लोककला शैली अपने अनोखेपन व सौंदर्य दृष्टि के कारण लोगों की पसंद बनी
उपेन्द्र महारथी से उन्होंने वाश चित्रण सीखा ,बटेश्वर नाथ से टेम्परा, पोट्रेट राधा मोहन बाबू से
परंपरागत विषयों और शैली में कला सृजन किया
कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार तथा बिहार ललित कला अकादमी पटना के संयुक्त सौजन्य से तीनों कला दीर्घा, बिहार ललित कला अकादमी, बहुद्देशीय सांस्कृतिक परिसर, फ्रेजर रोड, पटना में वयोवृद्ध वरिष्ठ कलाकार आनन्दी प्रसाद बादल की कलाकृतियों की प्रदर्शनी का शुभारंभ हुआ . इस अवसर पर प्रदर्शनी के प्रथम दर्शक के रूप में बन्दना प्रेयसी, सचिव, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार, पटना के द्वारा अवलोकन किया गया.पृथ्वी के चित्रकार बादल को कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार, पटना के द्वारा बुके देकर सम्मानित किया गया.प्रदर्शनी में बादल के 300 (तीन सौ समकालीन पेंटिंग एवं 09 मूर्ति सहित कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है. प्रदर्शित सभी कलाकृतियों को सचिव ने बारी-बारी से अवलोकन करते हुए कलाकृतियों की जानकारी प्राप्त की. प्रदर्शनी के लिए मुद्रित कैटलॉग का भी विमोचन किया गया.
विश्वभर की कला शैलियों, लोककला शैलियों ने अपने अनोखेपन व सौंदर्य दृष्टि के कारण मान्यता प्राप्त कर ली. भारतीय टेम्परा चित्रण शैली, लघुचित्रण शैली ने विश्व कला में अपनी पहचान बनाई। भारतीय कलाकारों को भी आधुनिक चित्रण शैली ने प्रभावित किया. वे भी नये रंगों, रेखाओं, तूलिका घात की तलाश में, अपने को परम्परावादी चित्रण शैली की बंधी हुई आकृतिमूलकता, निरंतर पुनरावृत्त होने वाले रंग संगति के दोष से बचने के लिए एक्सपेरिमेंटल कला सृजन करने लगे.आनंदी प्रसाद बादल को भी विदेश जाने का मौका मिला. वे कहते हैं कि कला शिक्षा पूर्ण करते ही उन्हें जापान और फिलिपिंस जाने का मौका मिला। जहां उन्हें आधुनिक कला को देखने और जानने का अवसर मिला। यहीं से उनकी कला ने नया मोड़ लिया और वे अमूर्त चित्रण शैली से बेहद प्रभावित हुए.
इतिहास गवाह है कि भारत भूमि आरंभ से ही कला और संस्कृति के लिए उर्वर भूमि रही है. भारतीय कलाकारों ने विश्व कला शैलियों से प्रेरणा ग्रहण की है और अपनी कला को परिष्कृत किया है. रही बात चित्रकला में आकृति मूलकता या अमूर्तन की वर्तमान समय में ये कलाकार की अपनी पसंद मानी जा रही है.बादल वरिष्ठ कलाकार हैं उन्होंने लंबे समय तक परंपरागत विषयों और शैली में कला सृजन किया है. आरंभ में वे तैल रंगों में शबीह चित्रण, टेम्परा और वाश शैली में ग्राम्य परिवेश पर चित्रण करते थे. उपेन्द्र महारथी से उन्होंने वाश चित्रण सीखा और बटेश्वर नाथ से टेम्परा। पोट्रेट में राधा मोहन बाबू थे ही। इन कला महारथियों के प्रभाव में उन्होंने बहुत सारे चित्र बनाए,
प्रदर्शनी देखने के लिए बड़ी संख्या में कलाकारमण, प्रबुद्ध लोग उपस्थित थे जिनमें सुषमा कुमारी, सचिव, बिहार ललित कला अकादमी पटना रविन्द्र कुमार तिवारी, सहायक बिहार ललित कला अकादमी अशोक तिवारी, शैलेन्द्र कुमार अर्चना सिन्हा, अधेश अमन, जितेन्द्र मोहन, बिरेन्द्रकुमार सिंह, अंजू वर्मा, हरिकृष्ण मुन्ना, राजकुमार लाल, रामू कुमार, अलका दास, अनिता कुमारी, नरेन्द्र कुमार, नेचर संगीता, स्मिता पराशर, सत्या सार्थ, तारकेश्वर कुमार के अलावा देवपूजन कुमार, ओमकार नाम विजय कुमार चन्दन कुमार, कुमारी शिल्पी राम मन्टू कुमार एवं सुरेंद्र राम के साथ ही कई वरिष्ठ कलाकारों एवं समीक्षक उपस्थिति रही.
रवीन्द्र भारती