बटोही नाटक में दिखेगी भिखारी ठाकुर की जीवन यात्रा
ऋषिकेश सुलभ लिखित और अभय सिन्हा निर्देशित नाटक बटोही का मंचन
प्रेमचंद रंगशाला में 9 जुलाई और 10 जुलाई को होगा मंचन
बटोही इस एक शब्द में उनकी यायावरी, छटपटाहट और रचनात्मक बेचनी, सबकुछ है शामिल
समाज में फैले जातीय उत्पीड़न और शोषण ने भिखारी ठाकुर को उद्वेलित कर दिया. स्थिति में बदलाव के नाटकों आदि माध्यमों का सहारा लिया और जन-जन में जागरुकता फैलाने के लिए निकल पड़े. भिखारी ठाकुर की यह जीवन यात्रा दिखेगी प्रस्तुति बटोही में जिसका मंचन भिखारी ठाकुर की 52 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दिनांक 09 जुलाई एवं 10 जुलाई 2023को संध्या 6:30 बजे प्रेमचंद रंगशाला,राजेन्द्र नगर ,पटना में आयोजित किया गया है . इस नाटक का आयोजन शनिवार और रविवार को प्रेमचंद रंगशाला किया गया है.
ऋषिकेश सुलभ के लिखे और अभय सिन्हा निर्देशित नाटक बटोही में दिखाया गया कि समाज में जाति के नाम पर भेदभाव, दलितों के साथ उत्पीड़न की घटनाएं देख भिखारी ठाकुर बेहद ही आहत हुए थे। नाटक के माध्यम से भिखारी ठाकुर के जीवन में घटी महत्वपूर्ण घटनाओं को दिखाया गया। इन घटनाओं का ही परिणाम था कि वह एक आम इंसान भिखारी ठाकुर से समाज को दिशा देने वाले भिखारी ठाकुर बने. नाटक में प्रकाश रौशन कुमार ,संगीत संयोजन रामकृष्ण सिंह और संगीत परिकल्पना नीलेश्वर मिश्रा का है.
बटोही भिखारी ठाकुर की रचनात्मक इस नाटक की केन्द्रीय चेतना है.यह नाटक उन चिन्ताओं स्थितियों और लोगों के बीच से गुजरने का प्रयास है जिनके रचनात्मक दबाव के कारण भिखारी ठाकुर जैसे कवि नाटककार रंगकर्मी ने आकार लिया वह समाज के अन्तिम कतार में खड़े लोगों के बीच पैदा हुए और उन्होंने वहीं से चुने अपनी रचना के बीज तत्व सामन्ती व्यवस्था की क्रूरताओं और जाति व्यवस्था के घिनौने आतंक के बीच अपने रंगकर्म से जीवन की पक्षधार का दुस्साहसी अभियान चलाने वाले भिखारी ठाकुर को रचते हुए लेखक ने तथ्यों से परे जाकर बहुत कुछ तलाशने की कोशिश की है. इस नाटक में कमला बबुनी की उपस्थिति ऐसी ही कोशिश का प्रतिफल है. ऐसे कई और चरित्र इस नाटक बटोही में शामिल है.
उनकी पत्नी मनतुरनी को लेखक ने एक ऐसी स्त्री के रूप में रचने का प्रयास किया है जो उपर से अनपढ़ दिखती है पर भीतर से बेहद संवेदनशील और सजग है.मनतुरनी के भीतर छिपा है स्त्री जीवन की पीड़ा का समुद्र। इसकी लहरों के थपेड़ों में भिखारी की दुर्बलताएँ बह जाती है. मनतुरनी उनके अन्तर्द्वन्द्वो को उजागर करती है और उनकी लालसाओं की दिशा मोडकर नई राहो की ओर संकेत करती है. कनला बबनी की दुख भी भिखारी ठाकुर को मॉजता है.
भिखारी ठाकुर को सृजन के लिए उकसाती है. तिवारी बहु मोती बहु और बुचिया जैसी स्त्रियों के जीवन का हाहाकार भिखारी ठाकुर के मन-प्राण अज़रन नाद की तरह की गूँजता है और ढलता है शब्दों मे, लय-ताल में, स्वरों में देह की गतियों मुद्राओं में यानी नाट्य की विभिन्न भगिनाओं में. बटोही इस एक शब्द में उनकी यायावरी, छटपटाहट और रचनात्मक बेचनी, सबकुछ शामिल है.
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