पटना।। शिक्षा विभाग को राज्यपाल की सार्वजनिक तौर पर दी गई चेतावनी के बाद अब बिहार लोक सेवा आयोग ने भी शिक्षा विभाग को बड़ी और कड़ी चेतावनी दी है. दरअसल बिहार लोक सेवा आयोग 179000 से ज्यादा पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति कर रहा है. इस दौरान माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षकों के पद के लिए अभ्यर्थियों के सर्टिफिकेट का वेरिफिकेशन हो रहा है.
वेरिफिकेशन की प्रक्रिया में बड़ी संख्या में शिक्षक और शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों को भी प्रतिनियुक्त किया गया है. इस प्रतिनियुक्ति पर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के पाठक ने आपत्ति जताते हुए बिहार लोकसभा आयोग को पत्र लिखकर शिक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारियों और शिक्षकों की प्रतियोगिता खत्म करने को कहा था. इसके बाद बिहार लोक सेवा आयोग में इसे गंभीर मामला मानते हुए शिक्षा विभाग को पत्र जारी किया है.
बिहार लोकसभा आयोग के सचिव रवि भूषण ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक को पत्र लिख कर हिदायत दी है कि दोबारा इस तरह का पत्र जारी करने की दृष्टि न करें जो भी कहना है वह सरकार को कहें.
क्या लिखा है पत्र में
बीपीएससी सचिव ने लिखा है कि प्रमाणपत्रों का सत्यापन पूर्व प्रचलित व्यवस्था के अनुरूप दो स्तरों पर किया जाता रहा है पहले आयोग के स्तर से जो परीक्षा फल के अंतिम प्रकाशन के पूर्व किया जाता है और दूसरा अधियाची विभाग के स्तर से जो सफल अभ्यर्थियों के नियोजन के समय किया जाता रहा है. दोनों का अपना-अपना औचित्य है और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. बिना अपने स्तर से सत्यापन कार्य के आयोग के द्वारा न ही कोई अनुशंसा भेजी जा सकती है और न ही कोई डोसियर. आयोग के इस सत्यापन कार्य में राज्य सरकार हमेशा सहयोग करती रही है और इसके लिए किस विभाग के किस पदाधिकारी / कर्मों को प्रतिनियुक्त किया जाए यह राज्य सरकार का विषय है. इस सम्बन्ध में कोई आपति / अनुरोध राज्य सरकार से किया जाना चाहिए .
यह स्पष्ट रहे कि सत्यापन का यह कार्य आयोग की आतंरिक प्रक्रिया का मामला है और यह आयोग शिक्षा विभाग या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन नहीं है. यह स्पष्ट न हो तो संविधान के सुसंगत अनुच्छेदों का अध्ययन कर लिया जाए। यह भी स्पष्ट रहे कि आयोग के आंतरिक प्रक्रिया के औचित्य पर प्रश्नचिह्न लगाना या इसमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप करना और इस प्रकार आयोग पर दबाव डालने का प्रयास करना असंवैधानिक, अनुचित और अस्वीकार्य है. आश्चर्य है कि विभाग इन सब प्रावधानों को जानते हुए भी बिना प्रमाण पत्रों के सत्यापन के ही आयोग से अनुशंसा की अपेक्षा कर रही है. उपरोक्त के आलोक में निदेशानुसार कहना है कि भविष्य में इस तरह के पत्राचार की धृष्टता नहीं की जाय.
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