स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर मनाता है यह गांव उत्सव

आरा,15 अप्रैल. वह दिन बड़ा ही सुहाना और ऊर्जा से लबरेज होता है जिस दिन हम अपने पूर्वजों और स्वतंत्रता सेनानियों को उनके किस्सों को याद करके पुराने अतीत को याद कर फुले नहीं समझते आज 15 अप्रैल है और आज ही के दिन आरा से लगभग 15 किलोमीटर दूर सलेमपुर गांव में वहां के लोग अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं यह वह लोग हैं जो अंग्रेजी हुकूमत में वीर बांकुड़ा बाबू कुंवर सिंह के साथ अंग्रेजो के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता की लड़ाई लड़े थे.




सलेमपुर ग्रामीण इलाके के लोगों ने आज अपने गाँव के स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया. सुबह की शुरुआत सुबह स्कूली बच्चों द्वारा प्रभात फेरी से की गई और स्वतंत्रता सेनानी अमर रहे के उदघोष से सलेमपुर और आसपास का इलाका ओजपूर्ण हो गया. सलेमपुर ब्रांड के टी शर्ट पहने सभी वर्ग, धर्म, जाति के लोग मानो एक से दिख रहे थे और क्या अदभुत नजारा था.

एक कहावत है कि जब धरती से पूर्वज अपना शरीर त्यागते हैं तो वे पंचतत्व में विलीन होने के बाद अपने पुण्य कर्मों से तारों के रूप में आसमान में दिखाई देते हैं. आज आसमान से वे तारे अपने नन्हे पुष्पों को इस जोश के साथ देखकर गर्वन्वित हो रहे होंगे कि उन्होंने अपने संस्कारों को 21 सदी की पीढ़ी तक सींचा है.

प्रभात फेरी के बाद पाँच किलोमीटर का मैराथन दौड़ का भी आयोजन किया गया. उक्त आयोजन गाँव के अग्रज मनोज दुबे के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ. मन गर्व से फ़ुल रहा था, आज आसमान, गंगा और सलेमपुर तीनों का रंग एक हो गया था मानो सभी एक दूसरे को अपने आप में देख रहे हो.

सलेमपुर का इतिहास
सलेमपुर भोजपुर मुख्यालय आरा के उतरी भाग में बसा एक गाँव है. जिसके उतरी भाग में माँ गंगा की कलकल करती धारा बहती रहती है. नदी श्रेष्ठ गंगा की निर्मल धारा इस गांव को सदियों से मिलता रहा है. यह गाँव अपने आप में एक आइकॉनिक गाँव है. इस गाँव का इतिहास, भूगोल बड़ा ही शानदार रहा है और यह संभव हुआ है इस गांव और इस क्षेत्र के पूर्वजो की वजह से. उनके कारनामे, उनके जुझारुपन और उनकी दृढ़ता ने इतिहास रचा है. सलेमपुर गांव के निवासी मनोज दुबे जो वर्तमान में दिल्ली में रहते हैं और निठाह भोजपुरिया व आखर के गिने चुने सदस्यों में से एक हैं वे आज के दिन को याद करते हुए अपने पोस्ट में लिखते हैं कि उनके गाँव यात्रा के दौरान उनके आदरणीय मनन चाचा ने बताया कि उनके दादाजी स्वर्गीय राजकुमार दूबे महान स्वतंत्रता सेनानी थे और वे वीर बांकुड़ा बाबू कुँवर सिंह के साथ आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो के खिलाफ लड़े थे.

वे अपने भावों को भोजपुरी भाषा में कुछ यूं व्यक्त करते हैं:
जहा बहेले गंगीया माइ
जहा के पहलवानी ह परछाई
जहा के भासा ह भोजपुरी
ओहिजे के न हमनी के हयी जा सलेमपुरिहा

जहा के हवे मनन चाचा जहा के हवे आसुतोष बाबा
जहा पुजाले सोखा बाबा
जहा जयकारा लागे
जय लछराम बाबा
जहा के बोली ह भोजपुरिया
ओहिजे के न हयी जा हमनी के सलेमपुरिहा “

वे कहते हैं कि लिखना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन उन्हें इस बात का मलाल है कि दिल्ली में रहने और काम से छुट्टी न मिलने के कारण ऐसे पवित्र पावन अवसर पर वे गाँव की गौरवशाली मिट्टी पर नही पहुंच पाए हैं.

लेकिन वे खुश हैं और धन्यवाद देते हैं तमाम ग्रामवासियों को कि जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाया. खुशी इस बात की है कि नई पीढ़ी के बच्चों ने इस ऐतिहासिक क्षण को याद कर लिया है और इस कार्यक्रम को वे खुद मना रहे हैं जो यह बतलाता है कि वे अपने पूर्वजों और मिट्टी के प्रति कितने सजग हैं. वे इस आयोजन के लिए मनन चाचा को भी विशेष आभार शानदार आयोजन कब लिए देते हैं जिन्होंने सबके बीच अच्छे तालमेल से कार्यक्रम को कराया. उन्होंने सभी स्वतँत्रता सेनानियों को भी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है.

आभार :

प्रस्तुति : ओ पी पाण्डेय

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