संजय मिश्र जैसे अभिनेता संघर्ष, लक्ष्य और कामयाबी की मिसाल

By pnc Mar 16, 2023 #actor #darbhanga #sanajy mishra




ओह डार्लिंग ये है इंडिया.. जिंदगी के सफर में बिखरने का नहीं.. संघर्ष के बीच आनंद के पल चुराएं फिर तो ऑल द बेस्ट है

संजय मिश्रा अभिनीत फिल्मों का आंकड़ा 150 के पार

… का बे मिश्रा.. एके जिला जबार आ सहर के हो .. तब हू नहीं लिखा बे..

साधारण से दिखने वाले और अपनी कला से आम आदमी के मन के उहापोह की जीवंत पैन इंडिया छवि गढ़ने वाले शख्सियत के इस ट्रेडमार्क डायलॉग की कोमल झिड़की के बाद कागज के पन्ने पर पेन वैसे ही फिसलने लगे ..नोट्स आकार लेने लगे.. जैसे सामने वाले के मुख से निकलते एक एक वचन.. कभी निर्झर होते तो कभी चुप्पी को चीर निकलते एक आध शब्द.. आलम गंभीर हुआ नहीं कि हल्की ठिठोली से सराबोर होते पल. मानो जीवन यात्रा की गाथा दिव्य बहाव के संग कानों में गूंजती. कभी तो इतना रम गए कि पॉइंट्स नोट करना भूल जाते.

अब.. ये बॉस कोई आदि गुदी तो नहीं.. संघर्ष.. लक्ष्य और कामयाबी की मिसाल हैं. आप ही के सांस्कृतिक नगरी दरिभंगा के हैं. एक फिल्म की सूटिंग के सेट पर बिलमते हुए अनौपचारिक बातचीत का मौका दिया. कहा.. गुरु सफलता ही सब कुछ नहीं.. जीवन यात्रा में संघर्ष के साथ आनंद के पल चुराएं. नहीं तो अधूरापन सताएगा. तड़पने को मजबूर होना पड़ेगा.अब हम आपको तरसाएंगे नहीं. खुलकर बता देते हैं. इस नाचीज़ संजय मिश्र की.. मशहूर फिल्म कलाकार संजय मिश्रा से बात हो रही थी.

जी हां! वही संजय मिश्रा जिनका हर किरदार इंडिया के मामूली जमीनी आदमी के समस्त मनोभाव को अभिव्यक्त करता. सतही का लेस नहीं.. फूहड़पन नहीं.. हां मनोरंजन के पुट का साथ. समझ आने वाले लब्ज़. ऐसा लगता उसकी जिंदगी आपके सामने जीवंत हो चल रही है. ऐसा लगेगा चरित्र के मन के उथल पुथल को संजय मिश्रा ने अनुभूत हो अंगीकार किया है और अभिव्यक्त कर उड़ेल दिया है. निःसृत होता चला जा रहा है.आपकी तंद्रा तब टूटती जब पात्र गहरे संकट में आता. आम इंसान मुसीबतें झेलते कभी टूट जाता है. यकीन करेंगे.. अदना से व्यक्ति की तरह उसकी आवाज बनने वाले संजय मिश्रा के जीवन में ऐसा मोड़ आया जब हालातों से तंग आकर वे एक ढाबे पर काम करने लगे थे.

अचानक सेट पर हलचल सी हुई. अभिनेता संजय मिश्रा ने उस ओर देखा कुछ इशारा किया और फिर सामान्य हो बात करने लगे. ढाबे वाली बात कुरेदने पर वो यादों में खो गए. कुछ पलों बाद कहा हां ये कड़वी हकीकत है..तब तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मेरी धमक सुनाई दे चुकी थी. साल 1991 में एनएसडी में दाखिला लिया. उसके बाद एक्टिंग की शुरुआत धारावाहिकों से की. फिल्मों में छोटे छोटे रोल मिलने लगे. कुछ समय बाद अमिताभ बच्चन के साथ एक विज्ञापन में भी काम किया. यह पहला अवसर था जब किसी बड़े एक्टर के साथ पर्दे पर अभिनय किया.

बकौल संजय मिश्रा उनकी पहली फिल्‍म ‘ओह डार्लिंग ये है इंडिया’ रही, जिसमें उन्‍होंने हारमोनियम बजाने वाले की छोटी सी भूमिका अदा की. इसके बाद संजय ने ‘सत्‍या’ और ‘दिल से’ जैसी फिल्‍मों में काम किया. कई फिल्मों में काम करने के बाद भी उन्हें वह मुकाम हासिल नहीं हो रहा था जिसकी चाहत थी.

संजय मिश्रा को अपने पिता से बहुत लगाव था. लेकिन जब उनके पिता का देहांत हुआ तो वे भीतर से टूट गए और उन्होंने फिल्मों में काम करना छोड़ दिया. फिल्मों की दुनिया छोड़ वे ऋषिकेश चले गए और वहां एक ढाबे में काम करना शुरू कर दिया. संजय मिश्रा वहां सब्जियां काटते, खाना बनाते और लोगों को खिलाते. उनका समय धीरे-धीरे सामान्य होने लगा और वे फिल्मों से काफी दूर हो चुके थे. जिंदगी से निराश. दरअसल संजय मिश्रा ने निश्चय कर लिया था कि बाकि जिंदगी उसी ढाबे पर बिता देंगे.

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. संयोग से जाने माने निर्देशक रोहित शेट्टी एक दिन अचानक उस ढाबे पर जा पहुंचे. संजय ने रोहित शेट्टी की फिल्म ‘गोलमाल’ में काम किया था और इसलिए उन्होंने संजय मिश्रा को पहचान लिया. उस समय रोहित शेट्टी ‘आल द बेस्ट’ फिल्म पर काम कर रहे थे. रोहित ने संजय को अपनी फिल्म में काम करने के लिए मना लिया.

फिल्म हिट हुई और संजय मिश्रा की एक्टिंग की तारीफ हुई. फिर तो सफल फिल्मों का सिलसिला शुरू हो गया. वे फिल्म इंडस्ट्री की शान बन गए. संजय मिश्रा अभिनीत फिल्मों का आंकड़ा 150 के पार जा चुका है. संजय मिश्रा ने साल 2006 में लगातार एक के बाद एक कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया. जिनमें गोलमाल: फन अनलिमिटेड और धमाल जैसे नाम शामिल है. इसके साथ ही एक्टर ने साल 2015 में हिट फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ में काम किया. इसके बाद उन्होंने ‘बादशाहों’ और ‘गोलमाल अगेन’ में काम किया. संजय मिश्रा को ‘आँखों-देखी’ फिल्म के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर अवार्ड भी मिल चुका है.

फिल्म इंडस्ट्री के चुनिंदा एक्टर्स में वे शुमार हैं जिन्होंने अपने अभिनय के दम पर अपनी अलग पहचान कायम की है. संजय मिश्रा जब किसी किरदार को पर्दे पर निभाते हैं तो लोगों को इस बात को सोचने में वक्त लग जाता है कि वे उस किरदार को निभा रहे हैं या फिर उस किरदार में सजीव हो जी रहे हैं. उनकी एक्टिंग में ऐसा आकर्षण है कि जो भी उन्हें एक बार पर्दे पर देख लेता है, उनकी एक्टिंग का दीवाना हो जाता है. खूबसूरत चेहरे को अहमियत देने वाली इंडस्टी में संजय मिश्रा ने जो मुकाम हासिल किया है और जो छाप छोड़ी है वह पाना काफी लोगों का सपना होता है.

सहज और निर्बोध व्यवहार वाले इस अदाकार से विदा लेने का समय हो रहा था. सेट फाइनल कर चुके कई अनजान लोगों की आंखें हमारी तरफ निहार रही थीं. एक सीधे.. सरल इनसान के कहे आवाज की कानों में अनुगुंज और आंखों में बीते पल के दृश्यों को मुश्किल से समेटते हम निकल आए. ये सोचते कि संजय मिश्रा फिर किसी किरदार के उद्वेग को जेहन में उतार चुके होंगे.

आपको बता दें कि संजय मिश्रा का जन्म 6 अक्टूबर 1963 को बिहार के दरभंगा में हुआ था. उनकी पढ़ाई वाराणसी के बीएचयू कैम्पस स्थित केंद्रीय विद्यालय से हुई. उनके पिता का नाम शम्भुनाथ मिश्रा है. पेशे से वे पत्रकार थे. संजय मिश्रा की पत्नी का नाम किरण मिश्रा है. संजय और किरण की शादी 28 सितम्बर 2009 को हुई थी. इस कपल के दो बेटियां हैं जिनके नाम पल मिश्रा और लम्हा मिश्रा हैं. अक्सर ही संजय मिश्रा अपने बच्चों के बारे में बात करते नजर आते हैं. संजय मिश्रा की उम्र महज 9 साल थी जब उनका परिवार रहने के लिए दरभंगा से वाराणसी शिफ्ट हो गया.

संजय मिश्र,शूटिंग के सेट से

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