वर्षा जल संचय को लेकर नेहरू युवा का कैच द रेन प्रोग्राम

आरा, 10 मई. वर्षा जल संचय कर जल बचाने की पहल को लेकर खेल मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से नेहरू युवा केंद्र द्वारा “कैच द रेन” पहल के तहत नुक्कड़ नाटक ‘अभियो से चेत’ की प्रस्तुति आज भोजपुर जिला के जगदीशपुर प्रखंड,शाहपुर प्रखंड, बड़हरा प्रखंड,कोइलवर प्रखंड,आरा सदर प्रखंड में स्थानीय कलाकार अनिल सिंह, अंबुज कुमार,राजू सिन्हा,शेफाली श्रीवास्तव,रिया श्रीवास्तव, और श्रेयश भारद्वाज द्वारा किया गया.




इस अवसर वहाँ उपस्थित DYO निकिता सिंह ने कहा कि संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को जल संरक्षण कहा जाता है. विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है. इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है. इसके लिए अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भू-जल संसाधनों का संवर्धन हो पाये. अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन 214 बिलियन घन मी.(बीसीएम) के रूप में किया गया है, जिसमें से 130 बीसीएम की पुन: प्राप्ति हो सकती है. इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है. पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिंचाई के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है. जल संचयन प्रणाली उन स्थानों के लिए उचित है, जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम 200 मिमी वर्षा होती हो. इस प्रणाली का खर्च 400 वर्ग इकाई में नया घर बनाते समय लगभग बारह से पंद्रह सौ रुपए मात्र तक आता है.

वर्षा जल संचय कर जल बचाने की पहल आरा के अभिनव एन्ड एक्ट से जुड़े सांस्कृतिक संस्था के स्थानीय कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति से की. नाटक का लेखन अम्बुज कुमार ने किया था जबकि निर्देशन अनिल सिंह का था. जल की असीमित बर्बादी को आम जीवन मे लोगों द्वारा दोहन के कारण जल से उत्पन्न होती समस्याओं को कलाकारों ने अपने शानदार अभिनय से दिखाया. टँकी में पानी भरने के बाद भी लगातार उसका घँटों गिरकर बर्बाद होने के साथ, भूगर्भ से दोहन के बाद रिसाइकिल के लिए भी भूमि के अंदर वापस नही भेजना जल स्रोतों के अस्तित्व पर खतरा ही है.

एक दूसरे को दोषी ठहराना और खुद को इसके लिए जिम्मेदार बनाने का संदेश देता यह नाटक वर्षा जल के कारगर उपायों को आमजनों के बीच छोड़ गया जिसे कोई भी आसानी से संचित कर भूमिगत जल स्रोतों के लेवल को बनाये रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. आने वाले पीढ़ी के लिए यह जल ही जीवन रक्षक का कार्य करेगा. लोकधुनों और लोकल भाषा के मिश्रित लय में सिमटा नाटक लोगों को जागरूक करने में अपनी सहज प्रस्तुति के कारण प्रभावी दिखा. नाटक ने सन्देश दिया कि वर्षा जल का संचय बहुत जरूरी है, जिसे तालाब,पोखरा, कुंआ, सोखता बना कर किया जा सकता है. जल संचित कर ही जल समस्या में सुधार किया जा सकता है.

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