चार दिवसीय सामुहिक कला- प्रदर्शनी ‘तू.. झूम! का आयोजन दिल्ली में




‘अनुपमा’ बैनर के अंतर्गत ” सम्मानित पत्रकार, राजनयिक और पूर्व राज्यसभा सदस्य एच.के. दुआ करेंगे उद्घाटन

अनीता कुमारी की कलाकृतियां हमें अपनी जड़ों से, अस्मिता से जुड़ने का संकेत देती हैंधनंजय सिंह

यह कला-प्रदर्शनी मूर्त अमूर्त के मध्य एक संकल्पित झूले में झूलने का आमंत्रण हैं


कवि मूर्त और अमूर्त उन रंग-आकृतियों की लहरों में झूमने की बात करते हैं जिसमें तीनों युवा कलाकार अपनी कलाकृतियों के माध्यम से मनुष्य को भौतिक सीमाओं तथा सांसारिक व्यामोहों से छुटकारा पाने में सहायता करते हुए अपने सहज संयोजन के साथ कल्पनाशीलता के मनोरम संगम में झूमने को बीकानेर हाउस में आमंत्रित कर रहे हैं प्रदर्शनी में शामिल चित्रकारों में प्रमुख अमूर्त कलाकार प्रियंका सिन्हा उक्त कला-प्रदर्शनी के क्यूरेटर का दायित्व भी निभाते हुए अपने साथ मूर्त चित्रकार अनीता कुमारी और सुधीर पंडित आदि कलाकारों के साथ कुछ मूर्त कुछ अमूर्त कलाकृतियों के माध्यम से जीवन की उन जटिल अनुभूतियों को अपनी अभिव्यक्तियों में व्यक्त करने का एक सतत सकारात्मक पक्ष प्रस्तुत कर प्रेक्षक के सम्मुख उपस्थित हैं.चार दिवसीय संभावना शील परम्परा की पीढ़ी में चित्रकार प्रियंका सिन्हा अग्रणी कलाकार है जिन्होंने अपनी अमूर्त अभिव्यक्ति में एक लयात्मक गति और अद्भुत संयोजन के बल पर अपने व्यापक अनुभवों को बड़ी सहजता से समेटकर अभिव्यक्त करती है. मेरा उनसे और उनके सृजन कर्म से विगत चार-पाँच बरस का गहरा ताल्लुक़ और एक जिज्ञासु मनोमय विचारों का आदान-प्रदान होता रहता है. यह सत्य है कि पूरे ब्रह्मांड में अस्सी प्रतिशत अमूर्तन व्याप्त है और मात्र बीस प्रतिशत मूर्तनता… बावजूद विडंबना देखिए कल्पना यथार्थ से बड़ी नही हो सकी.. इसीलिए चर- चराचर जगत में मूर्त के बिना अमूर्त और अमूर्त के बिना मूर्त की कल्पना करना व्यर्थ है. .. इस कला- प्रदर्शनी में एक तरफ जहां प्रियंका सिन्हा के अमूर्त चित्रों के अलावा उनकी सहपाठी कलाकार अनीता कुमारी की मूर्त कलाकृतियों के साथ भी आपको झूमने का अवसर मिलेगा.

अनीता कुमारी की कलाकृतियों में आधुनिकता के साथ-साथ पारंपरिक अनुष्ठानों के पौराणिक वातावरण से अनुप्राणित और नवीन कथ्य के अनुरूप अपनी बानगी प्रस्तुत करती है… यद्यपि विषय में चित्रकार अनीता अपने भाव अनुकूल अभिव्यक्ति के लिए प्रयासरत हैं और कुछ हद तक सफल भी.. सौंदर्यबोध उनके चित्त में और चित्र दोनों में साफ साफ नजर आता है… चित्रकार सुधीर कुमार पंडित जी व्यावसायिक कलाकारों में एक सुपरिचित नाम हैं कला जगत में इनके प्रयास और योगदान उल्लेखनीय रहे हैं. आप तीनों कलाकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों पर और विस्तार से बात करने के लिए न सिर्फ मुझे अपितु समस्त कला-प्रेमीयों को एक बार कला-वीथिका में घूमने या यूँ कहें कि कलाकारों के बहुरंगी भावों के संग झूमने अवश्य आना चाहिए और संवेदनशील कलाकारों के कला संस्कार की रंगीन पट्टियों में अवश्य गोते लगाना चाहिए.क्यूंकि यहां मौजूद हैं कलाकारों की समझ, संवेदना और सौंदर्य दृष्टि से उपजी कृतियाँ.


इस प्रदर्शनी में चित्रकार प्रियंका की कलाकृतियों में मौजूद अमूर्त चित्र दर्शकों के मन में एक उत्सुक भाव भरते हैं,उनका अमूर्तन किसी चित्र-धारा विशेष में ठहरा हुआ अमूर्तन नही है यद्यपि उसकी रचना – विधि में प्रकट होने वाले बिम्बों-आकारों में, उसके रंग प्रयोग में, एक विविधता के साथ चित्रकार की उपस्थिति भी एक मौलिकता का सत्यापन है,उनके रंगों की धारीयों-लकीरों को एक प्रबल व लयात्मक संवेग के साथ स्वाभाविक रूप से हरे,नीले, सफेद, पीले आदि मनःस्थितियों की जो रंगते फलक पर फैली हुई हैं उनमें एक गहरी इंद्रियता निहित है और वे प्रकृति की ओर झुके हुए रंग हैं यानी प्राकृतिक दृश्यों के निकट के रंग हैं जिसमें एक अलग ही उजास मौजूद है .

दरअसल यह प्रदर्शनी एक काम तो यही करती है कि वे कई तरह के सन्दर्भ बनाती है या कई तरह के सन्दर्भों की ओर हमें ले जाती है और स्वयं किसी चित्रकार विशेष के कार्यों को हमें कई तरह के सन्दर्भों में रखने-परखने के लिए उकसाती हैं या यूँ कहें कि स्वयं ही उस चित्रकार के संसार के कुछ या कई पहलुओं की ओर एकाग्र भाव से इशारा करती हैं. चित्रकार प्रियंका के अभिव्यक्ति का यह स्वरुप मुझे विशेष रूप से आकर्षित करता रहा है अर्थात मैं कह सकता हूं कि प्रियंका के केनवास पर तैरते रंगों की अंतरंगता,आंखों और मन को जिस तरह से तरंगित करती है, उसका अपना ही एक आस्वाद है…उनके काम अपने दर्शक को अनुप्राणित करने की क्षमता रखते हैं.

दूसरी ओर चित्रकार अनीता कुमारी हैं जो कि एक कला अध्यापक भी हैं जो अपने भाव अभिव्यक्ति में मूर्त और जाने-पहचाने आकृतियों के साथ एक पौराणिक संकल्पना लिए हुए श्रंगारिक सौंदर्यबोध का सूत्रपात करते हुए जीवन और कला के दायित्वों का निर्वहन बड़ी संलग्नता के साथ निभाते हुए प्रतीत जान पड़ती हैं.एक तरफ जहां प्रियंका के अमूर्त चित्र तात्विक अन्वेषण करते हुए धैर्य तथा बहुत अधिक समय की माँग करती हैं क्यूंकि अमूर्त कला एक संवेदनशील तथा मनोवैज्ञानिक स्तर पर अवस्थित एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ भौतिक संपन्नता कोई प्रभाव नहीं डाल पाती क्यूंकि जब सारे प्रयास भौतिक साधनों की ओर उन्मुख हों तो शांति और आत्मतोष की कमी हो जाती है ऐसी स्थिति में नैतिकता और विवेक तथा मनुष्य की छठी इंद्रिय के रूप में व्याप्त “धर्म ” ही एकमात्र उपचार बचता है जिसके लिए हमें चित्रकार अनिता कुमारी की कलाकृतियों पर एक नजर अवश्य ही डाल लेनी चाहिए.अनीता कुमारी की कलाकृतियां हमें अपनी जड़ों से, अस्मिता से जुड़ने का संकेत देती हैं. .. मैं एक कला मीमांसक के नाते फिर से यही कहना चाहूँगा कि यह कला-प्रदर्शनी मूर्त अमूर्त के मध्य एक संकल्पित झूले में झूलने का आमंत्रण हैं, दो भिन्न कलात्मक रंगीन पट्टियों के साथ झूमने का एक सकारात्मक प्रयोजन है जिसके पीछे नेपथ्य में कलाकारों के लंबे संघर्ष और जीवन में आए उतार-चढाव का एक मानवोचित दर्पण हैं.

रवींद्र भारती

By pnc

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