फिल्म मसान के निर्देशक नीरज घेवन ने बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम और कला संस्कृति विभाग, बिहार के संयुक्त तत्वावधान आयोजित पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में ‘हिंदी क्षेत्र में हिंदी सिनेमा’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में कहा कि आज लोकलाइजेशन का दौर है, इसलिए सिनेमा के माध्यम से भी आज लोग ऐसी ही फिल्में पसंद कर रहे हैं. आज हम 50 – 60 के दशक के शहरों को उस समय फिल्माई गई लोकशन के माध्यम से ही जान पाते हैं। हालांकि आज इसमें कमी आई है. हिंदी क्षेत्र पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी सिनेमा में उत्तर भारत के छोटे शहरों का प्रजेंटेशन व्यंगात्मक तरीके से होता रहा है. मुझे लगता है कि यह भी हिंदी सिनेमा की एक समस्या रही है. हम लोग छोटे शहरों को भी प्रजेंट करने की लगातार कोशिश करते हैं. कांस फिल्म फेस्टिवल के अनुभव को शेयर करते हुए उन्होंने बताया कि कांस में अपनी फिल्म का प्रतिनिधित्व करना काफी आनंददायक पल था. वहां से इंटरटेंनमेट एक नई परिभाषा से भी रूबरू होने का मौका मिला. सिटी मारना, लड़की के शरमाने पर या किसी जाेक पर हंसना ही इंटरटेनमेंट नहीं है, सोचना भी इंटरटेनमेंट है.
मसान की चर्चा करते हुए घेवन ने कहा कि फिल्म में स्क्रीप्ट सर्वोपरि है. इससे उपर कुछ भी नहीं है. मैं भी इसका गुलाम हूं. इसलिए मैं अपने फिल्म केे स्टार से स्क्रीप्ट के अनुसार किरदार की उम्मीद करता हूं. उन्होंने कहा कि कॉमर्सियल और समानांनतर फिल्मों का दायरा अब सिमट रहा है. अच्छी कहानी पर बनी फिल्में ही अब लोगों को पसंद आ रही है. वहीं, फिल्म मसान के अभिनेता संजय मिश्रा ने कहा कि बिहार में फिल्म संस्कृति विकसित करने के लिए यहां फिल्मों का माहौल बनाना पड़ेगा. ऐसा नहीं कि बिहार पर सिनेमा नहीं बन रही है. लेकिन हमें ये समझना होगा कि सिनेमा बिहार पर बनी या फिर शूटिंग से लेकर रीलीज तक की पूरी प्रक्रिया बिहार में हो. उन्होंने कहा कि मुझेे अब आश्चर्य होता है कि अधिकतर फिल्में अब मुंबई से शूट की जा रही हैं.
बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार ने परिचर्चा में शामिल होते हुए कहा कि सरकार अपनी नई फिल्म नीति के तहत फिल्म मेकरों हर वो बेसिक चीजें उपलब्ध कराएगी, जिनकी उनको जरूरत है. इसके लिए 10 अधिक राज्यों की फिल्म नीति का अध्ययन करने के बाद डिमांड, सब्सिडी, टैक्स और एग्जीवीटर जैसे की अहम मसले को लेकर जल्द ही एक फिल्म नीति राज्य सरकार की ओर से लागू की जाएगी. इससे फिल्म मेकरों को मेकिंग में सुविधा मिलेगी. इससे पटना फिल्म फेस्टिवल 2016 में मसान, चकल्लसपुर और डेड मैन टॉकिंग दिखाई गई.
उधर रविंद्र भवन में भोजपुरी फिल्म कब होई मिलनवा हमार, मगही फिल्म हैंडओवर और मैथिली फिल्म कहां दुख हारब मोर का प्रदर्शन हुए. इसके बाद आयोजित आपेन हाउस डिशकसन में मगही फिल्म के निर्देशक सौरभ कुमार, मैथिली फिल्म के अभिनेता फूल सिंह, भोजपुरी संगीतकार और निर्देशक रजनीश मिश्रा एवं भोजपुरी निर्माता अनंनजय रघुराज ने दर्शकों के सवालों का जवाब दिया. मैथिली फिल्म के अभिनेता फूल सिंह ने कहा कि भाषा कोई भी फिल्मों का संदेश ज्यादा मायने रखता है. रोटी की तरह मनोरंजन की भी आज जरूरत है. अश्लीलता पर उन्होंने कहा कि एक हद तक हर चीज की अहमियत है, मगर निर्भर ये करता है कि उसको हम किस रूप में देखते हैं. आज की ऑडियंस स्मार्ट है. उन्हें पता है कि क्या देखना चाहिए, क्या नहीं.
भोजपुरी संगीतकार और निर्देशक रजनीश मिश्रा ने कहा कि पटना में अपनों के बीच अपनी भावना व्यक्त करने का अनुभव काफी सुखद है. इसके लिए बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम और कला संस्कृति विभाग का आभार. भोजुपरी गानों को लेकर उन्होंने कहा कि जैसी भावना, जैसी सोच लोगों ही होती है, गाने भी वैसे ही पसंद किए जाते हैं. भोजपुरी फिल्मों में आठ से दस गाने तकरीबन फिल्माये जाते हैं, मगर लोगों को पसंद आइटम नंबर ही आता है. रोमांटिक और सिचुएशनल गाने लोगों को कम पसंद आते हैं. शादी, पार्टी, क्लब जैसे गानों के सार्वजनिक मंचों पर नाचने वाले गीत की पसंद किए जाते हैं. एक दौर था जब गानों के अलबम की सीडी या कैसेट्स होते थे. तब लोग मजबूरी में सभी गाने सुना भी करते थे, मगर अब ऐसा नहीं है. लोग ऐसे ही गाने आज अपने कलेक्शन में रखते हैं जो नाचने – गाने जैसा हो.
वहीं, भोजपुरी फिल्म पटना से पाकिस्तान के निर्माता अनंनजय रघुराज ने कहा कि बिहार में ऐसा आयोजन हो रहा है जब ये पता चला तो काफी खुशी मिली. इसकी चर्चा मुंबई के एफएम पर सुनी, तो लगा कि अब बिहार में भी फिल्मों की संस्कृति कायम करने के प्रयास हो रहे यह एक सराहनीय कदम हैं पटना फिल्म फेस्टिवल में हमें यह सम्मान मिल रहा है इसके लिए राज्य सरकार का धन्यवाद एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम सार्थक फिल्में बनाने की कोशिश करते हैं निरासा तब होती है जब अपने ही लोग भोजपुरी का नाम सुनकर नाक मुंह सिकोड़ लेते हैं हमारी भाषा और हमारी मिट्टी हमें प्रेरित करती है कि हम कुछ अच्छा करें उन्होंने भोजपुरी फिल्मों के दर्शकों की बात करते हुए कहा कि सिनेमा घरों में भोजपुरी फिल्मों को मिडिल क्लास और अपर क्लास के दर्शक इसलिए नहीं मिल पाते हैं कि वहां वैसी सुविधा नहीं होती है इसका ये मतलब नहीं है इन क्लास में भोजपुरी को अहमियत नहीं मिलती हमारे पाास अच्छी फिल्मों को भी रिलीज करने के लिए अच्छे हॉलस नहीं हैं जिनके कारण सिर्फ निम्न तबके के लोग ही वहां पहुंचते हैं अगर सरकार इस दिशा में कोई पहल करे, तो हमारी क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों को भी प्रोत्साहन मिलेगा और अच्छी फिल्में बनेंगी.
फिल्म फेस्टिवल में तीसरे स्क्रीन पर परशॉर्ट एवं डॉक्यमेंट्री फिल्मों भी दिखाई गई अंत में सभी अतिथियों को बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार ने शॉल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया इस दौरान बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम की विशेष कार्य पदाधिकारी शांति व्रत, अभिनेता विनीत कुमार, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, फिल्म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा मौजूद रहे कल रविंद्र भवन में दोपहर तीन बजे भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन ओपेन हाउस में लोगों से बातचीत करेंगे.