आज की सबसे बड़ी खबर पटना हाई कोर्ट से है. हाईकोर्ट ने आरक्षित सीटों पर चुनाव नहीं कराने का आदेश जारी किया है. हाईकोर्ट ने कहा कि बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं माना जिसकी वजह से आरक्षित सीटों पर चुनाव कराने की इजाजत नहीं दी जा सकती. पटना हाईकोर्ट ने बिहार निर्वाचन आयोग पर भी सवाल खड़े किए हैं.
स्थानीय निकाय के चुनाव में अब ओबीसी और ईबीसी पदों के आरक्षण नहीं होने पर इन्हें सामान्य सीट के रूप मे अधिसूचित कर चुनाव कराए जाएंगे. चीफ जस्टिस संजय करोल एवं संजय कुमार की खंडपीठ ने सुनील कुमार व अन्य की याचिकाओं पर सभी पक्षों को सुनने के बाद 29 सितम्बर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया. दरअसल बिहार में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं मानने की वजह से हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश जारी किया है. दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़े जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि SC/ST/EBC के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों के 50% की सीमा को नहीं पार करे.
जदयू ने केंद्र सरकार को ठहराया जिम्मेदार
जदयू नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने इसके लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा कि जदयू जल्द ही केन्द्र सरकार और भाजपा की साज़िश के खिलाफ आंदोलन करेगा.
कुशवाहा के बयान पर भाजपा ने सरकार पर बोला हमला
हाईकोर्ट के आदेश के बाद पहले उपेंद्र कुशवाहा ने केंद्र सरकार पर हमला बोला जिसके जवाब में भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि बिहार सरकार बिना तैयारी के कोर्ट कैसे चली गई. भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा कि बिना तैयारी के चुनाव प्रक्रिया शुरू ही क्यों की गई.
कोर्ट के इस आदेश के बाद 10 अक्टूबर को होने वाला पहला चरण का चुनाव टल सकता है.
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