मानवाधिकार हनन पर कार्रवाई तय
पी यू सी एल ने जारी की बिहार के छात्रों शिक्षकों के मानवाधिकार हनन संबंधी रिपोर्ट
Patna now special report
पटना,4 नवम्बर(ओ पी पांडेय). अभिवंचित समाज के मानवाधिकार की रक्षा के प्रति समर्पित संस्था पीयूसीएल के द्वारा छात्रों-शिक्षकों के मानवाधिकार हनन पर स्वतः संज्ञान जाँच रिपोर्ट जारी करने का निर्णय लिया गया. पीयूसीएल ,बिहार राज्य इकाई की बैठक में समाचार माध्यमों से मिली जानकारी के आधार पर बिहार सरकार के प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक के विद्यालयों में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं का नामांकन रद्द किए जाने को असंवैधानिक और शिक्षा अधिकार के हनन के रूप में देखा गया. इसके साथ ही ग्रीष्मावकाश रद्द किए जाने को भी अशैक्षिक कार्रवाई के रूप में देखा गया एवं न्यायिक फ़ैसलों के विरूद्ध भी माना गया। ग्रीष्मावकाश में कक्षा-संचालन के कारण सैकड़ों छात्र-छात्राओं और शिक्षकों के बीमार पड़ने तथा दर्जनों की मृत्यु की खबरों को नौकरशाही के अमानवीय और आपराधिक कृत्य के रूप में देखा गया. इन मामलों को मानवाधिकार की दृष्टि से गंभीर माना गया.
अत: बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के द्वारा संचालित प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक राजकीयकृत विद्यालयों के 2 करोड़ 80 लाख से ज्यादा शिक्षार्थियों व 6 लाख 37 हजार शिक्षकों के मानवाधिकार हनन के मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए पीयूसीएल, बिहार राज्य इकाई के द्वारा उपर्युक्त मामलों के अध्ययन, तथ्य-संग्रह, निष्कर्ष और अनुमोदन के लिए डॉ. अनिल कुमार राय और श्री पुष्पराज की दो सदस्यीय समिति गठित की गई.
इस द्वि सदस्यी जाँच रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा का अधिकार, शिक्षकों के संघ-निर्माण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जान-बूझकर कुचला गया है संविधान और मानवाधिकार की दृष्टि से आपराधिक कृत्य है. यह आपराधिक कृत्य पूर्व अपर मुख्य सचिव के. के. पाठक पर कार्रवाई सुनिश्चित हो,उनके प्रतारणात्मक रवैये के कारण कई शिक्षकों और छात्रों की जानें गयीं.
उच्च अधिकारियों को यह अनुदेश दिया जाना चाहिए कि वे अपने कनिष्ठ अधिकारियों एवं कर्मियों से भी शिष्टाचारपूर्वक एवं सदाशयता से पेश आएँ. ग्रीष्मावकाश के दौरान कार्यपालन करते हुए मृत शिक्षकों को ड्यूटी पर मरनेवाले कर्मचारियों की श्रेणी में परिगणित किया जाये और उनके परिजनों को उसी तरह मुआवज़ा, आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नौकरी एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान की जायें. यदि शिक्षक नियोजित हैं तो भी. ग्रीष्मावकाश के दौरान कक्षा संचालन के क्रूर आदेश के कारण जो शिक्षक, कर्मी और छात्र बीमार हुए, उन्हें भी मुआवज़ा दिया जाये.
के. के. पाठक के कार्यकाल में जिन शिक्षकों पर बोलने, विरोध करने, सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देने आदि का अभियोग लगाकर वेतन बंद करने, निलंबित करने या बर्खास्त करने की कार्रवाई हुई है, उसे अविलंब वापस लिया जाये.अपनी भूल को स्वीकार करते हुए विभाग शिक्षकों से माफ़ी माँगे. शिक्षा विभाग के अनुचित आदेश के कारण लाखों बच्चे स्कूल से बाहर हुए और ग्रीष्मावकाश में स्कूल खोले जाने के कारण अनेक बच्चे बीमार हुए और मृत्यु को प्राप्त हुए. शिक्षा विभाग अपने इस अपराध को स्वीकार करते हुए अभिभावकों से माफ़ी माँगे.
के. के. पाठक के आदेश के कारण जिन बच्चों का नाम स्कूल से काट दिया गया, उनकी सूची से पुनर्नामांकित बच्चों की सूची का मिलान किया जाये और जो बच्चे पुनर्नामांकन से वंचित रह गये हैं, उन्हें बिना शर्त यथाशीघ्र विद्यालय में प्रवेश दिया जाए. ऐसे बच्चों के लिए विशेष कक्ष का संचालन करके शैक्षिक क्षतिपूर्ति की जाये. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के पद पर रहते हुए के. के. पाठक के द्वारा स्वयं या उनके निर्देश पर अनेक असंगत और न्याय-विरोधी आदेश पारित किए गए थे. इसलिए उनके कार्यकाल के आदेशों-निर्देशों की पुनर्समीक्षा की जाये और असंगत एवं न्याय-विरोधी आदेशों को निरस्त किया जाए.
राइट टू एजुकेशन फोरम भोजपुर के संयोजक रवि प्रकाश सूरज ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इस जाँच रिपोर्ट का अवलोकन किया जाए और प्रकाशन सुनिश्चित हो ताकि मृत शिक्षकों एवं पीड़ितों को समुचित न्याय प्राप्त हो सके.