जब आपको बहुत सारे खट्टे अनुभव मिलने लगे तो समझ जाइए कि ईश्वर आपके लिए कहीं मिठाई बना रहा है
नाटक करने और कुछ सीखने के लिए पटना रंगमंच जैसा कोई जगह नहीं है
कहीं भी बिना मेहनत के काम नहीं चलता
बहुत से कड़वे अनुभव और मीठे अनुभव रोज़ देती है मुंबई
बिहार से कई अभिनेता निर्देशकों ने मुंबई में अपनी पहचान कुछ ख़ास बनाई है यहां के लोगों ने जी तोड़ परिश्रम से अपने काबिलियत को दुनिया के सामने पेश किया है ,बात अभिनय की हो या निर्देशन या फिर संगीत के क्षेत्र में यहां के लोगों ने अपने दम पर ये मुकाम हासिल किया है. बिहार में न तो कोई प्रशिक्षण संस्थान है ना ही ऐसी कोई अकादमी जहाँ से कलाकार अपने आप को ट्रेंड कर सके .उनकी ट्रेनिंग रंगमंच पर होती है जहाँ से तप कर ये निकलते है .ऐसे ही एक अभिनेता है विजय पाण्डेय जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मुंबई में भी मनवाया है.प्रस्तुत है अभिनेता विजय पाण्डेय की बातचीत के कुछ अंश ……
विचित्र जगह है मुम्बई. वाकई माया नगरी है. बहुत से कड़वे अनुभव और मीठे अनुभव रोज़ देती है . यहाँ सबकी मंज़िल एक है सफलता, लेकिन हर किसी की कहानी अलग-अलग है.अन्दर के कलाकार को काम मिलता रहे जिसके लिए मुंबई का रुख करना पड़ा.पेट की जठराग्नि बुझती रहे परिवार का दायित्व पूरा करता रहूँ बस इसी कामना ने पाटलिपुत्र की धरती पर कुछ तैयार होकर मुबई की धरती पर आ गया.
मुम्बई आके दर्जनों सीरियल किया,फुलवा,कलर्स के लिए, बालिका वधु , नव्या सावधान इंडिया , क्राइम पेट्रोल में कई किरदार निभाया . सबसे अफ़सोस इस बात का हुआ और आज भी है कि भाभी जी घर पे हैं जो आज सबसे चर्चित सीरियल है उसका पायलट एपिसोड में मैने काम किया परंतु किसी वजह से भाबी जी घर पे हैं का हिस्सा मैं नहीं बन पाया. जिसका अफ़सोस आज भी है और पता नहीं क्यों उन लोगों ने मौका नहीं दिया .
कई फ़िल्में कर रहा हूँ. अच्छा लग रहा है. 5 साल पहले संघर्ष ज्यादा था अब थोड़ी राहत है. अब काम के विकल्प हैं मेरे पास. अभी दो हिंदी फिल्म कर रहा हूँ दोनों कॉमेडी हैं एक एजुकेशन घोटाला पर और दूसरा व्यवस्था पर चोट करती फिल्म है. सार्थक फिल्म है, पूर्ण मनोरंजक है. एक और फिल्म है हिंदी में बनी जंगो जिसमे मैंने एक बिहारी डॉन की भूमिका निभाई हैं.अभी एक भोजपुरी फिल्म प्रदर्शन के लिए तैयार है नाम है इलाहाबाद से इस्लामाबाद. जिसमे मेरा किरदार एक आईएसआई अफसर का है. फिल्म अच्छी बनी है और दर्शकों को भी बहुत पसंद आएगी.
नाटक करने और कुछ सीखने के लिए पटना रंगमंच जैसा कोई जगह नहीं है मुझे पटना रंगमंच ने बहुत कुछ दिया है. मैं हमेशा आभारी रहूँगा और ऋणी भी.पटना में कई नाटक किया जिसमें से रागदरबारी, न जाने केहि भेस में, रसप्रिया, एक और दुर्घटना, तीसवी शताब्दी, बकरा किस्तों का, सिपाही की माँ, हतक, मधुशाला, हाथी के दांत,सैया भये कोतवाल प्रमुख थे.
फिल्म निगम अभी नवजात है. अभी छोटे छोटे फेस्टिवल और वर्कशॉप के माध्यम से किलकारियां कर रहा है . एक माहौल बन रहा है. जो भविष्य में यहाँ के कलाकारों के लिए अच्छा होगा . हम जब पटना में थे तो ऐसा माहौल नहीं था . साथ ही निगम को फिल्म सब्सिडी के लिए ऐसी आकर्षक रूपरेखा बनानी चाहिए ताकि फिल्म निर्देशक, फिल्म निर्माता , इस विश्वास के साथ बिहार आएं ये समझ कर की उनको बाकि राज्यों से ज्यादा फायदा बिहार में शूटिंग करने से हैं . तो निश्चित रूप से निगम अपने आप को सार्थक साबित करेगा . इसके लिए बिहार सरकार , कलाकार , सलाहकार आपस में समन्वय बनाये सीधा . तो निश्चित रूप से यहाँ के कलाकारों का फायदा और फिल्म शूटिंग का माहौल बनेगा .
पटना नाउ के माध्यम से मैं सारे कलाकार भाइयों को शुभकामनायें देता हूँ. बिहार में खासकर पटना के रंगकर्मियों में बहुत संभावनाएं हैं . आजकल पटना में एक खास चीज़ देखने को मिली है कि कलाकार अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों के अलावा अपनी समाजिक जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रहे हैं.देख के अच्छा लगता है. कुछ दिन पहले प्रेमचंद रंगशाला के पास से कूड़ा हटाने के लिए कलाकारों का संघर्ष काबिले तारीफ हैं . आप यूँ ही जागरूक रहें और अपनी उपस्तिथि समाज में अच्छे रूप में दर्ज कराते रहें .
प्रस्तुति -रवीन्द्र भारती