संविधान की आत्मा के प्रतिकूल है एससी के उपवर्गीकरण का सुप्रीम अदालत का आदेश
संजय मिश्र,दरभंगा
अनुसूचित जाति कर्मचारी संघ दरभंगा के जिला उपाध्यक्ष सह रविदास सेवा संघ दरभंगा के अध्यक्ष बलराम राम ने कहा है कि एससी के कुछ लोगों की उन्नति पूरे समाज की उन्नति का परिचायक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का अनुसूचित जाति में उपवर्गीकरण का आदेश संविधान की आत्मा के प्रतिकूल है. भारत में सन 1935 में ही अनुसूचित जाति को लिस्टेड किया गया.
संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों का विवरण है जिसमें राज्यों द्वारा हस्तक्षेप की इजाजत नहीं है. वर्तमान में देश में 1002 अनुसूचित जातियां हैं. सन 1950 में जब भारत में संविधान लागू हुआ तब अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को अंबेडकर के प्रयासों से आरक्षण प्राप्त हुआ. आरक्षण की चार श्रेणियां हैं. पहले पॉलिटिकल रिजर्वेशन दूसरा रिजर्वेशन इन एजुकेशन तीसरा रिजर्वेशन इन एंप्लॉयमेंट और चौथा रिजर्वेशन इन प्रमोशन. भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 एवं 16 मूलभूत संवैधानिक अधिकार है जिसके तहत अनुसूचित जाति को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दिया गया. अनुच्छेद 332 में अनुसूचित जातियों को विधानसभा एवं लोकसभा में आरक्षण दिया गया.इसके पीछे समझ थी कि एससी समूह के लोगों को वर्षों तक प्रताड़ित किया गया. इससे उबारने हेतु ऐसी व्यवस्था की गई थी.
बलराम राम ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उक्त बातें कही हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि अनुसूचित जाति का किसी एक पीढ़ी द्वारा तरक्की कर लेने से पूरे अनुसूचित जाति का तरक्की नहीं हो सकता. अनुसूचित जाति का कोई व्यक्ति अधिकारी बन जाए या राजनीति में ऊंचा पद प्राप्त कर ले तो इससे पूरे समाज का तरक्की हो गया ऐसा नहीं माना जा सकता. अनुसूचित जाति को आरक्षण देने का मूल आधार हिंदू समाज में व्याप्त छुआछूत और सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक पिछड़ापन रहा है. आज भी दलित समाज इसका शिकार होता रहता है.
संघ नेता ने कहा कि अनुच्छेद 341 के अनुसार अनुसूचित जाति एक समान समूह को प्रतिबिंबित करता है उसमें विभाजन नहीं किया जा सकता. अनुसूचित जाति समाज में समानता लाने के लिए सकारात्मक उपाय की आवश्यकता है न कि अनुसूचित जाति में उप वर्गीकरण करने की.