भगवान शिव का प्राचीन मंदिर जहां मां सीता के साथ प्रभु श्रीराम ने किया था जलाभिषेक




3500 साल पुराना है मंदिर

वनवास यात्रा के दौरान यहां की थी पूजा-अर्चना  

सावन में लगती है भक्तों की लंबी कतारें

स्कंद व पद्म पुराण में भी इस शिवपीठ का वर्णन

भगवान शिव भोले बाबा के सबसे प्रिय महीने सावन की शुरुआत आज से शुरू हो गया है. करीब 19 साल बाद इस बार संयोग से सावन दो महीनों का होने वाला है .ऐसे में सावन के दौरान मंदिरों में भगवान शिव शंकर को मनाने के लिए भक्तों की संख्या अत्यधिक हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि देश और दुनिया के पुराने व पौराणिक मंदिरों में पूजा का विशेष लाभ मिलता है. ऐसा ही शिव का एक विशेष मंदिर है जहां भगवान राम तथा माता जानकी ने वनवास यात्रा के दौरान पूजा-अर्चना की थी.

प्रयागराज में यमुना नदी के तट पर अकबर के किले के पास सदियों से करोड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र रहा मनकामेश्वर मंदिर स्थापित है. इस मनकामेश्वर मंदिर में भगवान शिव अपने विविध रूपों में विद्यमान हैं. इस मंदिर में पूजन से भगवान श्रीराम और माता सीता की मनोकामना पूर्ण हुई थी. इसलिए इसे ‘मनकामेश्वर मंदिर’ के नाम से जाना जाता है. यहां मंदिर को लेकर भक्तों की मान्यता है कि इस मंदिर में केवल जलाभिषेक मात्र से सभी मनोकामना पूर्ण होती है.

मनकामेश्वर मंदिर के पुजारी धरानंद महाराज बताते हैं कि स्कंद व पद्म पुराण में भी इस शिवपीठ का वर्णन है. इस मंदिर में भगवान शिव काम को भस्म करने के बाद स्वयं यहां विराजमान हुए थे. पुजारी धरानंद महाराज ने बताया कि त्रेता युग के दौरान वनवास जाते समय भाई लक्ष्मण व माता जानकी के साथ श्रीराम प्रयागराज के इसी मंदिर के पास अक्षयवट के नीचे रुके थे तथा आगे की अपनी निर्विघ्न यात्रा के लिए राम-जानकी ने यहां शिवपूजन किया था. प्रयागराज यात्रा के दौरान भक्त शिव की पूजन के लिए यहां जरूर आते हैं लेकिन सावन में शिव के जलाभिषेक के लिए यहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है और सावन माल के दौरान यहां मेले जैसे माहौल रहता है. वहीं सावन माह में प्रदोष व सोमवार को तो यहां पांव रखने की जगह तक नहीं रहती इसलिए स्थानीय शासन और प्रशासन द्वारा यहां की सुरक्षा व्यवस्था संभाली जाती है.

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By pnc

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