Special report patna now
आरा. “स्वच्छता ही देवत्व के निकटतम है” शायद इसी कथन को सार्थक करने के प्रयास में केंद्र सरकार स्वच्छता पर जोर देते हुए लगातार कई योजनाओं और कार्यकर्मों की घोषणा कर रही है इस उम्मीद में कि भारत के गाँव-शहर साफ़-सुंदर हो सके और वहाँ के नागरिक स्वस्थ.
“स्वच्छता ही सेवा” का बना मज़ाक
पर इन योजनाओं के ज़मीन पर आते ही क्या हश्र होता है, इसकी बानगी पेश कर रहा है आरा नगर निगम. बिहार के भोजपुर जिले के मुख्यालय आरा को राज्य की प्रथम नगरपालिका होने का भी गौरव प्राप्त है. 2002 में इसे नगर परिषद का दर्जा दिया गया और 2007 में नगर निगम के रूप में अपग्रेड किया गया. करोड़ों रूपये टैक्स प्राप्त होने के बाद और हर महीने लाखों रूपये साफ-सफाई पर खर्च होने के बाद भी स्मार्ट सिटी मिशन और केंद्र सरकार की महत्त्वपूर्ण ‘AMRUT’ योजना में शामिल यह शहर अभी भी गंदी नालियों, सड़कों पर बहते मल-मूत्र और हर गली-नुक्कड़ में पड़े बजबजाते कूड़े के ढेर पर बैठा हुआ है.
अभी स्वच्छता पखवाड़ा पूरे देश में 2 अक्टूबर तक मनाया जाएगा और नगर निगम ओडीएफ भी घोषित हो चुका है, पर आइये देखें हकीकत क्या है
कागज पर “ओडीएफ” : हाल-बेहाल सार्वजनिक शौचालयों का
यह फोटो शहर के वी आई पी एरिया मंगल पाण्डेय पथ की है, जहाँ ओडीएफ घोषित होने का बोर्ड और जुर्माने की सूचना लगायी जा चुकी है, पर जिले के एस पी आवास की दीवार पर ठीक बोर्ड के नीचे सुबह से शाम तक सार्वजनिक मूत्रालय जैसा नज़ारा देखा जा सकता है. और-तो-और नजदीकी शौचालय की सूचना 500 मीटर होने का बोर्ड जहाँ इस दीवार पर है वहीँ सड़क के दूसरी ओर की दीवार पर इसके 1000 मीटर दूर होने का बोर्ड है.
कहने का अर्थ है कि उसी जगह से शौचालय की दो अलग-अलग दूरियों पर होने का बोर्ड लगा है. जाहिर है ऐसा करके नगर निगम हंसी का पात्र ही बना है, पर चिंता किसी को नहीं. लोग खुलेआम मूत्र त्यागने को ही ठीक समझते हैं और निगम प्रशासन कागजी दिखावे से वाहवाही लूटने में मस्त है.
पूछने पर लोग कहते हैं सार्वजनिक जगहों पर मूत्रालय और शौचालयों का ना होना ही इनकी विवशता है. मंगल पाण्डेय पथ पर कार्यरत युवा वैभव पाठक कहते हैं “हमलोगों ने ऐसा करने वालों को समझाया, पर लोग मानते ही नहीं. निगम शौचालय सुविधा भी मुहैय्या नहीं कराता और हमने खुद से सफाई करके इन स्थानों पर कुछ पेड़ लगाये थे ताकि लोग पेशाब ना कर सकें उसे भी उखाड़ दिया गया”
ऐसा भी नहीं कि नगर निगम ने शौचालय और मूत्रालय नहीं बनवाये. अभी कुछ महीने पहले ही कई जगहों पर प्री-फैब्रिकेटेड शौचालय लगाये गए जिनमें लाखों खर्च हुए पर उनकी हालत ऐसी है कि महिला तो दूर कोई पुरुष भी उनमें जा नहीं सकता.
पटना नाउ ब्यूरो ने जब इसकी पड़ताल की तो पीरबाबा मोड़ के पास स्थित महिला और पुरुष शौचालय बदतर स्थिति में दिखे. उपर टंकी तो पानी की सप्लाई नहीं, उखड़े हुए पाइप, हाथ धोने तो दूर अंदर भी पानी की सुविधा नहीं, और शाम होते ही घुप्प अँधेरा.
जब यह हाल जिलाधिकारी, जज और एस पी आवास के एरिया का है तो सोचिये बाकी शहर कैसा होगा?
पोल खोलते ‘स्वच्छता सर्वेक्षण-2018’ के आँकड़े
केंद्र सरकार का ‘स्वच्छता सर्वेक्षण-2018’ भी इसकी बानगी बयान करता है. इस साल जारी सर्वे में पूरे देश में 1 लाख से ज्यादा आबादी के 471 शहरों में आरा का स्थान 1241.39 स्कोर के साथ 383वाँ है, जबकि पिछले साल 390वाँ था, यानी मामूली सुधार ही हो पाया. बिहार के कुल 27 नगर निकायों में इसे 11वाँ स्थान मिला है, वहीँ टॉप पर कटिहार नगर निगम है जिसे 1731.73 स्कोर के साथ देश में 284वाँ स्थान मिला है. यानी अभी लम्बा रास्ता तय करना है. अगर ऐसी हालत बनी रही तो निगम स्मार्ट सिटी मिशन की दौड़ से भी बाहर हो सकता है और ‘AMRUT’ योजना के लाभ भी नहीं मिल पायेंगे.
पार्कों की ज़मीन पर अतिक्रमण और गंदगी का साम्राज्य
‘AMRUT’ योजना में शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण की रोकथाम के लिए हरे-भरे क्षेत्र और पार्क बनाने की बात भी है, इसमें भी निगम फिसड्डी साबित हुआ है. नये पार्क तो दूर जज कोठी के पास स्थित आदर्श पार्क और एस पी आवास के पास खाली ज़मीन पर गंदगी और अतिक्रमण फ़ैल चुका है उसकी भी सफाई करके कम खर्च में पार्क बनाने में निगम लाचार बना हुआ है. ग्रीन कवर के लिए लगाये गए पेड़ वैसे ही नाकाफी थे, ऊपर से समुचित देख-भाल और लोगों के अतिक्रमण ने उन पेड़ों को नष्ट ही कर दिया है.
लचर कूड़ा-कचरा प्रबन्धन और निपटान की व्यवस्था
बड़े जोर-शोर से पिछले कुछ समय में कूड़ा-कचरा प्रबंधन पर लगातार सेमिनार और वर्कशॉप होते रहे हैं, पर शायद यह सब भी कागज़ी दिखावा ही है. लोग तो वैसे भी कचरा प्रबंधन में अशिक्षित हैं उपर से डोर-टू-डोर कूड़ा उठाव, गीले और सूखे कूड़ों का अलग निपटान आदि भी समुचित ढंग से नहीं हो रहा. और तो और बस पड़ाव जो बसों के लिए बने थे उन्हें भी कूड़ाखाना बना दिया गया है.
जो कूड़ा उठाया जाता है उन्हें शहर से बाहर सिन्हा रोड, बड़हरा रोड जैसे सड़कों पर डालकर आग लगा दी जाती है जिससे धीमे-धीमे उठता ज़हरीला धुआं राहगीरों और वहाँ के निवासियों के लिए बेहद खतरनाक और कई रोगों को निमंत्रण दे रहा है.
पटना नाउ को ऐसे कई कूड़े के जलते हुए और खतरनाक धुंआ देते ढेर मिले.
‘स्वच्छता ही सेवा’ का माखौल उड़ाता निगम प्रशासन कब चेतेगा और सफाई को लेकर नागरिक कब जागरूक होंगे यह कहना बेहद मुश्किल है पर शायद एक सार्थक प्रयास इस तस्वीर को जल्द बदल दे यह उम्मीद तो हम सभी कर सकते हैं.
आरा से ओ पी पाण्डेय व रवि प्रकाश सूरज की विशेष रिपोर्ट