‘पलटीमार राजनीति के चैम्पियन हैं नीतीश कुमार’

प्रवीण बागी की कलम से

‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे,
तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे,
तब तुम मेरे पास आना प्रिये’,
भाजपा के नेता आजकल नीतीश कुमार के लिए यही गाना गुनगुनाते होंगे. भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नीतीश कुमार को अपने निकट पाकर भले ही खुश हो लेकिन बिहार के पार्टी कार्यकर्ता हतप्रभ हैं. कल तक जिसके खिलाफ वे झंडा उठाए घूम रहे थे, अब उसकी जयकार करने की मज़बूरी है. पार्टी कार्यकर्ता खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. लेकिन इसकी परवाह किसे है?

यह ठीक है कि सत्ता हासिल करना राजनीतिक दलों का मूलभूत उद्देश्य होता है, लेकिन उसका भी कुछ प्रोटोकॉल होता है, एक तहजीब होती है, नीति होती है. जनता का विश्वास हासिल कर सत्ता में आना और जनता के कल्याण के लिए सत्ता का इस्तेमाल करना ही लोकतंत्र है. लेकिन बिहार में जो राजनीतिक घटनाक्रम हुआ वह इन सबसे परे है. यह राजनीतिक अवसरवाद का निकृष्टम उदहारण है. बिहार में जो हो रहा है वह लोकतंत्र नहीं धतकर्म है. नीतीश इस धतकर्म के माहिर खिलाड़ी हैं. अपनी कुर्सी बचाने के लिए बारंबार नट की तरह सत्ता की डोर पर कलाबाजी दिखाना और गुलाटी मारना उनका स्वभाव बन गया है.




यहां यह याद दिलाना जरुरी है कि नीतीश इंडि गठबंधन के संस्थापक थे. उन्होंने ही घूम -घूम कर सभी विपक्षी नेताओं से बात की थी और साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया था. विपक्ष की पहली बैठक उन्हीं की पहल और आमंत्रण पर पटना में हुई थी. बेशक इसके पीछे कांग्रेस की सहमति थी लेकिन पहल नीतीश की ही थी. तब उन्होंने कहा था कि वे विपक्ष को एकजुट करने के लिए काम करना चाहते हैं ताकि भाजपा को केंद्र की सत्ता से हटाया जा सके. तब नीतीश के मन में प्रधानमंत्री की कुर्सी थी। लेकिन यह इच्छा उन्होंने खुद कभी जाहिर नहीं की लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं ने इसके लिए माहौल बनाने की पुरजोर कोशिश की. पर पीएम की कुर्सी उनसे दूर होती गई. ‘इंडिया’ पर कांग्रेस ने कब्ज़ा कर लिया और नीतीश को हासिए पर ठेल दिया गया.

इसके बाद उनके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी खतरा पैदा हो गया. लालू प्रसाद की तरफ से तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था. यहाँ तक कि जदयू को तोड़ कर तेजस्वी को सीएम बनाने का तानाबाना बुना जाने लगा. इसमें ललन सिंह के भी सहयोग की चर्चा जब आम हुई तो आनन फानन में उन्हें अध्यक्ष पद से हटाकर खुद उस कुर्सी पर बैठ गए. फिर भी सीएम पद छोड़ने का दबाव कम नहीं हुआ. उधर भाजपा पर लोकसभा की 40 में से 39 सीटों पर जीत को दोहराने का दबाव था. यह नीतीश के साथ से ही हो सकता था। उधर नीतीश सीएम की कुर्सी बचाए रखना चाहते थे. दोनों को एक दूसरे की जरुरत थी. इसी जरुरत ने भाजपा -जदयू को फिर से साथ लाया.

यह तो हुई अंदर की बात. नीतीश कुमार को यह बताना चाहिए कि भाजपा में अचानक ऐसी क्या बुराई आ गई थी कि उसे छोड़ कर राजद के साथ चले गए थे ? फिर अचानक भाजपा में उन्हें क्या अच्छा दिखा कि फिर उसके साथ आ गए ? भाजपा तो जो कल थी वही आज भी है! फिर पलटने की वजह क्या रही? इसी तरह राजद में उन्हें कौन का सतगुण दिखा कि भाजपा से नाता तोड़ वे उसके संगी हो गए, फिर अचानक क्या दुर्गुण दिखा की कन्नी काट लिए ? यह कौन सा खेल है नीतीश जी?
कल तक नीतीश कुमार में दुनिया का हर दुर्गुण देखनेवाली, उन्हें बीमार और मानसिक रोगी बतानेवाली भाजपा को भी यह बताना चाहिए कि रातोरात नीतीश जी में उन्हें क्या सुधार दिखा कि पुनः उनके आज्ञाकारी सहयोगी बन गए हैं? यह कैसी पॉलिटिक्स है ? जहानाबाद के उस कार्यकर्ता की आत्मा को भाजपा नेता क्या मुंह दिखाएंगे जिसकी मौत पटना में भाजपा के प्रदर्शन में पुलिस की पिटाई से हुई थी? उस लाठी चार्ज को जदयू और राजद जायज ठहरा रहे थे. भाजपा अब किस मुंह से उसकी आलोचना करेगी? भाजपा नेता कार्यकर्ताओं को अपना मुख्यमंत्री और अपनी सरकार का जो सपना दिखाते आ रहे थे, उस सपने का क्या होगा?
क्या यह माना जाए की कार्यकर्ताओं को गुमराह किया जा रहा था ?
सत्ता लोलुपता के सन्दर्भ में भाजपा, जदयू या राजद में कोई अंतर दिखता है क्या ? पाला बदल कर नीतीश कुमार 9 वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं. यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है. सर्वाधिक लम्बे काल तक बिहार का मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड नीतीश कुमार के नाम जरूर दर्ज हो गया है. लेकिन इस बाजीगरी से बिहार की प्रतिष्ठा गिरी है. नेताओं की विश्वसनीयता पेंदे में चली गई है. ऐसी पलटीमार राजनीति से बिहार का कोई भला होनेवाला नहीं है.

सबसे बड़ा संकट भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के सामने आ खड़ा हुआ है. भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने केसरिया पगड़ी बांधनी शुरू कर दी थी. उन्होंने कहा था कि यह पगड़ी नीतीश कुमार को सत्ता से हटाने के बाद ही खोलेंगे. नीतीश ने ऐसी कलाबाजी दिखाई कि सम्राट ने जिसको हटाने का संकल्प लेकर पगड़ी बंधी थी उसी के नेतृत्व में वे उप मुख्यमंत्री बन गए हैं. सूत्रों के मुताबिक भाजपा कोर टीम की बैठक में उन्होंने अपनी पीड़ा खुलकर रखी. उन्होंने पूछा कि अब वे क्या करेंगे ? बताते हैं की वे इस समझौते के पक्ष में नहीं थे। लेकिन उन्हें पार्टी के फैसले को मानना पड़ा.
भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पूर्णिया की जनसभा में घोषणा की थी कि नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे सदा के लिए बंद हो गए हैं. यह बात उन्होंने तीन बार दोहराई थी. लेकिन नीतीश तो बाजीगर हैं। उनके पास हर दरवाजे की चाभी रहती है. जब चाहते हैं अपनी सुविधानुसार दरवाजे खोल लेते हैं. उनके लिए कभी कोई दरवाजा बंद नहीं होता. अमित शाह को बिहार की जनता को बताना चाहिए कि ऐसा क्या हो गया की नीतीश के लिए सदा के लिए बंद दरवाजा खोलना पड़ा ? अब कौन उनकी बात पर भरोसा करेगा ?

नीतीश पत्रकारों से बारबार कहा करते थे कि -आप पर दिल्लीवालों का कब्ज़ा है. आप वही दिखाएंगे और लिखेंगे जो आपको दिल्लीवाला कहेगा. अब वे खुद उसी दिल्लीवाले के कब्जे में चले गए. अब उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी यह देखना दिलचस्प होगा. एनडीए के सहयोगी दल रालोसपा और लोजपा (रामविलास) भी भाजपा के इस फैसले से हतप्रभ हैं. नाखुश हैं. उन्हें मनाने में भाजपा को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. यह कहने में कोई गुरेज नहीं की नीतीश कुमार राजनीति के वे दूल्हे हैं जिनकी पालकी उठाने के लिए हर पार्टी तैयार रहती है. वे बिहार की अवसरवादी राजनीति के चैम्पियन बन चुके हैं.

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प्रवीण बागी देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

By dnv md

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