प्रेमचंद की रचना में भी भोजपुरी समाहित है : प्रकाश उदय
किताबों और कृतित्व पर हो रही गुफ्तगू
राजकमल प्रकाशन समूह का आयोजन ‘किताब उत्सव‘
राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित ‘किताब उत्सव’ के तीसरे दिन अचार्य शिवपूजन सहाय: कृतित्व स्मरण, रेणु के गांव, अरज- निहोरा: भोजपुरी कविता का नया प्रस्थान विषय पर अलग-अलग सत्रों में बातचीत हुई. इसके अलावा रविन्द्र भारती का कविता संग्रह ‛जगन्नाथ का घोड़ा’ का लोकार्पण हुआ. जिसमें बड़ी संख्या में साहित्यकार, लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवी, रंगकर्मी, छात्र आदि शामिल हुए. कार्यक्रम के प्रथम सत्र में ‘हमारा शहर हमारी गौरव’ के तहत प्रख्यात साहित्यकार शिवपूजन सहाय को समर्पित चर्चा हुई.
चर्चा में अपनी बात रखते हुए कथाकार गीताश्री ने कहा कि “आचार्य शिवपूजन सहाय संपादक की भूमिका में वे खुद को साहित्यकार के रूप में भुला दिया. उन्होंने प्रेमचंद के किताब का भी संपादन किया. उनकी ‘भगजोगनी’ उपन्यास समाज की सच्चाइयों को सामने रखता है. वर्ष 1928 में ही ‘भगजोगनी आज भी जीवित है’ लिखकर उन्होंने स्त्री विमर्श और स्त्री लेखन की आधारशिला रखा था. उनके इस लेखन से ही स्त्री विमर्श का आधार तैयार होता है. विद्युत दूरदर्शी लेखक थे. गीताश्री ने आगे कहा उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से बताया कि जिस तरह बाल विवाह एक सामाजिक बुराई है उसी तरह वृद्ध विवाह भी सामाजिक बुराई है. उन्होंने समाज और सरकारी तंत्र दोनों पर प्रहार किया.”
आचार्य शिवपूजन सहाय को याद करते हुए लेखक व पत्रकार विकास कुमार झा ने कहा ” हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि आज वह हमारे लिए कितना प्रासंगिक हैं. उनके लेखन में विचार कि वह ईंट है, जिस पर आगे का बुनियाद तैयार करना है. उन्होंने बताया आलोचक परमानंद श्रीवास्तव ने उनके बारे में लिखा है कि वे जनता के लेखक थे और जनता की जीवन शक्ति के लेखक थे. वे बड़े निबंधकार थे. फणीश्वर नाथ रेणु के ‘मैला आँचल’ से पहले ही ग्रामीण जीवन पर वर्ष 1954 में उन्होंने ‘देहाती दुनिया’ लिख दिया था. साहित्य एक सामूहिक कार्य है. आचार्य शिवपूजन जी का जीवन इसी दर्शन पर आगे बढ़ा है. उन्होंने अपने समकालीन साहित्यकारों की रचना पर कठोर परिश्रम किया तथा उसका संपादन किया. उनका लेखन क्षेत्र विविध था. साहित्य, निबंध, व्यंग, पत्रकारिता सभी क्षेत्रों में उन्होंने लिखा है.”
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कथाकार अवधेश प्रीत ने कहा “उनके कृतित्व में ही उनका व्यक्तित्व निहित है. उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मेरा जीवन’ तो लिखा है लेकिन उसमें अपने समकालीन लेखकों की भी चर्चा की है. ऐसे लेखक थे जो किसी भी चीज को गहराइयों में जाकर लिखते थे. कथाकार प्रेमचंद के बारे में उनकी लेखनी एक गतिमान चित्र प्रस्तुत करती है. उन्होंने बताया कि रामपूजन सहाय समाज की कुरीतियों पर प्रहार करते थे. वे गांव की सामाजिक परिस्थितियों का व्यापक और निर्मम चित्र प्रस्तुत किया है.
लेखक हमेशा सरकार को चुनौती पेश करते हैं
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित जाने-माने कवि व नाटककार रविंद्र भारती की नई कविता संग्रह ‘जगन्नाथ का घोड़ा’ का लोकार्पण हुआ. लोकार्पण कार्यक्रम में लेखक रविंद भारती सहित प्रख्यात कवि आलोक धन्वा, कवि श्री राम तिवारी एवं पत्रकार अरुण नारायण शामिल थे. लोकार्पण कार्यक्रम में श्रीराम तिवारी ने कहा कि इस कविता के माध्यम से यह दिखाया गया है कि सामान्य आदमी जगन्नाथ का घोड़ा है. यह कविता सामान्य आदमी के दुख दर्द का प्रतिनिधित्व करता है. लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए आलोक धन्वा ने कहा कि रविंद्र भारती हमेशा से अच्छी कविता लिखते रहे हैं. हालांकि उन्होंने अपने जीवन में काफी दुर्घटना भी झेला है. बेहद खुशी है कि उन्होंने फिर से पुनर्लेखन की प्रक्रिया शुरू की है.
लोकार्पण समारोह में कविता संग्रह के लेखक रविंद्र भारती से पत्रकार अरुण नारायण ने लंबी बातचीत किया. सवाल के जवाब में रविंद्र भारती ने कहा “जगन्नाथ का घोड़ा कविता संग्रह मनुष्य के बाहरी नहीं भीतरी जगत को समझने और देखने की रचना प्रक्रिया है. जब उनसे पूछा गया कि कविता लिखते हुए आप 1974 के जेपी आंदोलन में जेल भी गए? इस पर रविंद्र भारती ने कहा कि “1974 के आंदोलन में कवि ने सरकार को चुनौती पेश किया था. दिनकर की कविता ‛सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ की पंक्तियां तख्ती एवं बैनरों पर हर जगह देखने को मिलती थी. उस आंदोलन में कवि प्रत्यक्ष रूप से शामिल थे. जगह जगह नुक्कड़ों पर कविता पाठ आयोजित की जाती थी. नाटक में भिखारी ठाकुर कविता में नागार्जुन एवं नेता में कर्पूरी ठाकुर ने काफी चुनौती पेश किया. कार्यक्रम में कर्पूरी ठाकुर जयप्रकाश नारायण और फणीश्वर नाथ रेणु से अपने गहरे संबंध के बारे में भी उन्होंने विस्तार से बताया.”
रेणु की रचनाओं में गांव की महक है
रेणु के गाँव से विषय पर बातचीत करते हुए गिरिन्द्रनाथ ने राजशेखर से कहा कि हम जो फिल्मों में गाना लिखते है तो हमने जिस तरह से फिल्मों में पंजाबी गाना एवं पंजाबी बोल की लोकप्रियता थी. उसी में मैंने अपने बिहार के गीतों का जो जोग्राफिया नैहर,पीहर जैसे शब्दों को हमने अपने गानों में डाला जिसमे रेणु के शब्दों का समावेश मिलता है . सत्र को आगे बढ़ाते हुए गिरिन्द्रनाथ ने कहा कि रेणु के गाँव मे जब आप जाएंगे तो अभी भी रेणु के द्वार पर वही फुंस का कुछ झलक मिलेगा अभी भी गांव में वही माहौल है अगर ढूंढेंगे. मैं भी गाँव मे रहता हूँ रेणु की रचनाओं में जो गाँव की महक मिलती है और उनके जो पात्र है उसी में जीना चाहता हूँ . गिरिन्द्रनाथ ने राजशेखर से पूछा कि क्या मुम्बई में भी रेणु के पात्र मिलते हैं. इस बात पर राजशेखर ने कहा मैं अभी भी अपने गांव के माहौल को ढूंढता हूँ और तीसरी कसम में जो भाषा है उसे ढूंढने की कोशिश करता हूँ फिल्मों में जो गांव दिखाए जाते हैं वो तो पंजाब के गांव दिखते हैं बहुत दिनों के बाद मैथिली में जो फ़िल्म बनी गामक घर उसमे रेणु के गांव की झलक मिलती है क्योंकि रेणु की रचनाओं में जिस गाँव को रेणु दिखाते हैं वैसा गाँव भी मैं ढूंढने की कोशिश करता हूँ. राजशेखर ने एक वाक्या सुनाया कि जब मैं मुंबई में था और एक फ़िल्म निर्देशक के साथ असिस्ट कर रहा था उसी दौरान उनको पता चला कि मैं लिखता हूँ उन्होंने मुझे कहा कि एक गाना लिखो और एक गीत लिखा “रंगरेज मेरे रंगरेज मेरे” इस गाने में कुछ ऐसे शब्द थे कि उसे डिरेक्टर ने सुना ही नहीं था इस पर उन्होंने कहा ये शब्द कौन सी भाषा के शब्द हैं. इस तरह कि दिक्कते आज फ़िल्म इंडस्ट्रीज में है कि उनको बहुत कुछ पता भी नहीं है. गिरिन्द्रनाथ ने कहा कि रेणु को लेकर वर्कशॉप होने चाहिए जो गांव में हो न कि शहर के बंद कमरे में रेणु की बात गाँव मे क्यों नहीं हो रही पटना दिल्ली जैसे बड़े शहरों में ही क्यों होती है. रेणु की बात रेणु के गांव के माहौल में हो जिससे गांव के लोगों को भी रेणु से परिचित हो सकें. रेणु के बहाने ही सही शहर के नई युवा पीढ़ी को गांव की महक तो मिलेगी नहीं तो गांव इसी तरह रोता रहेगा.
प्रेमचंद की रचना में भी भोजपुरी समाहित है
आज के अंतिम सत्र में भोजपुरी के कवि प्रकाश उदय और निराला बिदेशिया की बातचीत में कवि प्रकाश उदय ने कहा आम तौर पर भोजपुरी को ध्वस्त करने की बात होती है कि अन्य भाषाओं में बहुत लेखकों की चर्चा होती तो भोजपुरी के भाषा में क्यों नही थोड़ी कम भोजपुरी की रचना है तो विद्यापति ,सुर और तुलसी भी भोजपुरी के ही हैं . हिंदी कविता में भी भोजपुरी समाई है प्रेमचंद की रचना में भी भोजपुरी समाहित है आप कह सकते हैं कि हर जगह आपको भोजपुरी की झलक दिखाई पड़ती है. आज के सत्र में श्रोता के रूप में प्रो तरुण कुमार, अनीश अंकुर, अवधेश प्रीत, समता राय, चन्द्रबिंद, यशवंत मिश्रा, गौतम गुलाल आदि कई लोग मौजूद रहे.