूढ़ी माँ भी जाना चाहती है, जिसके लिए मलेछु की पत्नी तैयार नहीं है. वह इस पर तैयार होती है कि माँ उसकी भी गठरी ढोएगी. भीड-भाड़ और मेला के कारण माँ से गठरी गिर जाती है. उसमें रखा कपड़ा और सामान खराब हो जाता है. गुस्से में पति-पत्नी मिलकर माँ को मारपीट कर भगा देते हैं. मेला में उसे ठग मिलता है ठग साधु के भेष में है. ठग उसका सारा सामान, गहना आदि छीन लेता है. उसे पछतावा होता है. वह माँ को मेला में खोज कर निकालता है और गंगा स्नान कराकर घर लौट आता है. इस नाटक में गंगा और उसके घाटों के आसपास की संस्कृति तो है ही, साथ ही आज के समय की सबसे बड़ी समस्या ‘वृद्धजनों की उपेक्षा’ को मार्मिक ढंग से उकेरा गया है. नाटक कहती है, “गंगा पूजनीय तो वृद्ध भी पूजनीय बनें, उन्हें वृद्धाश्रम मत पहुँचाओ.
मंच पर-मलेछु : पंकज भट्ट, मलेछु बहू : रागिनी कश्यप ने अपने अभिनय की अमिट छाप छोडी.वहीँ अटपट : नीतीश पाण्डेय, माई : आशा पाण्डेय अटपट बहू : ऋतु पाण्डेय, ठग साधु : लवकुश सिंह, कोरस 1 साहेब लाल यादव कोरस-2 – मुकेश कुमार, कोरस-3 लड्डू भोपाली कोरस-4 रोहन पाठक, कोरस-5: राजा कोर्स, ओमजी पाठक, सखी-1 मीनाक्षी पाण्डेय, रात्री- 2 पम्मी कुमारी, गायन श्याम बाबू कुमार, संतोष तिवारी, हरिशंकर जी निराला, अंकिता, जागृति, ढोलक अभय ओझा भूमिकाओं में थे. तबला : सूरज कान्त पाण्डेय,संगीत: श्याम बाबू कुमार, रूपसज्जा व वस्त्र सज्जा : तिरुपति नाथ का था
नुक्कड़ नाटक
नुक्कड़ नाटकों की श्रृंखला में क्रिएशन, पटना की प्रस्तुति कोमिता व जयंती लिखित और गौतम गुलाल निर्देशित ये दौड़ है किसकी की प्रस्तुति की गई.यह नाटक आज के युवाओं की भागदौड़ की जिंदगी, शिक्षा, रोजगार, महंगाई से जूझती जनता की परिस्थितियों को दर्शाता निजीकरण पर सवाल खड़ा करता है साथ ही मेहनतकश मजदूरों की समस्या को यह नाटक उजागर करता है.
पात्र परिचयहर्ष विजेता, दीपक सोनी, नैतिक केशरी, सोमेन मुखर्जी, रोहित कुमार, शिवम कुमार, जानवी सोनी, ऋषिकेश, सौरभ, अशरफ अली एवं राजन .
वहीँ नाद, पटना ने परिकल्पना एवं निर्देशन- मो. जानी व लेखक-:- विवेक कुमार की जनतागिरी नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति हुई. भौतिकवाद दौड़ में अपनी महत्वाकांक्षी इच्छाओं और पारिवारिक स्थिति को अपने में पूरा करने में, उसे यहाँ तक भी पता नही कि मनुष्य योनि में जन्म सभी प्राणी से श्रेष्ठ विवेकी क्यों माना गया है. कैसे अपने ही कुकर्मों द्वारा इस स्वर्ग सी सुंदर एवं सर्वव्यापी अद्भुत सृष्टि को विनाश की और ढकेलता जा रहा है. ऐसे ही इन्ही कुछ अनेक चरण बिन्दुओं को चिंहित करते हुए वास्तविक चेहरे को समाज में पर्दाफाश करता है. इस नाटक में धर्मराज द्वारा एक मनुष्य योनि को धरती लोक पर भेजा जाता है जिसका नाम है, आम आदमी, उसको जन्म सिर्फ इसलिए ही दी जाती है की वो इस पर हो रहे भ्रष्टाचार को देखे, महसूस कर सके, और समाज के प्रत्येक जनता को इन वास्तविक परिस्थितयों से भली भाँति अवगत कराए. एक ओर से ये नाटक जितना मनोरंजक एवं आकर्षक है तो दूसरी ओर से उतना ही समाज में व्यंगात्मक कटाक्ष
पात्र-परिचय-धर्मराज-रवि कश्यप, चित्रगुप्त-मो0 आसिफ, आम आदमी- नंद किशोर कुमार, व्यक्ति-अविनाश मिश्रा, प्रेमी-उज्जवल कुमार गुप्ता, प्रेमिका-आरती सिंह राजपूत, बाप-नितीश कुमार, रिपोर्टर- पूजा राज ढोलक मो0 इमरान, गायक एवं खंजरी-राजीव रॉय.