नई नस्ल को मालूम नहीं है कि आज़ादी की क्या कीमत चुकानी पड़ी
मुखर्जी की शॉर्ट फिल्म “द अनओन्ड हाउस” को तीन लाख रुपये का प्रथम पुरस्कार
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के आयोजनों की कड़ी में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा आयोजित दो दिवसीय फिल्म स्क्रीनिंग का उद्घाटन हैदराबाद स्थित मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी के ऑडिटोरियम में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने किया. इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा बंटवारे के विषय पर आधारित डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्मों की प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरस्कार प्रदान किए गए.
“चाणक्य” जैसे अत्यंत लोकप्रिय टीवी धारावाहिक और विभाजन की पृष्ठभूमि पर “पिंजर” जैसी बेदद संवेदनशील फिल्म बनाने वाले चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि बंटवारे के समय हुई भयानक हिंसा में 10 लाख लोग मारे गए और लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा. देश की आजादी की हमें ये कीमत भी चुकानी पड़ी. लेकिन विभाजन के इन लाखों पीडितों को हमने कभी याद नहीं किया. 75 साल बाद देश के एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन लाखों लोगों की पीड़ा को समझा और विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का फैसला किया. ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थितयां फिर कभी उत्पन्न न हो, इसलिए 14-15 अगस्त को याद रखा जाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि विभाजन पर बनी उनकी फिल्म “पिंजर” को भी लोगों ने हिंदू मुसलमान की दृष्टि से देखा. इससे पता चलता है कि 1947 में एक बंटवारा तो हो गया, लेकिन दिलों का बंटवारा अभी भी खत्म नहीं हुआ है. मनों में बंटवारा नहीं होना चाहिए. इसलिए विभाजन की उस विभीषिका को याद करना जरूरी है.
इस आयोजन के अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी के कार्यकारी कुलपति प्रो. सिद्दीकी मोहम्मद महमूद ने कहा, नई नस्ल को मालूम नहीं है कि आज़ादी की क्या कीमत चुकानी पड़ी है. ये उनको पता होना चाहिए. दूसरी बात यह कि जब लोगों पर जुनून सवार था एक दूसरे को मारने का, उस समय भी लोग थे, जिन्होंने लोगों की मदद की. उन लोगों को इतिहास के पन्नों से निकाल कर देखने की जरूरत है.
इस कार्यक्रम में बंटवारे के विषय पर आधारित डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्मों की प्रतियोगिता में कल्लोल मुखर्जी की शॉर्ट फिल्म “द अनओन्ड हाउस” को तीन लाख रुपये का प्रथम पुरस्कार, संजय और अरविंद की डॉक्यूमेंट्री फिल्म “झूठा सच” को दो लाख रुपये का द्वितीय पुरस्कार और आकाश मिश्रा की शॉर्ट फिल्म “असमर्थ” को एक लाख रुपये का तीसरा पुरस्कार दिया गया. इसके अलावा, दिव्या और शिल्पी की फिल्म “डेरे तूं दिल्ली”, विकास पांचाल की “विभाजन विभीषिका”, हितेश दुआ की “फेडेड मेमोरी” और प्रिंस प्रसाद की फिल्म “घर” को भी सम्मानित किया गया.
कार्यक्रम के प्रारम्भ में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के जनपद सम्पदा विभाग के प्रमुख डॉ. के. अनिल कुमार ने अतिथियों और आगंतुकों का स्वागत करते हुए विभाजन के दुष्प्रभावों के बारे में बताया. कार्यक्रम में विभाजन के पीड़ितों की स्मृति में दो मिनट का मौन भी रखा गया. अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मीडिया नियंत्रक श्री अनुराग पुनेठा ने कहा कि आंखें बंद कर लेने से सच्चाई खत्म नहीं हो जाती. जो समाज या देश अपने इतिहास से सबक नहीं लेता, वह बार-बार विभीषिकाओं को झेलने के लिए अभिशप्त होता है. उन्होंने डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्मों की प्रतियोगिता के लिए अपनी फिल्में भेजने वाले युवा फिल्मकारों की सराहना करते हुए कहा कि सबने बहुत कम समय की सूचना पर अपनी फिल्में भेज कर कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया. कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ.
गौरतलब है कि विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के कार्यक्रमों की कड़ी में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने देश के चार शहरों- दिल्ली (12-13 अगस्त), कोलकाता (20-21 अगस्त), हैदराबाद (28-29 अगस्त) और अमृतसर (4-5 सितंबर) में विभाजन पर केंद्रित फिल्मों की स्क्रीनिंग का आयोजन किया है. इसके अलावा, संसद भवन परिसर सहित देश के कई हिस्सों विभाजन की विभीषिका पर केंद्रित एक प्रदर्शनी और परिचर्चाओं का आयोजन भी किया.
देश का बंटवारा एक ऐसी त्रासदी है, जिसे शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता. यह दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में से एक है. इसमें लाखों लोग मारे गए, करोड़ों बेघर हो गए. विभाजन का दंश झेलने वाले उन लाखों परिवारों की पीड़ा हमारी स्मृतियों से ओझल न हो, इसलिए प्रधानमंत्री ने “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस” मनाने का अह्वान पिछले साल किया था.
हैदराबाद ,संवाददाता