विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ ने दिया सम्मान
डॉ० चन्द्रेश्वर, उत्तर प्रदेश को उनकी सुदीर्घ हिन्दी सेवा, सारस्वत साधना, कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ, शैक्षिक प्रदेयों, महनीय शोधकार्य तथा राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के आधार पर इस विद्यापीठ की अकादमिक परिषद की अनुशंसा पर विद्यासागर उपाधि प्रदान की जाती है.
चंद्रेश्वर का 30 मार्च 1960 को बिहार के बक्सर ज़िले के आशा पड़री गांव के एक सामान्य किसान परिवार में जन्म हुआ .उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, प्रयागराज से चयनित होने के बाद 01 जुलाई 1996 से एम.एल.के.पी.जी. कॉलेज, बलरामपुर में हिन्दी विषय में शिक्षण का कार्य आरंभ किया। 26 वर्षों के शिक्षण कार्य के बाद 30 जून 2022 को विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्ति के बाद लखनऊ में रहते हुए स्वतंत्र लेखन कार्य करते हैं.
हिन्दी-भोजपुरी की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में 1982-83 से कविताओं और लेखों का लगातार प्रकाशन ,अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित ,तीन कविता संग्रह -‘अब भी’ (2010), ‘सामने से मेरे’ (2017), ‘डुमराँव नज़र आयेगा’ (2021).एक शोधालोचना की पुस्तक ‘भारत में जन नाट्य आंदोलन'(1994) एवं एक साक्षात्कार की पुस्तिका ‘इप्टा-आंदोलनःकुछ साक्षात्कार’ (1998) का प्रकाशन. भोजपुरी कथेतर गद्य की दो पुस्तकें –‘हमार गाँव’ ( 2020), ‘आपन आरा'( 2023) एवं ‘मेरा बलरामपुर’ (हिन्दी में कथेतर गद्य, 2021-22) का भी प्रकाशन भी हुआ.
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