मुर्गियों का वजन बढ़ाने के लिए हो रहा एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग

By pnc Oct 1, 2023 ##broiler ##murgi ##poultry




मनुष्य के लिए है बहुत  घातक, बीमार पड़ने पर एंटीबायोटिक का नहीं होता असर 

चिकेन खाते रहते है तो हो जाएगा बॉडी एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस

मुर्गियों के पालक नहीं रखते ध्यान ,मुनाफे की कमाई में जान से खिलवाड़

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की पॉल्यूशन मॉनिटरिंग लैबोरेटरी में दिल्ली-एनसीआर स्थित मुर्गी फार्मों के 70 चिकन सैंपल इकट्ठा किए गए थे और उनमें आम तौर पर इस्तेमाल की छह एंटीबायोटिक्स (ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन, क्लोर टेट्रासाइक्लिन, डॉक्सीसाइक्लिन, एनरोफ्लॉक्सिन सिप्रोफ्लॉक्सिन, नियोमाइसिन, एमिनोग्लाईकोसाइड) के अंशों की जांच की गई थी, जिसमें 40 फीसदी नमूने पॉजिटिव थे. 17 प्रतिशत में तो कई एंटीबायोटिक्स थे. सिप्रोफ्लोक्सासिन जैसी एंटीबायटिक्स भी मिली थी जिसमें डब्ल्यूएचओ ने इंसान के लिए खतरनाक घोषित कर रखा है. फ्लोरोक्वीनोलोन श्रेणी की एंटीबायोटिक है एनरोफ्लोक्सासिन, जो चिकन में सबसे अधिक मात्रा में पाई गई थी जिसमें कुछ देशों में पाबंदी है.

ऑस्ट्रेलिया के हेल्थ एक्सपर्ट और सायंटिस्ट डॉक्टर माइकल ग्रेगर ने लोगों को जागरूक करते हुए कहा है कि चिकन का मास प्रोडक्शन रोकना बेहद जरूरी है. नहीं तो जिस तरह से आज के समय में बड़े स्तर पर चिकन फार्मिंग हो रही है, वह एक और खतरनाक महामारी की वजह बन सकती है. यह महामारी कोरोना से भी अधिक घातक और जानलेवा होगी.डॉक्टर ग्रेगर के अनुसार, चिकन फर्म में पनपने वाला वायरस ‘एपोकैलिक’ इतना घातक होगा कि दुनिया की आधी जनसंख्या को खत्म कर सकता है!

पशु-पक्षियों को जीवाणुजनित रोगों से बचाने के लिए पशुपालक एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं पर ज़्यादातर मुर्गीपालक ज़्यादा मुनाफे के लिए पक्षियों का वजन बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इसकी ज्यादा मात्रा घातक हो सकती है. “पशु-पक्षियों में बैक्टीरिया के द्वारा जो भी जीवाणुजनित रोग होते हैं उनको रोकने के लिए उपचार के रूप में एंटीबायोटिक दवाओं का निर्धारित मात्रा में प्रयोग किया जाता है. दुधारू पशुओं की अपेक्षा इन दवाओं का प्रयोग पोल्ट्री में ज़्यादा होता है क्योंकि एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से मुर्गियों की समय से जल्दी बढ़ते है और वजन भी ज़्यादा होता है जो बाजार में महंगे दामों में बिकता है.

डॉ अरुण कुमार सिन्हा बताते हैं कि चारे में एंटीबायोटिक दवाओं को मिलाने से पक्षियों में प्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है, जिससे उनमें संक्रमण (इंफेक्शन) नहीं फैलता है और उनकी बढ़वार जल्दी होती है जिससे उनके वजन भी काफी तेजी से बढ़ता है, जब मुर्गियों को एंटीबायोटिक मिश्रित आहार दिया जाता है तो उनका वजन बढ़ता है. इसी वजह से किसान थोक में एंटीबायोटिक खरीदते हैं और उसे उनके चारे में मिला देते हैं. या वे किसी बड़ी पोल्ट्री से एंटीबायोटिक मिला हुआ तैयार चारा ही ख़रीद लेते हैं जिसके लेबल पर यह दावा किया गया होता है कि इससे चिकन के मांस में वृद्धि होगी. डॉ सिन्हा ने बताया कि अब तो फल सब्जी की तरह बॉयलर चिकेन का साइज बढाने के लिए ऑक्सिटॉक्सिन के इंजेक्शन का इस्तेमाल घातक होता है.

मायकोटॉक्सिन के कारण होने वाली बीमारी को मायकोटॉक्सिकोसिस के रूप में जाना जाता है. ये मायकोटॉक्सिन विश्व स्तर पर पोल्ट्री व्यवसाय के लिए एक निरंतर खतरा बने हुए हैं. चिकेन राशन में उपयोग किए जाने वाले कई फ़ीड तत्व इन खतरनाक मायकोटॉक्सिन द्वारा दूषित हो सकते हैं जो पक्षियों द्वारा सेवन किए जाते हैं और  जिसके कारण कई गंभीर परिणामों का भी सामना करना पड़ सकता है.

नालंदा के एक गाँव के मुर्गीपालक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि मुर्गियों को एंटीबायोटिक मिश्रित आहार देने से उनका वजन बढ़ता है और अच्छे दामों पर बिकता है. मैं ही नहीं कई मुर्गीपालक ऐसा करने के लिए पक्षियों में एंटीबायोटिक का प्रयोग करते है. वो आगे बताते हैं कि बाड़े में मुर्गियां झुंड और गंदी जगहों पर अपने चूजे को जन्म देती हैं इसलिए शुरुआत में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग ज़्यादा करते है ताकि उनमें बैक्टीरिया मर जाए. मुर्गियों के आहार के लिए भारतीय मानक ब्यूरो ने निर्देश दिए हैं जिसके मुताबिक एंटीबायोटिक का उपयोग इनके विकास के लिए नहीं किया जाना चाहिए, हालांकि इसे भी अनिवार्य नहीं बनाया गया है. ऐसे में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं है.कई बार लोग बीमार होने पर एंटीबायोटिक दवा खाते हैं, यह शरीर में बीमारी फैलाने वाले कीटाणु को मारने के लिए खाई जाती है. ऐसे में अगर एंटीबायोटिक दवा असर नहीं करती है तो उस असर को एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस कहते हैं.

शरीर में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस होने के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें ऐसा संभव है कि अगर व्यक्ति मांसाहारी है,जो मांस खाता है उसमें एंटीबायोटिक पहले से मौजूद हो जो खाने वाले के शरीर में आ गया हो. इससे शरीर में पहले से ही उसे एंटीबायोटिक के शरीर में होने से जब उस दवा को खाया जाएगा तो वह असर नहीं करेगी. ऐसे में इस बात की संभावना रहती है कि शरीर में मौजूद कीटाणु उस दवा का आदि हो चुका हो. हर एंटी बायोटिक दवा को खाने के लिए विशेष सलाह की जरूरत होती है कि कोई भी एंटी बायोटिक दवा की मात्रा और कितनी दिनों को अंतर पर खाना है यह हर दवा के लिए अलग-अलग होता है ऐसे में यह दवाएं बिना डॉक्टरी सलाह के नहीं खानी चाहिए.

पक्षियों में एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से मनुष्य में पड़ने वाले असर के बारे में अगर बात की जाए तो बकरे और मुर्गिंयों में इन दवाओं का प्रयोग ज़्यादा किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति एंटीबायोटिक चिकन खाता है तो जब कभी बीमार हो जाने पर डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाएं देता तो उस दवा का उस व्यक्ति पर कोई असर नहीं पड़ता है क्योंकि चिकन के माध्यम से उस व्यक्ति के शरीर में पहले से ही एंटीबायोटिक की मात्रा रहती है. हालांकि कुछ पशुपालक मुर्गियां किसी बीमारी से ग्रस्त न हो जाएं इसके लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि वे बड़े झुंड में और बेहद गंदी जगहों पर अपने चूजे को जन्म देती हैं. इसी वजह से मुर्गीपालक अक्सर पीने के पानी में एंटीबायोटिक मिलाते हैं ताकि वे किसी बीमारी के प्रकोप से बची रहें.

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