पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लिए सदा याद किये जाएंगे
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जताया शोक
देश के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ से भी सम्मानित जाने-माने लेखक, गांधीवादी, पर्यावरणविद, संपादक और छायाकार अनुपम मिश्र का निधन हो गया है. सोमवार सुबह उनके निधन की खबर फैलते ही उनके चाहने वाले दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में जुटना शुरू हो गए है उनका अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर किया जाएगा.
अनुपम मिश्र का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में सरला मिश्र और प्रसिद्ध हिंदी कवि भवानी प्रसाद मिश्र के यहां सन 1948 में हुआ था. पर्यावरण-संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने और सरकारों का ध्यान आकर्षित करने की दिशा में वह तब से काम कर रहे थे, जब देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग भी नहीं खुला था. उनकी कोशिश से सूखाग्रस्त राजस्थान के अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ, जिसे दुनिया ने देखा और सराहा. सूख चुकी अरवरी नदी के पुनर्जीवन में उनकी कोशिश काबिले तारीफ रही है. इसी तरह उत्तराखंड और राजस्थान के लापोड़िया में परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में उन्होंने अहम काम किये जिसे हमेशा याद रखा जाएगा.
अनुपम मिश्र ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से 1968 में संस्कृत में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. उनकी ही देन है की दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में पर्यावरण कक्ष की स्थापना हुई . वे प्रतिष्ठान की पत्रिका ‘गांधी मार्ग’ के संस्थापक और संपादक भी रहे. उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्त्वपूर्ण काम किया. वे साल 2001 में दिल्ली में स्थापित सेंटर फॉर एनवायरमेंट ऐंड फूड सिक्योरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने के लिए सहयोग किया था. वह जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था तरुण भारत संघ के भी लंबे समय तक अध्यक्ष रहे. पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के लिए साल 2011 में उन्हें देश के प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया. साल 1996 में उन्हें देश के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है.