बापू के साथी रहे बद्री के वंशज पहुंचे भोजपुर

अभी भी अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लिए रोज़गार है मुश्किल -बैरी बद्री




Patna Now Special

आरा, 9 जनवरी. बद्री अहीर का नाम कितनों ने सुना होगा या याद होगा यह अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल है मगर बद्री अहीर के वंशजों ने कभी अपनी मातृभूमि और पैतृक गाँव को नहीं भूला. 3 पीढ़ियों बाद बापू के दक्षिण अफ़्रीकी आंदोलन में साथी रहे बद्री अहीर के पोते बैरी बद्री, उनकी पत्नी पूनम बद्री और परपोते अधीश बद्री अपने पैतृक गाँव जगदीशपुर के हेतमपुर पहुंचे.

बद्री अहीर भारत छोड़कर जीविका की तलाश में दक्षिण अफ्रीका गये थे और वहां कई तरह के कार्य से अपना और परिवार का पोषण करते थे. वहीं उनकी मुलाक़ात महात्मा गाँधी से हुई और वे बापू के आंदोलन से जुड़ गये. वे कई वर्षों तक जेल यातना को सहे. जेल से आज़ाद होने के बाद वे एक बार भारत आये और वापस अफ्रीका लौटकर जाने के बाद कभी नहीं आये.

उनके व्यक्तित्व और आजादी की लड़ाई में उनके योगदान पर वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत ने एक चर्चित पुस्तक लिखी है. अधीश बद्री फिलहाल केप टाउन में रहते है. वे वहां प्रोफेसर और फिक्शन लेखक हैँ. उनकी हालिया लिखी किताब ‘ इन्हेरिटेंस ‘ का विमोचन अभी पटना में हुआ जिसे उन्होंने मातृभूमि मदर इंडिया को समर्पित किया है. उनके परिवार ने अब बद्री टाइटल को अपना लिया है.

रविवार को बैरी बद्री के सपरिवार हेतमपुर पहुँचते ही वहाँ उपस्थित ग्रामीणों ने उन्हें घेर लिया. बद्री परिवार अपने पैतृक घर में गये और सदस्यों से मुलाक़ात कर भावुक हो गये.

उन्होंने गाँव वालों से बात की और कहा कि हमें अपने पूर्वजों के योगदान और बापू को कभी नहीं भूलना चाहिए. दक्षिण अफ्रीका की आज़ादी के आंदोलन के सूत्रधार गांधी ही थे. ग्रामीणों द्वारा अफ्रीका में रोज़गार की बात पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अभी भी वहाँ भारतीय समुदाय के लिए रोज़गार मुश्किल है और भारतीयों को यहीं रहकर देश का विकास करना चाहिए. गाँव के स्कूली बच्चों से उन्होने काफी देर बात की और शिक्षा के महत्त्व को बताया. बद्री परिवार ने दक्षिण अफ्रीकी आंदोलन में यहाँ के लोगों के किस्से भी सुनाये.

आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट

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