1857 की क्रांति के शाहाबाद के प्रथम योद्धा थे जगदीशपुर के वीर बांकुड़ा बाबू कुंवर सिंह
पटना नाउ गणतंत्र स्पेशल रिपोर्ट
आरा,24 जनवरी. आने वाले 26 जनवरी को हम गणतंत्र दिवस की 70वी वर्षगाँठ मनाएंगे. ऐसे में उससे पूर्व पटना नाउ हर दिन लाएगा शाहाबाद के इतिहास से जुड़े माहनायको की गाथा. आज से प्रारम्भ होने वाले माहनायको में शुरुआत करते हैं तेगवा बहादुर वीर बांकुड़ा बाबू कुंवर सिंह की गाथा जिन्होंने 80 वर्ष के बुढापे में इस मिट्टी की ताकत का एहसास अंग्रेजों को उनका दाँत खट्टा कर दिया था. तब से कहावत ही बन गयी कि 80 बरस में जहाँ जवानी चढ़े उसे भोजपुर के नाम से जाना जाता है. हालांकि उस समय पूरा शाहाबाद एक था इसलिए केवल भोजपुर के लिए यह कहना बेमानी होगी. वे पूरे शाहाबाद को गढ़ गए अपनी वीरता का अंश देकर यह कहावत. शाहबाद ही नही वे देश के माहनायक थे.
बाबू वीर कुंवर सिंह 80 वर्ष की उम्र में 1857 की क्रांति के ऐसे महानायक थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के पसीने छुड़ा दिए था, इतना ही नहीं बाबू वीर कुंवर सिंह गुरिल्ला युद्ध पद्धति से अंग्रेजो के छक्के छुड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ा था. 1857 की क्रांति के महान सेनानायक वीर कुंवर सिंह का जन्म शाहाबाद के जगदीशपुर गाँव में हुआ था. इनके पिता का नाम बाबू साहबजादा सिंह था , जो भोज राजवंश से संबंध रखते थे.
बिहार में 1857 के क्रांति का सफल नेतृत्व का श्रेय बाबू वीर कुंवर सिंह को ही जाता है. 25 जुलाई ,1857 को दानापुर के सैनिकों ने बाबू वीर कुंवर सिंह को अपना नेता चुना. कहा जाता है कि बिहार में 1857 के क्रांति की शुरुआत 12 जून ,1857 को देवघर जिले के रोहणी गाँव से हुई. फिर धीरे – धीरे ये आग पूरे बिहार में फ़ैल गई.
बाबू वीर कुंवर सिंह ने जगदीशपुर में बन्दुक एवं गोला – बारूद बनाने के कारखाने स्थापित किया और साथ ही साथ 10 हज़ार देशभक्त सैनिकों को एकत्रित किया. इस विद्रोह में बाबू वीर कुंवर सिंह के सहयोगी बाबू वीर कुंवर सिंह के भाई अमर सिंह ,भतीजा रथभंजन सिंह , निशान सिंह , हरकिशन सिंह और कई जमींदार भी थे.
कुंवर सिंह ने अपने सैनिको के सहयोग से संघर्ष की शुरुआत की, उन्होंने सब से पहले आरा को ब्रिटिश सैनिकों से मुक्त कराने का सफल प्रयास किया और आरा को अंग्रेजो से मुक्त किया और साथ ही साथ आरा में नागरिक सरकार का गठन किया और खुद को आरा का शासक घोषित किया.
बाबू वीर कुंवर सिंह ने सिर्फ शाहाबाद को ही नहीं अंग्रेजो से मुक्त किया बल्कि नाना साहेब के साथ मिलकर कानपुर की लड़ाई में भी हिस्सा लिया. 29 नवंबर ,1857 को कानपुर कब्जे के समय तात्या टोपे , नाना साहब के साथ साथ बाबू वीर कुंवर सिंह भी डिविजनल कमांडर थे. कानपुर की लड़ाई में बाबू वीर कुंवर सिंह की वीरता ने सबको प्रभावित किया. कानपूर की विजय के बाद नाना साहब को कानपुर में पदस्थापित कर कुवंर सिंह आजमगढ़ की तरफ चल पड़े. करीब 5000 सैनिकों का साथ मिला जिसकी मदद से आजमगढ़ को अंग्रेजों से मुक्ति दिला कर बाबू वीर कुंवर सिंह का आजमगढ़ के किले पर अधिकार हो गया.
कुंवर सिंह की आजमगढ़ विजय ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए. तत्कालीन गवर्नर जनरल कैनिंग के आदेश पर इलाहाबाद से लार्ड काके तथा लखनऊ से लुगार्ड के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने फिर से हमला बोल दिया. वहां से कुंवर सिंह को भागना पड़ा. डगलस के नेतृत्व अंग्रेजी सेना ने उनका पीछा किया तथा उनकी गिरफ्तारी में मदद देने हेतु 25,000 का इनाम रखा गया. किन्तु बाबू वीर कुंवर सिंह वहां से भाग निकलने में सफल रहे. आजमगढ़ से भागते – भागते वो 20 अप्रैल 1858 को गाजीपुर के मन्नाहोर गांव पहुंचे, वहां गाँव वालों ने बाबू वीर कुंवर सिंह का एक बिजेता के रूप में स्वागत किया तथा सेना सहित गंगा नदी पार करने के लिए नाव की व्यवस्था कराई, जब वो नदी पार कर रहे थे उसी बिच डगलस के नेतृत्व अंग्रेजी सेना ने उन पर हमला कर दिया. वीर कुंवर सिंह वहां से भी भागने में सफल रहे लेकिन हाथ में गोली लगने की वजह से उन्हें अपना एक हाथ गवाना पड़ा. इसी अवस्था में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए वे 22 अप्रैल,1858 को अपने गांव जगदीशपुर पहुंचे, लेकिन इसी बीच कैप्टन ली ग्रेंड के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने जगदीशपुर पर धावा बोला और वीर कुंवर सिंह के साथ भीषण युद्ध हुआ लेकिन अंग्रेज जगदीशपुर पर अधिकार करने में सफल नहीं हुए इस बार भी कुंवर सिंह विजय हुए लेकिन इस विजय के तीन दिन के बाद कुंवर सिंह की मृत्यु हो गई.
क्या आप जानते है ?
आरा हाउस
बाबू वीर कुंवर सिंह का आरा से गहरा संबंध था. वो आरा में जहां रहते थे जहां उनका आवास था वो आरा हाउस के नाम से जाना जाता है. बाबू वीर कुंवर सिंह से जुडी बहुत सी रोचक बातें है कहा जाता है की बाबू कुंवर सिंह देवी के बहुत बड़े आराधक थे. बाबू बाज़ार में जो काली मंदिर है उसकी स्थापन बाबू वीर कुवंर सिंह ने की थी जहां वो नित्य – प्रतिदिन पूजा आराधना किया करते थे.
बाबू बाजार स्थित काली मंदिर
(इस मंदिर की स्थापना बाबू कुँवर सिंह ने करायी थी. माँ के हाथ का कटार उन्ही का देन है)
मां आरण्य देवी के मंदिर में नित्य सुबह-शाम माता के दरबार में अपनी हाजरी लगाया करते थे.
कहा जाता है की आरा का जिला स्कूल एक समय में बाबू वीर कुंवर सिंह का सांस्कृतिक गृह था जहां हमेशा नृत्य का कार्यक्रम हुआ करता था.
टाउन स्कूल का बरामदा, जहाँ बाबू साहब के घोड़े रहते थे
लोगों की ऐसे अवधारणा है की आरा का टाउन स्कूल बाबू वीर कुवरं सिंह का अश्व गृह था जहां बाबू वीर कुंवर सिंह अपने घोड़े को रखा करते थे. अभी से टाउन स्कूल के नीचे वाले क्लास रूम का अवलोकन करने पर एक – दो कमरा ढलावनुमा है.
(नोट: कल पढिये बिहार निर्माता डॉ सच्चिदानंद सहाय के बारे में)
आरा से सावन कुमार की रिपोर्ट