अश्लीलता धीरे धीरे कम हो जाएगी
कलाकारों की भाषाओं में कलाकारों के लिए रोजगार खड़ा होगा
सब बढ़ेंगे,हर क्षेत्र में रोज़गार बढ़ेगा
ओपी पाण्डेय
‘जैक्सन हॉल्ट’ फिल्म इन दिनों लोगों की जेहन में घूम रही है उसके निर्माता निर्देशक में बिहार में रह कर सारे संसाधनों के साथ फिल्म यहाँ के कलाकारों को लेकर फिल्म बनाते हैं और उनकी फिल्म सराही जाती है फिल्म जैक्शन हॉल्ट के निर्देशक नितिन चंद्रा बताते हैं कि स्थानीय कलाकारों को उनकी ही मातृभाषा में, बिहार में ही काम,स्थानीय भाषाओं में ज्यादा से ज्यादा साहित्य रचने की शुरुआत,पहले के लिखे साहित्य पढ़े जाएंगे, जो कोई बिरले ही पढ़ता है और उनपर फिल्में बनेंगी.
आप अपनी कहानी अपनी भाषा में कहकर उसमे वो रिअलिटी डाल सकते हैं जो आप मराठी, बांगला, असमिया, मलयालम इत्यादि फिल्मों में हम लोग देखते हैं. मैथिली फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक नितिन चंद्रा ने कहा की कलाकारों की भाषाओं में कलाकारों के लिए रोजगार खड़ा होने लगता है. कलाकारों का पलायन रुकेगा।सिनेमा के साथ रंगमंच भी बढ़ेगा. रंगमंच के कलाकारों के पास पूरे साल भी काम रहेगा.सिनेमा के माध्यम से आपको जबरदस्ती अपनी हिंदी ठीक करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
नितिन चंद्रा ने कहा कि आप सिर्फ अपनी मातृभाषा को और बेहतर कर सकते हैं ऐसा करके आप अपनी मातृभाषा को और समृद्ध बनाते हैं। जैसे दूसरे विकसित राज्य करते हैं. तकनीक से जुड़े लोग जैसे की कैमरामैन, एडिटर इत्यादि के पास भी बिहार में ही काम होगा.सिनेमा और साहित्य बढ़ता है तो पहचान को भी सम्मान मिलने लगता है जैसे बंगाल या दक्षिण या मराठी गुजराती के साहित्य/सिनेमा से उनकी अच्छी पहचान है.आप बिहार की समस्या पर लगातार फिल्म बनाकर जनता में बदलाव का सन्देश दे सकते हैं, यहां तक की किसी मुद्दे पर आंदोलन भी खड़ा कर सकते हैं.आप लगातार राष्ट्रीय पुरस्कार जीत सकते हैं. जैसे बंगाल के पास 100 से ज्यादा राष्ट्रीय पुरस्कार हैं. बिहार की भाषा में, बिहार में बनी सिर्फ एक फिल्म को है, ये एक सॉफ्ट पॉवर है. बिहार में रहकर कमाने से आप ज्यादा समृद्ध हो सकेंगे और मुंबई में पलायन करके फ़्रस्ट्रेट होने से बच जाएंगे. देश के 12 – 15 राज्य के कलाकारों को बम्बई में भटकने की ज़रूरत नहीं पड़ती है।फिल्मों की लागत बहुत कम हो जाती है और डिजिटल युग में कमाना आसान हो जाता है,
उन्होंने कहा कि बिहार में होने वाले “अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव” में बिहार का सिनेमा भी दिखने लगेगा. अश्लीलता धीरे धीरे कम हो जाएगी और बिहार की पहचान अश्लीलता और भोजपुरी की हलकी पोर्न फिल्मों से नहीं बल्कि अच्छी फिल्मों से होने लगेगी. आम लोगों में अपने अच्छे बदले हुए सिनेमा को देखकर असली गर्व होगा . बिहार पर गर्व करने के असली कारण तब होंगे. हिंदी में काम के लिए भटकने वाले लोग, बम्बई से बिहार आने लगेगें और उनके लिए अच्छी फिल्मों का ऑप्शन रहेगा, बहुत से डायरेक्टर, लेखक, मेरी तरह वालों को बंबई में नहीं रहना पड़ेगा. बिहार की कहानियों को ज्यादा दर्शक मिलेंगे, जैसे सत्यजीत रे की, दक्षिण इत्यादि के फिल्मों को मिलते हैं.बिहार सरकार टैक्स से करोड़ों कमाएगी,टूरिज्म बढ़ेगा,दूसरे व्यवसाय जैसे की कैटरिंग,ट्रैवेलिंग, होटल इंडस्ट्री, इत्यादि। सब बढ़ेंगे,हर क्षेत्र में रोज़गार बढ़ेगा.