‘स्वच्छ भारत अभियान’ का कलंक बना आरा स्टेशन
आरा,7 जुलाई. अगर आप आरा और आसपास के हैं तो आपको शर्म आनी चाहिए क्योंकि ये खबर वाकई शर्मनाक है. किसी भी शहर का स्टेशन उसका चेहरा होता है और जब चेहरा ही गंदा हो तो वहां के लोगों के लिए इससे शर्मनाक क्या होगा। पूरे देश में ‘स्वच्छ भारत’ अभियान जोर-शोर से चल रहा है. भारतीय रेल भी इसमें पीछे नहीं है, हरेक स्टेशन और ट्रेन के डब्बों में महात्मा गाँधी के चश्मे के साथ अभियान का प्रचार नजर आता है. पर एक आम नागरिक और रेलयात्री के चश्मे से देखे तो ये अभियान पूरी तरह फेल नजर आ रहा है.
कुछ ऐसी ही बानगी है आरा जंक्शन की
आरा जंक्शन पूर्व मध्य रेल और दानापुर डिवीज़न का ‘ए’ केटेगरी का स्टेशन है जो राजस्व के मामले में दूसरे नम्बर पर है. जाहिर है यहाँ रोज़ हजारों की संख्या में यात्री आते-जाते हैं. पर बेसिक सुविधाओं और साफ़-सफाई के मामले में ठीक उल्टा है, यानी स्टेशन इस मामले में फिसड्डी है. खुद रेल मंत्रालय का ‘स्वच्छ भारत पोर्टल’ आंकड़ों में यही कहानी बयान कर रहा है.
इस पोर्टल पर दिए गये ऑफिसियल डाटा के अनुसार आरा पूरे भारत में 294 रैंक पर है, वही ‘ए’ केटेगरी के स्टेशनों में इसका रैंक 232 वाँ है. हाजीपुर जोन के सभी स्टेशनों के बीच यह 11 वें स्थान पर है. कुल 1000 पॉइंट में आरा का स्कोर केवल 591 रहा और यह सर्वे देश के कुल 407 स्टेशनों के लिए करवाया गया.
सबसे बुरा पॉइंट आरा को ‘सिटीजन फीडबैक’ में मिला. रेलयात्रियों ने मोबाइल एप्प के जरिये इस स्टेशन को कुल 407 स्टेशन के बीच 381रैंकिंग दी है. यानी, हकीकत में हाल बहुत बुरा है, यात्रियों का अनुभव इस फीडबैक में साफ़ दिख रहा है.
आँखों देखी : ‘पटना नाउ’ टीम की
इस रैंकिंग के मायने तलाशती हमारी ‘पटना नाउ’ की टीम जब आरा जंक्शन पहुंची तब बहते हुए मल-मूत्र ने एंट्री गेट पर ही स्वागत किया. बेतरतीब खड़े बाइक, ऑटो रिक्शा और हाथरिक्शा के बीच यात्री बहते हुए मूत्र से खुद को बचाते हुए किसी तरह चल-फिर रहे थे. यहाँ तक कि स्टेशन के पोर्टिको पर मूत्र की तेज़ दुर्गन्ध आ रही थी. इन्क्वायरी खिड़की पर नाक पे रूमाल रख कर लोग पूछ ताछ कर रहे थे .
जगह-जगह दीवाल पर पेशाब करने पर जुर्माने की बात लिखी थी, पर ठीक उसी के नीचे लोग पेशाब कर रहे थे और मूत्र की सुनामी दिख रही थी. यहाँ तक कि कैंपस में ए टी एम के दरवाज़े को भी लोगों ने नहीं बख्शा था. पूरा कैंपस नहीं सह पाने वाली तीखी दुर्गन्ध से भरा था.
लोग जिसमें सिर्फ पुरुष ही शामिल थे, बेशर्मों की तरह स्टेशन परिसर की दीवाल पर मूत्र त्याग कर रहे थे. पुरुष तो ये भी कर रहे थे, ज़रा सोचिये आप, महिलाओं और लड़कियों को कितनी दिक्कत उठानी पड़ती होगी.
इस ‘कलंक’ का ज़िम्मेदार कौन ?
आखिर कौन है इन सबका ज़िम्मेदार? क्या आरा जंक्शन हमेशा से ऐसा रहा है? इन सवालों के जवाब तलाशने पर पता चला कि पिछले साल तक कैंपस में चारों ओर यूरिनल बने हुए थे, पर रेल मंत्री पीयूष गोयल के कार्यक्रम के दौरान सारे यूरिनल तोड़ दिए गये. बाद में केन्द्रीय मंत्री और स्थानीय सांसद आर के सिंह ने लोकसभा चुनावों से ठीक पहले कई बार परिसर में यूरीनल और शौचालय को ऊर्जा कंपनियों के CSR फण्ड के जरिये बनवाने की बात की पर ऐसा हुआ नहीं, चुनाव आये और सांसद महोदय दुबारा जीत कर फिर से मंत्री भी बन गये.
मीडिया में रिपोर्ट आने और यात्रियों की शिकायत के बाद एक प्री-फैब्रिकेटेड शौचालय पोर्टिको के बाहर इंक्वायरी से ठीक सटे लगाया गया है पर जिस स्टेशन पर हजरों यात्री रोज़ आते जाते हो और लाखों की आय रेलवे को हो रही हो, क्या वहाँ सिर्फ एक शौचालय नाकाफी नहीं होगा? यहाँ तक कि इस शौचालय के बाहर भी मल-मूत्र पसरा हुआ था जाहिर है निकास की कोई व्यवस्था नहीं थी.
और तो और महिलाओं के लिए कोई विशेष व्यवस्था भी नहीं दिखी. पहले के भी जो यूरीनल बने थे वे बेतरतीब ढंग से और सिर्फ पुरुषों के उपयोग के लिए ही थे. प्लेटफार्म संख्या-1 पर केवल एक ‘पे एंड यूज़’ शौचालय है, 2 और 3 पर तो कुछ भी नहीं.
जानकारी लेने पर पता चला कि इस जंक्शन पर सेनेटरी विभाग के भी कर्मचारी भी बहाल हैं पर इस समस्या पर शायद किसी का कोई ध्यान नहीं. ‘हर घर शौचालय’ का नारा लगाते सरकार के नुमाईन्दे और देश के सबसे बड़े परिवहन तंत्र रेलवे के अधिकारी इस महत्त्वपूर्ण स्टेशन पर शौचालय और यूरीनल की जरूरत महसूस करेंगे ये कहना मुश्किल है.
महामा गाँधी के चश्मे का लोगो लगाये ‘स्वच्छ भारत’ अभियान का पोस्टर तो अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के चश्में से दिख रहा है पर मल-मूत्र की सुनामी उनके चश्मे से नहीं बल्कि उन लाखों यात्रियों को बिना चश्मे के ही जरुर दिख गया जिन्होंने अपने प्यारे शहर के रेलवे स्टेशन को ‘सिटीजन फीडबैक’ में शायद इतना कम स्कोर इसलिए दिया कि बात सरकार तक पहुंचे.
आरा से रवि प्रकाश सूरज के साथ ओ. पी. पाण्डेय