गर्मी की छुट्टियों के खत्म होने के बाद स्कूली बच्चों को दी जाएगी टीडी की वैक्सीन : डीआईओ
- जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी व आरबीएसके के डीसी ने प्रखंड स्तर के कर्मियों के साथ की वर्चुअल बैठक
आरबीएसके की टीम, एएनएम और फार्मासिस्ट को दिया गया प्रशिक्षण - बक्सर, 23 मई. जिले में नियमित टीकाकरण को बढ़ावा देने की दिशा में किशोर-किशोरियों को भी शामिल किया गया है. अब स्वास्थ्य विभाग ने बक्सर जिला समेत पूरे राज्य के 10 से 16 वर्ष के किशोर किशोरियों को टीडी वैक्सीन की देने का निर्णय लिया है. जिसको लेकर सोमवार को जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी व आरबीएसके के जिला समन्वयक ने प्रखंड स्तर के कर्मियों के साथ वर्चुअल बैठक की. जिसमें उन्होंने वैक्सीन देने की प्रक्रिया और अन्य मुद्दों पर बारीकियों से अवगत कराया. इस क्रम में जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया, अब सरकारी स्कूलों में गर्मियों की छुट्टी हो रही है. इसलिए अब टीडी वैक्सीन देने के लिए गर्मियों की छुट्टी खत्म होने के बाद अभियान चलाया जायेगा ताकि, एक भी लाभुक वैक्सीन लेने से छूटे. उन्होंने कहा, विभागीय निर्देशानुसार फील्ड विजिट के लिए टीम में तीन लोगों का रहना अनिवार्य है. जहां जहां पर एएनएम नहीं हैं, वहां पर सिविल सर्जन से बात कर एएनएम प्रतिनियुक्त किया जायेगा. डीआईओ ने बताया, टीडी वैक्सीन की एक वाइल में 10 बच्चों को डोज देनी है. हर बच्चे को 0.5 एमएल ही डोज के रूप में देनी है. हालांकि, कोविड वैक्सीन की तरह इसका इस्तेमाल नहीं होता है। टीडी वैक्सीन की वाइल को 28 दिनों तक इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही, वैक्सीन वाइल मॉनिटर के माध्यम से वाइल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
टेटनस व डिप्थेरिया दोनों ही हैं संक्रामक रोग :
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी ने बताया, 10 से 16 वर्ष तक के बच्चे ज्यादा खेलकूद करते हैं. जिसके कारण कटने और खरोच लगने की संभावना रहती है. बच्चों के किसी घाव या चोट में संक्रमण होने पर टेटनस हो सकता है. उन्होंने बताया, टेटनस एक संक्रामक बीमारी है, जो बैक्टीरियम क्लोस्ट्रेडियम टेटानी नामक बैक्टीरिया से होता है. जिसके कारण उच्च रक्तचाप, तंत्रिका तंत्र का ठीक से काम नहीं करना, मांसपेशियों में ऐंठन, गर्दन व जबड़े में अकड़न, पीठ का धनुषाकार होना इसके लक्षण हैं. चिकित्सा के बावजूद मृत्यु दर काफी उच्च है. इसे गलाघोंटू के नाम से भी जाना जाता है. सांस लेने में दिक्कत, गर्दन में सूजन, बुखार एवं खांसी इसके शुरुआती लक्षण होते हैं. वहीं, डिप्थेरिया संक्रमण के कारण गले में परेशानी बढ़ जाती है, जिसके बाद रोगी को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है। इसके अलावा गर्दन में सूजन, बुखार व खांसी रहता है। ये दोनों ही संक्रामक रोग है। जिसके से बचाव के लिए टीडी वैक्सीनेशन किया जाता है।
आरबीएसके की टीम टीकाकरण में करेगी सहयोग :
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के जिला समन्वयक डॉ. विकास कुमार ने बताया, विभागीय निर्देश के अनुसार टीडी वैक्सीन अभियान में आरबीएसके की टीम सहयोग करेगी। हालांकि, आरबीएसके के तहत सभी विद्यालयों में बच्चों के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। इसी स्वास्थ्य जांच के क्रम में ही बच्चों को टीडी की वैक्सीन लगायी जानी है। इसमें आरबीएसके टीम की भूमिका महत्वपूर्ण है। टीडी वैक्सीनेशन को लेकर पीएचसी स्तर से आरबीएसके टीम को हर जरूरी मदद उपलब्ध कराया जायेगा। विद्यालयों में टीकाकरण के बाद इसका दैनिक प्रतिवेदन संबंधित पीएचसी को उपलब्ध कराया जायेगा। टीडी वैक्सीनेशन के लिए संबंधित कर्मियों को जरूरी प्रशिक्षण दिया जायेगा। साथ ही, आरबीएसके टीम में कार्यरत चिकित्सक यह सुनिश्चित करेंगे कि विद्यालयों के लिए निर्धारित कार्ययोजना में टीडी टीकाकरण समाहित हो। सबसे जरूरी बात यह है कि प्रखंड के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि आरबीएसके टीम के पास पर्याप्त मात्रा में इंजेक्शन उपलब्ध हो तथा टीका लगाने के लिए एएनएम का सहयोग लिया जायेगा।
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