किताब उत्सव के सफल आयोजन के अवसर पर राजकमल प्रकाशन की पटना शाखा में हुई प्रेस काँफ़्रेंस
बिहार के पुस्तक प्रेमी पाठकों और लेखकों से मिला प्यार
किताब उत्सव की अपार लोकप्रियता एवं बिहार के पुस्तक प्रेमी पाठकों और लेखकों से मिले प्यार एवं यादों साझा करने के लिए आयोजित प्रेस काँफ़्रेस में राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने कहा है कि राजकमल पूरी जिम्मेदारी से लेखकों और पाठकों की नई पीढ़ी का निर्माण करने में जुटा है. स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन के जरिये वह विगत पिचहत्तर वर्ष से हिंदी पाठकों की बौद्धिक उन्नति का निरंतर सहयोगी बना हुआ है और आगे की यात्रा में भी अपनी इस भूमिका को बनाए रखेगा.
अशोक महेश्वरी ने कहा कि राजकमल अपने पचहत्तरवें वर्ष में देश के प्रमुख शहरों में किताब उत्सव आयोजित कर रहा है. भोपाल और बनारस के बाद हमने पटना में यह आयोजन किया. भोपाल में किताब उत्सव सात दिन का और बनारस में पांच दिन का था, पर पटना में हमने नौ दिनों का किताब उत्सव मनाया. यह पटना के आप तमाम लोगों के अपनापन और सहयोग के बिना संभव नहीं हो पाता, हम आपके अत्यंत कृतज्ञ हैं.
एक सवाल के जवाबमें राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष ने कहा, अपने 75वें वर्ष में राजकमल अपने व्यापक लेखक पाठक पुस्तक प्रेमी समुदाय की भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पूरे दम ख़म से काम कर रहा है। भविष्य के लिए हमारी कई योजनाएँ हैं जिनका मूल उद्देश्य है घर घर तक स्तरीय पुस्तकें पहुँचाना, अधिक से अधिक लोगों को उनकी पसंद और बौद्धिक ज़रूरत के अनूरूप किताबें मुहैया कराना। हरेक उम्र और आय वर्ग के लोगों को ध्यान में रखते हुए काम कर रहे हैं। हम लेखकों और पाठकों की नई पीढ़ी के निर्माण में अभी से जुटे हुए हैं। ताकि राजकमल अपनी 100वीं वर्षगाँठ के पड़ाव पर पहुँचकर एक बिलकुल नई विविधतापूर्ण और सम्यक् लेखक पाठक पीढ़ी के साथ नज़र आए। साथ ही, अपनी पूर्ववर्ती पीढ़ियों की साहित्यिक सांस्कृतिक धरोहर को भी अगली पीढ़ियों तक ले जाए।
राजकमल प्रकाशन समूह के सम्पादकीय निदेशक सत्यानंद निरुपम और सीईओ आमोद महेश्वरी ने भी संवाददाताओं को सम्बोधित किया। राजकमल से प्रकाशित किताबों की प्रस्तुति को लेकर एक सवाल के जवाब में सत्यानंद निरुपम ने कहा, प्रस्तुति से लेकर विषय तक हम किताबों को नए रंग रूप में पेश कर रहे हैं। हमने लप्रेक की शुरुआत की जिसकी चर्चा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रही। कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में उसे जगह दी गयी। लप्रेक एक ऐसा प्रयोग था जो सफल रहा। प्रयोग रोज़ रोज़ नहीं होते। रोज़ रोज़ खेल हो सकते हैं। आने वाले नए साल में इस शृंखला की नई किताबें भी आपके सामने होंगी। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, हिंदी की कठिनता की चर्चा अक्सर की जाती है। यह सवाल हिंदी भाषी के लोग ही अक्सर उठाते हैं।अंग्रेज़ी के संदर्भ में ऐसी शिकायत प्रायः नहीं देखी जाती। सरलता की माँग हिंदी से ही की जाती है। यह विचार करने की बात है। किसी को कोई किताब कोई शैली पसंद आ सकती है। किसी अन्य को कोई और। यह एक स्वाभाविक बात है।
राजकमल प्रकाशन समूह के सीईओ आमोद महेश्वरी ने कहा, भोपाल और बनारस के बाद हम ने पटना में किताब उत्सव का आयोजन किया। हर जगह लोगों ने बढ़ चढ़कर इसमें शिरकत की। लेकिन पटना में जिस उत्साह के साथ लोग उत्सव में शामिल हुए, उससे हमारा हौसला और मज़बूत हुआ।भोपाल में हमने सात दिन का किताब उत्सव किया था। जबकि बनारस में यह पाँच दिन का रहा। वहीं पटना में नौ दिन का किताब उत्सव मनाया गया। इस दौरान पंद्रह हज़ार से अधिक पाठकों व पुस्तक प्रेमियों ने इस उत्सव में शिरकत की। बिहार समेत देश के विभिन्न हिस्सों के 75 लेखक इस उत्सव में आए। पटना से बाहर के चार स्कूलों के बच्चों का उत्सव में आना अप्रत्याशित लेकिन बहुत सुखद रहा। उत्सव में आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी से क़रीब सात लाख रुपए की किताबें पाठकों ने ख़रीदीं। पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल कि किताब उत्सव में कौन सी किताबें पाठकों के बीच सर्वाधिक पसंद की गयीं, के जवाब में आमोद महेश्वरी ने बताया निम्न किताबों के नाम :
रश्मिरथी, लोग जो मुझमें रह गए, आज़ादी मेरा ब्राण्ड, कश्मीर और कश्मीरी पंडित, साये में धूप, अमर देसवा, सच्ची रामायण, रेत समाधि, उसने गांधी को क्यों मारा, भारतीय काव्यशास्त्र, मैला आँचल, भारत विभाजन के गुनहगार, हिंदू बनाम हिंदू, रुकतापुर, दुनिया रोज़ बनती है, गहरी नदिया नाव पुरानी, प्रतिनिधि कहानियाँ, परशुराम की प्रतीक्षा, आधुनिक भारत का ऐतिहासिक यथार्थ, सावरकर : काला पानी और उसके बाद, देहाती दुनिया, राग दरबारी, तानी कथाएँ, काशी का अस्सी, इश्क़ में शहर होना, सोफ़ी का संसार, मेरा परिवार, संस्कृति के चार अध्याय, जगन्नाथ का घोड़ा, गांधी क्यों नहीं मरते, दस साल : जिनसे देश की सियासत बदल गई, बलचनामा।
संवादधर्मी समाज बनाने की दिशा में एक प्रयास है किताब उत्सव: अशोक महेश्वरी
हमारा समाज परंपरागत रूप से उत्सवधर्मी है. उत्सव निरे मनोरंजन के साधन नहीं होते. उनका विशेष सामाजिक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य है. समय के साथ समाज का स्वरूप बदलता रहता है. परंपरा में भी परिवर्तन होता है,उसमें नई चीजें जुड़ती हैं. इस तरह नई परंपरा शुरू होती है और हमारी उत्सवधर्मिता भी नया कलेवर ग्रहण करती है. देश के विभिन्न शहरों में किताब उत्सव मनाने की हमारी पहल को निरंतरता और परिवर्तन की इसी धारा में देखना चाहिए.
किताबें शिक्षा और ज्ञान का सर्वाधिक सुगम साधन हैं और उनका उत्सव शिक्षा और ज्ञान के प्रसार की दिशा में , समाज की बौद्धिक उन्नति की दिशा में एक रचनात्मक प्रयास. जब हमने देश के प्रमुख शहरों में किताब उत्सव मनाने का निर्णय किया तब उसके पीछे यही सोच थी. एक बात और थी. एक प्रकाशन के तौर पर यह वर्ष हमारे लिए विशेष महत्वपूर्ण है. देश इस समय आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और राजकमल भी अपनी स्थापना के पिचहत्तर वर्ष पूरे कर रहा है. आरंभ से ही विभिन्न विषयों और विधाओं की स्तरीय किताबों के प्रकाशन के जरिये हिंदी क्षेत्र में ज्ञान का विकास और प्रसार उसका संकल्प रहा है. अपने 75 वें वर्ष में किताब उत्सव के जरिये उसने अपने आरंभिक संकल्प को पूरा करने के प्रयासों की परिधि को और विस्तारित किया है, किताब उत्सव में हमने शहर के मूर्धन्य साहित्यकारों का कृतित्व स्मरण, समकालीन साहित्यकारों से बातचीत और परिचर्चा, पत्रकारिता और राजनीति जैसे सहित्येतर लेकिन सहयोगी क्षेत्रों के प्रासंगिक मुद्दों व विषयों पर बातचीत आदि को शामिल किया. साथ साथ किताबों की प्रदर्शनी भी लगाने का निर्णय भी किया. भोपाल और बनारस में किताब उत्सव के आयोजन को वहाँ के लोगों ने अपने शहर के सांस्कृतिक उत्सव की तरह अपनाया. उसे अपने शहर की साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत के सम्मान और संवर्धन के रूप में देखा. यह बिलकुल वैसा था जैसा हमने सोचा था.
किताब उत्सव की रूपरेखा बनाते समय हमने आयोजन वाले शहर के मूर्धन्य लेखकों के कृतित्व स्मरण से जुड़े सत्र का नाम रखा था, हमारा शहर हमारे गौरव. किताब उत्सव अमूमन आठ-नौ दिनों का रखा जाता है और प्रति दिन ऐसे एक मूर्धन्य लेखक के कृतित्व और व्यक्तित्व पर चर्चा की जाती है जिनका उस शहर से नाता था. उस लेखक के साहित्य की विशेषज्ञता रखने वालों के साथ लेखक के परिवार के सदस्य भी इस कार्यक्रम में आमंत्रित किए जाते हैं. मसलन पटना में हमने दिनकर, रेणु, नागार्जुन, बेनीपुरी, नलिन विलोचन शर्मा, हरिमोहन झा आदि के कृतित्व स्मरण के सत्र रखे. इसका एक विशेष उद्देश्य था. हम पुरखा लेखकों से वर्तमान युवा पीढ़ी को खास कर जोड़ना चाहते थे. वस्तुतः किताब उत्सव को साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में इस समय सक्रिय चारों पीढ़ियों के लेखकों- रचनाकारों के मेल-मुलाकात का जरिया बनाना हमारे उद्देश्यों में शामिल है. इसी कारण उत्सव के तहत आयोजित कार्यक्रमों में नई किताबों के लोकार्पण, लेखक से बातचीत, परिचर्चा जैसे संवादपरक और विमर्शपरक सत्र रखे जाते हैं. वास्तव में हम चाहते हैं कि किताब उत्सव न केवल पठन पाठन की पुस्तक संस्कृति विकसित करने का माध्यम बने, बल्कि वरिष्ठतम से लेकर युवतम पीढ़ी की रचनशीलता से लोगों को परिचित कराने का अद्यतन माध्यम भी बने. समाज को बौद्धिक रूप से आगे बढ़ने में सहयोगी बने.भोपाल, बनारस और अब पटना में किताब उत्सव को पुस्तक प्रेमियों ने जिस उत्साह से अपनाया है उसने हमें अपने उत्तरदायित्व के प्रति और प्रतिबद्ध बनाया है.
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