जब हिंदी ही जहाँ जर्जर हो तो सरकारी इमारतें कैसे होंगी मजबूत ?

हिंदी की अशुद्धि पर आसित मिश्रा का व्यंग्यात्मक प्रहार

पटना,6 सितंबर. आसित कुमार मिश्रा बलिया के रहने वाले एक शिक्षक हैं और हिंदी के एक जाने माने नाम हैं. व्यंग्य और समसामयिक विषयों पर शब्दो के रचनात्मक प्रहार से सामने वाले को ऐसा चोटिल करते हैं कि फिर वह लड़ना तो दूर बोलने के काबिल नही रह जाता और कई महीने तक मुँह छुपाते फिरते हैं. सोशल मीडिया पर इनकी लेखनी के लोग मुरीद हैं और इनके वाल पर लोग इन्हें पढ़ने के लिए विजिट ही नही करते बल्कि इनसे लिखने की डिमांड करते हैं. मंगलवार को काफी समय बाद उन्होंने एक पोस्ट आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के नाम पर बने इमारत को लेकर किया. इमारत की जर्जर हालत और उनके जैसे विद्वान के नाम पर बने बनी इमारत पर हिंदी के कार्यान्वयन शब्द की अशुद्दि पर जो लिखा हम उसे ज्यों का त्यों परोष रहे हैं..




कहते हैं शांतिनिकेतन में एक दिन प्रातः काल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी स्नान के बाद धूप का आनन्द ले रहे थे।
अचानक सामने से गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर आते दिखे।
सम्मान में हजारीप्रसाद द्विवेदी खड़े होकर नीचे पहनी हुई धोती से ऊपर की नग्न देह ढँकने लगे।
गुरुदेव को मौका मिला उन्होंने परिहास करते हुए कहा – “बैठो द्विवेदी बैठो! इस देश में संस्कृत पढ़े हुए युवक और अंगरेज़ी पढ़ी हुई युवती को अर्द्धनग्न रहने का अधिकार है”।
पता नहीं आगे द्विवेदी जी ने अपने शरीर को ढँकने की चेष्टा की या नहीं।मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश के उसी बलिया जिले (जहाँ के हजारीप्रसाद द्विवेदी जी थे) के प्लेटफार्म संख्या चार पर अवस्थित हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के नाम पर बने इस अर्द्धनग्न इमारत को 7गजगजTढ़ँकने का काम स्वयं प्रकृति ने संभाल लिया है। कुछ दिनों बाद गुरुदेव के उस परिहास का प्रतिउत्तर स्वयं प्रकृति दे ही देगी। लेकिन तब भी शायद इस सवाल का जवाब नहीं मिल सकेगा कि – यहाँ बोर्ड पर लिखा कार्यावन्यन शुद्ध है कि कार्यान्वयन?

साभार : आसित कुमार मिश्र,बलियों

Related Post