पखावज सम्राट बाबू ललन जी को पद्मविभूषण सम्मान की उठी अनुगूंज
आरा,28 जुलाई. भोजपुर की धरती सदियों से उर्वर रही है. यहाँ के संगीतज्ञों ने देश के कोने-कोने में अपनी खास सांगीतिक माधुर्य की वजह से अपनी छाप छोड़ी है. लेकिन संगीत के समृद्ध विरासत को देने वालों की आजतक किसी सरकार ने सुध नही ली. संगीत के ऐसे विशारद पखावज सम्राट संगीत शिरोमणि शत्रुंजय प्रसाद सिंह की 121वीं जयंती बुधवार को आरा में मनाई गई. जहाँ उनके सम्मान में पद्मविभूषण की माँग उठाई गई.
बाबू ललन जी के नाम से विख्यात पखावज सम्राट संगीत शिरोमणि शत्रुंजय प्रसाद सिंह की 121वीं जयंती का आयोजन भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान के तत्वाधान में स्थानीय बस स्टैंड स्थित मंच पर किया गया. इस अवसर पर बाबू ललन जी की प्रतिमा पर कलाकारों ने माल्यार्पण किया. कार्यक्रम में युवा तबला वादक अमन पांडेय ने स्वतंत्र तबला वादन में उठान, गत कायदा, टुकड़ा, परण, बाँट व लरी सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. वही युवा गायक रोहित कुमार ने भैरवी की ठुमरी बाजूबंद खुली-खुली जाय सांवरिया ने जादू डाला, कजरी सजनी छाई घटा घनघोर व दादरा सखियाँ गावे कजरिया झूम-झूम को प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. सांगीतिक प्रस्तुति युवा कथक नर्तक राजा कुमार के कथक प्रस्तुति के साथ संपन्न हुई. राजा ने गणेश वंदना से प्रारंभ करते हुए पारंपरिक कथक में उपज, उठान, टुकड़ा, परण व कथानक मारीच-वध प्रस्तुत कर शास्त्रीय नृत्य कला से उपस्थित लोगों को इसके जादू में बांध दिया.
शास्त्रीय संगीत में बाबू ललन जी के योगदान विषय पर परिचर्चा में कमलाक्ष नारायण सिंह ने विषय प्रवेश करवाते हुए कहा कि संगीतज्ञ की कीर्ति कभी मिटती नही है. भोजपुर के जनपद ने बाबू ललन जी की संगीत परंपरा को कायम रखा है. मुख्य वक्ता कथक गुरु बक्शी विकास ने कहा कि सरकार ने बाबू ललन जी के बाद की पीढी को उच्च स्तरीय सम्मान से नवाजा है किंतु बाबू ललन जी को उपेक्षित रखना दुखद है. सरकार को मरणोपरांत बाबू ललन जी के लिए पद्मविभूषण सम्मान की अविलंब घोषणा करनी चाहिए. आरा का नाम शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षितिज पर अंकित करने का श्रेय बाबू ललन जी का है. बतौर संगीत द्वारक व अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन के आयोजक बाबू ललन जी की भूमिका से सभी परिचित हैं किंतु बाबू ललन जी की कलात्मकता के ऊपर वर्तमान मौन है. इस चुप्पी को तोड़ते हुए आरा के संगीतज्ञो को बाबू साहब की रचनाओ का एक संग्रह आने वाली पीढी के लिए तैयार करने की आवश्यकता है.
परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए पत्रकार नरेंद्र सिंह ने कहा कि संगीत को सभ्य सामाज से जोड़ने के लिए बाबू साहब समर्पित रहे. बाबू ललन जी की स्मृति में एक संगीत महाविद्यालय की स्थापना का प्रयास होना चाहिए जिससे बाबू साहब की संगीत परंपरा का विकास हो सके. संचालन करते हुए रंगकर्मी सह पत्रकार अरुण प्रसाद ने कहा कि आज की पीढी को प्राचीन संगीतज्ञो की परंपरा से अवगत करवाना हमारा दायित्व है. बाबू ललन जी का जीवन शास्त्रीय संगीत में समर्पित रहा है. बाबू साहब की कीर्ति सामाज में उजागर करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी. पत्रकार की अमरेश कुमार सिंह ने कहा कि जमीरा कोठी भोजपुर के जनपद के लिए ऐतिहासिक धरोहर है जहाँ शास्त्रीय संगीत के शीर्ष के कलाकारों ने वर्षों संगीत साधना की है. बाबू साहब का यह प्रयास अद्वितीय है. बिहार की सांगीतिक पृष्ठभूमि को समृद्ध करने में बाबू ललन की की भूमिका महत्वपूर्ण है. मंच संचालन अरुण प्रसाद व धन्यवाद ज्ञापन नरेंद्र सिंह ने किया. इस अवसर पर अजीत पांडेय, श्रेया पांडेय, स्नेहा पांडेय, जय किशोर रविशंकर व तबला वादक आचार्य चंदन कुमार ठाकुर समेत कई संगीत रसिक उपस्थित थे.
देखना यह होगा कि सैकड़ों वर्षों से उपेक्षित बाबू साहब के लिए जिलेवासी की यह माँग सरकार कब मानती है या यूं ही माँगो की गूँज को सुनने के बाद सरकार कान में तेल डाल सोती ही रहती है.
आरा से ओ पी पांडेय की रिपोर्ट