मंजिल को पाना कठिन नहीं केवल मंजिल तक पहुंचने के लिए जो राह होती है वह जरूर कठिन हो सकती है. लेकिन अगर आपके साथ मां का साथ और पिता का प्यार हो, तो कोई भी बच्चा अपने परिवार व देश का नाम रोशन कर सकता है. बस उस इंसान में जो कुछ अपने लिए व परिवार व देश के लिए कुछ करना चाहता है तो उसमें इस मुकाम को पाने का जुनून होना चाहिए और इसी जूनून ने झारखंड की बेटी को पहली महिला निर्देशक होने का गौरव हासिल दिलाया और वो निकल पड़ी अपने सपने को सच करने.महिला और निर्देशक पर पायल ने बॉलीवुड को बताया कि हममें भी है जूनून .
हिंदी फिल्म की दुनियां में जहाँ एक लंबे अरसे से पुरूष निर्देशकों का बोलबाला हुआ करता था . जहां लाइट, कैमरा, एक्शन से लेकर पैकअप तक के सारे निर्देश पुरूष निर्देशकों के मोहताज थे. लेकिन विगत चार-पांच वर्षों में पुरूष निर्देशकों के मोनोपॉली को तोड़ते हुए कई महिला निर्देशकों का पदार्पण बॉलीवुड में हुआ. इन महिला निर्देशकों द्वारा न सिर्फ दर्शकों पर छाप छोड़ा गया, बल्कि रचनात्मक उपस्थिति का लोहा भी मनवाया गया. इन्ही निर्देशकों की फेहरिश्त में एक नाम शामिल है पायल कश्यप का. शोख, चुलबुली और बिंदास तथा कैमरे के पीछे खड़े हो पुरूष सत्तात्मक फिल्म के इतर नारी को शक्ति के प्रतीक के रूप में अपनी सोच के रुप में फिल्म गढ़ने को आतुर हैं पायल कश्यप जिनकी फिल्म हैं नेवर अगेन निर्भया.
झारखण्ड के देवघर की बेटी पायल कश्यप ने फिल्म ” अँखियाँ बसल तोहरी सुरतिया ” से अपने फिल्म निर्देशन की शुरुआत की. पायल इस समय अपने निर्देशकीय पारी की पांचवीं फिल्म दिल्ली गैंगरेप कांड पर आधारित निर्भया का इंसाफ को निर्देशित कर इसके पोस्ट प्रोडक्शन में व्यस्त हैं. इसी फिल्म को लेकर पायल से रवीन्द्र भारती की बातचीत के कुछ अंश ..
‘ रूत बदल डाल अगर फूलना-फलना है तुझे,
उठ मेरी जान! मेरे साथ चलना है तुझे,
कद्र अब तक तिरी तारीख ने जानी ही नहीं,
तुम में शोले भी है, बस अश्कफिशानी ही नहीं..
शायर कैफी आजमी के इस पंक्ति को मूल मंत्र मानने वाली फिल्म निर्देशिका पायल कश्यप इन दिनों 16 दिसंबर 2012 की रात को दिल्ली में घटित दिल दहला देने वाली भयानक निर्भया कांड पर आधारित अपनी फिल्म ‘ नेवर अगेन निर्भया ‘ को अंधेरी के पिक्सल डिजीटल में अंतिम रूप देने में जुटी हैं जो अब रिलीज होने के अंतिम चरण में हैं.क्या कहती हैं पायल अपनी फिल्म के बारे में ..
निर्भया कांड को ही विषय के रूप में क्यों ?
दामिनी, निर्भया या… उस समय उसे कई नामों से पुकारा गया. उन्हीं दिनों मैं राजीव गांधी के जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग दिल्ली में कर रही थी. अखबार एवं न्यूज चैनल के माध्यम से मैंने निर्भया को समाज के वीभत्स अंग के जघन्य करतूतों के कारण तिल तिल मरते देखा. 13 दिनों तक अस्पताल में पड़े निर्भया की सिसकियों को सुना. उसकी पीड़ा को महसूस भी किया. और उसके निधन पर पहली प्रतिक्रिया.. स्तब्ध थी … मौन थी. उस मासूम की आत्मा की शांति के लिए देश में एक अनकहा मौन रखा गया. लेकिन उसकी मौत पर मौन इस अपराध का उपसंहार कभी नहीं हो सकता था मैं बेचैन थी कि जिस घटना ने पूरे देश को आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया सड़क से लेकर संसद तक इसके खिलाफ आवाज उठाई गई बावजूद इसके देश के विभिन्न क्षेत्रों में इस कांड की पुनरावृत्ति होती रही. मुझे लगा कि इस कांड को केंद्र में रखकर एक ऐसी फिल्म का निर्माण हो जिसे देखकर फिर से कोई दरिंदा इस प्रकार की घिनौनी हरकत करने से पहले सौ बार सोचे. साथ ही निर्भया के परिवार के सदस्यों के हृदय में इस घटना ने जो जख्म दिया है उस जख्म पर मरहम पट्टी का काम भी फिल्म करेगी.
फिल्म बनाने की राह कैसे आसान हुई?
फिल्म बनाना वो भी एक महिला निर्देशक का बहुत कठिन होता है . राह आसान नहीं था. कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल में लिये मैं सबसे पहले वित्तीय समस्या के समाधान हेतु मिटिंग करने होने लगी. अनेकों निर्माताओं से बात की लेकिन बात बनी नहीं क्योंकि कोई इस घटना पर बनने वाली फिल्म को लेकर रिस्क नहीं लेना चाहता था. संयोग से कोलकाता के एक शिक्षाविद कंचन अधिकारी को मैने प्रोजेक्ट सुनाया. विषय उनके मन को छू गया. उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी साथ ही यह भी कहा कि कहानी का प्रस्तुतिकरण अलग ढंग से हो. बाजीराव मस्तानी, पद्मावती, वजीर, सरबजीत, सत्याग्रह सहित कई फिल्मों में अपनी लेखनी के माध्यम से सेवा करने वाले लेखक ए. एम. तुराज ने कहानी को देखने के बाद पटकथा व संवाद लेखन का जिम्मा उठाया. सिनेमेटोग्राफी का जिम्मा अशोक मेहता के सहायक रह चुके अजय कश्यप ने उठाया. संगीत रूपेश वर्मा ने दिए , गीत विमल कश्यप ने लिखे, संपादन राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त निलेश गवंडे कर रहे हैं . इस प्रकार लोग जुड़ते गये और कारवां बनता गया.
फिल्म के स्टार कास्ट के बारे में क्या कहना चाहती हैं ?
फिल्म की कहानी के अनुसार निर्भया के लिए मुझे नये चेहरे की तलाश थी. मैंने मुम्बई में ऑडिशन लिया लेकिन मेरी तलाश पूरी नहीं हुई. फिर मैं कोलकाता गयी वहीं मुझे रिचा शर्मा के रूप में निर्भया मिली. जो मॉडलिंग जगत में काफी सक्रिय थी. उनके अपोजिट कई धारावाहिक में काम कर चुके दिनेश मेहता व रवि केशरी सहित विलेन के रूप में गोपाल के सिंह, राजू श्रेष्ठ, शैलेंद्र श्रीवास्तव, अनिल यादव, पप्पू पॉलिस्टर, कमाल मलिक, मनीष राज, अंजलि मेहता, राजू खेर सहित मिस एशिया रही गहना वशिष्ठ प्रमुख कलाकार हैं.
नेवर अगेन निर्भया.. के माध्यम से आपका बताना चाहती हैं?
देखिए पुराणों में कहा गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यनते, रमन्ते तत्र देवता. लेकिन इस शुक्ति को लोग आज भूल गए हैं. आज लोग महिला को अबला समझ रहे हैं. महिला सशक्तिकरण पर आधारित इस फिल्म के माध्यम से उन पुरुषों के खिलाफ एक कड़ा देते हुए यह कहने की कोशिश की गयी है कि आज की नारी को अबला मत समझो वक्त आने पर यह काली या दुर्गा बन पापियों का संहार भी कर सकती है.साथ ही यह फिल्म महिलाओं को अपने लिए आवाज आवाज उठाने का जज्बा भी देती है. फिल्म में निर्भया स्त्री शक्ति का प्रतीक है. कुल मिलाकर फिल्म महिला सशक्तिकरण पर एक सशक्त टिप्पणी है.
इस फिल्म का प्रदर्शन 16 दिसंबर को ही क्यों कर रही है ?
16 दिसंबर 2012 की रात को ही राजधानी दिल्ली की सड़कों पर चलती बस में 6 नराधर्मियों द्वारा निर्दयता की पराकाष्ठा को लांघते हुए बलात्कार व हत्या की घटना को अंजाम दिया गया था. इसलिए देशवासियों द्वारा जहां उस दिन निर्भया को श्रद्धांजलि दी जाएगी वहीं मेरी टीम द्वारा भी इस फिल्म के माध्यम से निर्भया को श्रद्धांजलि देगी.