एंटी हेट स्पीच कानून बनाने की तैयारी में सरकार
हेट स्पीच की तय होगी परिभाषा
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां होंगी कानून का आधार
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता खुलेगा
केंद्र सरकार ने 5 साल के लंबे परामर्श के बाद सोशल मीडिया पर नफरती कंटेंट रोकने के लिए एंटी हेटस्पीच कानून बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. हेटस्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों, अन्य देशों के कानूनों और अभिव्यक्ति की आजादी के तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कानून का ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है. इसे जल्द ही सार्वजनिक राय के लिए पेश किया जाएगा. इसमें हेटस्पीच की परिभाषा स्पष्ट होगी, ताकि लोगों को भी यह पता रहे कि जो बात वे बोल या लिख रहे हैं, वह कानून के दायरे में आती है या नहीं.
सरकार ने प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारतीय संघ जैसे कुछ अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को इस ड्राफ्ट का आधार बनाया है. विधि आयोग ने हेटस्पीच पर अपने परामर्श पत्र में साफ किया है कि यह जरूरी नहीं कि सिर्फ हिंसा फैलाने वाली स्पीच को हेटस्पीच माना जाए. इंटरनेट पर पहचान छिपाकर झूठ और आक्रामक विचार आसानी से फैलाए जा रहे हैं. ऐसे में भेदभाव बढ़ाने वाली भाषा को भी हेटस्पीच के दायरे में रखा जाना चाहिए.
हेट स्पीच की परिभाषा साफ होने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूजर्स द्वारा फैलाई गईं फेक न्यूज या नफरत भरी बातों से पल्ला नहीं झाड़ सकेंगे. देश में सबसे ज्यादा भ्रामक जानकारियां फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सएप, कू जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए फैलाई जाती हैं. अब इनके खिलाफ सख्त कानून बनने से कानूनी कार्रवाई का रास्ता खुल जाएगा. दूसरी ओर, देश में फ्री स्पीच के पैरोकार वर्ग को यह भी लगता है कि एंटी हेटस्पीच कानून को इस्तेमाल लोगों या समूहों की आवाज दबाने के लिए भी हो सकता है. देश में हेटस्पीच से निपटने के लिए 7 तरह के कानून इस्तेमाल किया जाते हैं, लेकिन इनमें से किसी में भी हेटस्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है. इसीलिए, सोशल मीडिया प्लेटफार्म अपने यूजर्स को मनमानी भाषा बोलने से नहीं रोक रहे हैं.
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