500 और 1000 के नोटों को निरस्त करने के कारणों को स्पष्ट करने और उसके लाभ बताने के लिए
श्वेत पत्र जारी करे केंद्र सरकार -के. एन. गोविंदाचार्य
देश में कितने नकली नोट हैं ?
500 और 1000 रूपये के नोटों से नगदी के रूप में कितना काला धन बना हुआ?
सरकार शीघ्र एक श्वेतपत्र जारी करके अपना कर्त्तव्य निभाए
काले धन का अधिक से अधिक 5-7 फीसदी करेंसी क्षेत्र में खप रहा है
जनता के पैसे से बेमेल साइज के नोट छापने के लिए कौन जिम्मेदार है
8 नवंबर को शाम 8 बजे प्रधानमंत्री मोदी जी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को निरस्त करने की घोषणा करने से देश में आया भूचाल अभी थमा नहीं है. सरकार द्वारा भारी मात्रा में जारी 500 और 1000 रुपये के नोट रद्द हो जाने से अधिकांश आम जनता परेशानी में आ गयी है। बैंकों की शाखाओं और एटीएम के बाहर लगी लंबी कतारें और देश भर से आ रहीं अफवाहें इसका प्रमाण हैं. सरकार के अचानक लिए फैसले से काले धन को कमाने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने वाले व्यापारियों और अवैध धंधे वाले माफियाओं पर क्या असर पड़ेगा, या रसूख के कारण वे बच जाएंगे, यह तो भविष्य ही बता पायेगा. पर मोदीजी के झटके से आम जनता हलाल हो रही है. लोगों को रोज की जीवनोपयोगी वस्तुओं खरीदने में कठनाई हो रही है, चिकित्सा और यातायात जैसी आवश्यक सुविधाओं में परेशानी हो रही है.
आम जनता इन सब परेशानियों को सह भी लेगी जब वह इस अचानक हुए निर्णय के पीछे के कारणों को जानेगी तथा उस निर्णय से भविष्य में होने वाले लाभों से भी परिचित होगी. अतः सरकार एक श्वेत पत्र जारी करके आम जनता को बताये कि उसने इतना कठोर निर्णय अचानक क्यों लिया ? देश में कितने नकली नोट हैं ? है 500 और 1000 रूपये के नोटों से नगदी के रूप में कितना काला धन बना हुआ? इन पुराने नोटों को छापने में सरकार ने आम जनता का कितना धन व्यय किया था ? इन नोटों को वापस लेने और नए नोटों को छाप कर उन्हें बदलने में आम जनता का कितना धन सरकार व्यय करने वाली है ? आजादी के बाद देश में अब तक कितना काला धन बनने का अनुमान सरकार लगाती है ? काले धन किस-किस रूप में कितना – कितना विद्यमान है ? 500 और 1000 रूपये के नोटों को रद्द करके 500 , 1000 और 2000 के नए नोटों को छापने के पीछे क्या तुक है ?
ये कुछ प्रश्न हैं जो इस देश के सभी नागरिकों के दिमाग को मथ रहें हैं. लोकतंत्र में राज्य को जनता के प्रति उत्तरदायी माना जाता है, उसे सरकार से जानने का पूरा अधिकार रहता है. जनता में फैले संभ्रम और अफवाहों को दूर करने के लिए उपरोक्त सभी प्रश्नों और अन्य सम्बंधित प्रश्नों के तथ्यपरक जानकारी देते हुए सरकार शीघ्र एक श्वेतपत्र जारी करके अपना कर्त्तव्य निभाए.
अर्थशास्त्रियों के अनुमान के अनुसार सन 2000 में जीडीपी का 40 फीसदी हिस्सा काला धन था जो धीरे-धीरे घटता हुआ जीडीपी के 20 फीसदी तक पहुंचा. 2015 की जीडीपी 150 लाख करोड़ थी। उस हिसाब से 2015 में ही काले धन की मात्रा 30 लाख करोड़ हुई. इस हिसाब से जोड़ें तो सन 2000 से अभी तक पैदा हुआ काला धन शायद 2015 की जीडीपी से ज्यादा हो.
दूसरा पहलू ध्यान देने लायक है, रिजर्व बैंक की वेबसाइट के अनुसार 1 रुपए से 1000 रुपए तक के सारे नोटों का कुल मूल्य है 16 लाख करोड़, उसका 86 फीसदी हिस्सा 500 और 1000 के बड़े नोटों का है. अर्थात लगभग 14 लाख करोड़ के बड़े नोट चलन में हैं. इनमें सही सफेद धन भी है, टैक्स चोरी का, काला धन का भी हिस्सा है और जाली नोट का भी हिस्सा है. सरकार की ओर से इसके अनुपात के आंकड़े नहीं आए हैं।.सरकार की बड़े नोटों के चलन को खत्म करने की कार्रवाई कुल काले धन के खत्म करने के लक्ष्य का अधिक से अधिक लगभग 10 फीसदी हिस्सा ठहरेगा. भारत में अधिकांश काला धन करेंसी में न होकर सोना-चांदी, जेवरात, जमीन, बड़े मूल्य की कलाकृतियां एवं अन्य माध्यमों यथा शेयर, विदेशी बैंक आदि में खपाया गया है. कुल काले धन का अधिक से अधिक 5-7 फीसदी करेंसी क्षेत्र में खप रहा है. काले धन के खिलाफ कार्रवाई की बहुत व्यापकता होनी चाहिए.
बड़े नोटों का चलन बंद करना इस बड़ी लड़ाई का छोटा और महत्वपूर्ण हिस्सा है. देश की जनता ने बड़े धीरज से बैंक एटीएम के आगे सभी तरह की तकलीफ उठा कर भी लंबी लाइन में धीरज पूर्वक खड़े रहने का काम किया है. देश के सामान्य-जन द्वारा सीमा पर खड़े फौजियों और सरकार के द्वारा कालाधन खत्म करने की कार्रवाई के प्रति सम्मान और समर्पण व्यक्त हुआ है. जनता तो सरकार का भरपूर सहयोग कर रही है, मगर सरकार इस कार्रवाई में अनाड़ी और अक्षम सिद्ध हुई है. जहां जनता आतंकवादी गतिविधियों और जाली नोट कारोबारियों और नशे के कारोबारियों के खिलाफ सरकार के समर्थन में धीरज रख रही हैं. वहीं यह समझ में नहीं आ रहा है, कि जिन बड़े नोटों का उपयोग रोकने के लिए सरकार ने इतनी बड़ी कार्रवाई की तो उससे भी बड़ी मुद्रा, 2000 का नोट सरकार क्यों जारी कर रही है. इतनी बड़ी राशि का नोट बिल्कुल जारी नहीं करना चाहिए था. सरकार को 100 रुपए के नोटों की भरपूर संख्या का इंतजाम करना चाहिए था. आज एटीएम से 2000 के नोट गलत साइज के कारण नहीं निकल पा रहे हैं. तो जनता के पैसे से बेमेल साइज के नोट छापने के लिए कौन जिम्मेदार है, वित्तमंत्री या रिजर्व बैंक? इसका खुलासा सरकार करे.
जब सरकार का आग्रह है कि देश की अर्थव्यवस्था को बैंक, क्रेडिट, डेबिट कार्ड और डिजिटल ऑनलाइन उपकरणों का इस्तेमाल बढ़े तब तो 2000 के बड़े नोटों का प्रयोग और भी अनावश्यक और तर्क से परे है. अमेरिका जैसे देश में भी जहां का जीडीपी भारत से कई गुना ज्यादा है, 100 डॉलर से बड़े नोट नहीं है. जनता को हो रही विगत सप्ताह की परेशानी सरकार चला रहे लोगों के यथार्थ से अनभिज्ञ रहने, जमीनी जरूरतों के प्रति संवेदनहीन होने का परिचायक है. बड़े कर चोरों लगाम कसने के लिए ज्यादा जरूरी था कि विदेशी बैंकों की कार्यशैली पर आवश्यक कानूनी प्रावधान किए जाते.
पार्टीसिपेटरी नोट्स सरीखी व्यवस्थाओं पर रोक लगती. उसी प्रकार सरकार के कालेधन के मुद्दे पर गंभीरता जताने के लिए यह भी जरूरी था कि उच्च न्यायालय में सरकार द्वारा जमा किए गए 1000 से ज्यादा नामों को सार्वजनिक करे जिनके खाते विदेशों में है. उसी प्रकार सरकार इस मुहिम के प्रति गंभीरता दिखाने के लिए एनपीए पर कड़ी कार्रवाई की होती.
सरकार को अभी भी चाहिए कि वे वरिष्ठ नागरिकों, बीमार, अपाहिज, गृहिणियों और घरेलू कामकाजों में लगे लोगों के लिए बैंकों और एटीएम के पास विशेष सुविधापूर्ण व्यवस्था एवं प्रावधान करें उसी प्रकार सरकार को चाहिए कि पेट्रोल पंप, अस्पताल सरीखे राशन की दुकानों पर भी सभी नागरिकों के लिए पुराने नोट पर राशन खरीद पाने का प्रावधान करे. उसी प्रकार दवाई की दुकानों पर पुराने नोट का प्रयोग मना करने पर कड़ी कार्रवाई करे. सरकारी कार्यालयों बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों एवं आवासीय इलाकों में चल (मोबाइल) एटीएम व्यवस्था का विस्तार करे जिससे जन-साधारण की तकलीफ कम हो.