किसने फाड़े पोस्टर और पोती कालिख ?

पटना,18 मई(ओ पी पांडेय). बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के बिहार आगमन से पूर्व ही बयानों और राजनीति खूब चर्चा में रही. आलम यह था कि उनके बिहार के कार्यक्रम के रदद् होने के कयास लगाये जा रहे थे, लेकिन इन सब ड्रामों के बीच जब 13-17 मई तक के पंच दिवसीय हनुमंत कथा के लिए आगमन हुआ तो पटना और आस पास का क्षेत्र उनके स्वागत में पोस्टरों से पटा हुआ था. पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के प्रति प्रेम और आस्थावान लोगों ने उनके स्वागत में पोस्टर लगाए थे. पांच दिनों तक चले उनके हनुमंत कथा और दिव्य दरबार ने कितने लोगों को उनसे जोड़ा ये जग जाहिर है. उन्होंने इस दौरान न त विरोधियों के विरुद्ध कुछ बोला और न ही किसी धर्म विशेष के खिलाफ. हाँ मीडिया के सवालों पर कि सरकार उन्हें बिहार में हिन्दू-मुस्लिम नही करने देगी, इसपर उन्होंने जवाब जरूर दिया कि वे हिन्दू-मुस्लिम नही बल्कि हिन्दू-हिन्दू करने आये है. उन्हें देखने के लिए पटना के पनाश होटल से लेकर नौबतपुर के तरेत पाली मठ तक लोगों का जो हुजूम उमड़ा था वह बिहार के साथ बिहार से सटे अन्य राज्यों सहित नेपाल से आये लोगों तक का था. इससे साफ समझा जा सकता है कि बाबा बागेश्वर के प्रति लोगों की कितनी आस्था है.




सरकार को बुलावा देने के बाद भी बिहार सरकार की ओर से कोई नही गया. बहाना था क्षेत्र में जनता की सेवा में लगे हैं. लेकिन इन सबके बीच कौन जानता था कि विरोध का असर जब बाबा बागेश्वर के आगमन पर नही होगा तो खिसियानी बिल्ली की तरह कोई बाबा के स्वागत में लगे पोस्टरों पर ही कालिख पोत देगा और उसे नोच देगा, उसपर 420 लिख देगा! यह आश्चर्यजनक कार्य बाबा के विरोधियों द्वारा खुलेआम बिहार की राजधानी पटना में हुआ.

वह बिहार जहाँ नीतीश कुमार जैसे सुशासन बाबू कहे जाने वाले के राज्य के राजधानी में. पोस्टरों पर कालिख पोतने से लेकर उन्हें फाड़ने का जो नीचतापूर्ण कार्य हुआ है वह सोशल मीडिया से लेकर आसपास के लगे CCTV में कैद है लेकिन बिहार को आतिथ्य को जाने जाने वाले राज्य को बदनाम करने वाले इन उपद्रवियों को अबतक प्रशासन ने न तो पकड़ा है न ही कोई कार्रवाई. हाँ पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने मुस्कुराते हुए जरूर कह दिया कि पोस्टर तो फाड़ दोगे लेकिन दिल से कैसे निकाल पाओगे?

सचमुच उनके इस बात में दम भी है. प्रचंड गर्मी के बावजूद लगभग 10 लाख लोगों का जमावड़ा ये तो सिद्ध कर दिया कि धर्म ने हमेशा लोगों को जोड़ने का काम किया है. जबकि ठीक इसके विपरीत राजनीति से निकलता जाति की जहर लोगों को आपस मे तोड़ने का. ये जोड़-तोड़ का खेल जिस दिन इंसान के हर तबके के पल्ले पड़ जायेगा सत्ता की गलियारों में हुक्मरानों की नही बल्कि असली सेवकों का राज्य होगा और शायद ऐसे ही राज के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी कल्पनारत थे.

सवाल फिर भी रह जाता है अधूरा कि बिहार और बिहारियों के आतिथ्य को कलंकित करने वाले ये कालिख पोतने वाले आखिर कौन थे? बाबा बागेश्वर की सुरक्षा और व्यवस्था में खामियों में रातो-रात डायरी लिखने वालों से लेकर DM और SDM की पैनी अब कहाँ है? यह किसी बाबा के पोस्टर पर कालिख नही बल्कि बिहार के माथे पर लगी वो कालिख है जिसे मिटाना मुश्किल है. क्योंकि कल को प्रशासन हो सकता है उक्त कृत्य में लिप्त लोगों को पकड़ भी लेकिन आने वाले समय में भी समय के गर्भ में यह कलंक हमेशा जिंदा रह जायेगा.

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