फ्लाइ ऐश के अधिकतम इस्तेमाल पर सरकार का जोर, निर्बाध आपूर्ति अब भी बड़ा चैलेंज

थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले फ्लाई ऐश के अधिकतम इस्तेमाल को लेकर सरकार ने सभी संबंधित लोगों से अपील की है क्योंकि इसका सीधा संबंध कार्बन उत्सर्जन में कमी से भी है. पटना में फ्लाई ऐश के इस्तेमाल को लेकर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा एक महत्वपूर्ण वर्कशॉप का आयोजन हुआ जिसमें बिहार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के अलावा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तमाम अधिकारी और डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के एक्सपर्ट भी शामिल थे.

कार्यशाला के मुख्य अतिथि नीरज कुमार सिंह, मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन, बिहार सरकार ने अपने सम्बोधन में बताया कि राज्य के पर्यावरण संरक्षण हेतु उपजाऊ उपरी- मृदा (Fertile Top Soil) के संरक्षण एवं फ्लाई-ऐश ईंट के संबंध में फ्लाई-ऐश ईंट निर्मात्ता संघ के साथ उनकी कई बैठकें हो चुकी हैं.




उन्होंने बताया कि राज्य में फ्लाई-ऐश ईंट निर्माण को प्रोत्साहित करने के इस संबंध में केन्द्रीय उर्जा मंत्री के साथ चर्चा भी की गयी है कि एन.टी.पी.सी. द्वारा फ्लाई-ऐश को भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुरूप उपलब्ध कराये जाने के संबंध में कार्रवाई की जाय, जिससे फ्लाई-ऐश इकाईयों को यह सुगमता से उपलब्ध हो सके.

उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण हेतु जिस प्रकार राज्य में पेड़ों को बचाने के लिए नई आरा मिलों की स्थापना को पूरी तरह से बंद करा दिया गया है, उसी प्रकार उपजाऊ उपरी – मृदा के संरक्षण हेतु राज्य में नये ईंट-भट्ठों की स्थापना को सहमति प्रदान नहीं करने पर विचार किया जायेगा. इसके साथ ही उनकी संख्या को भी नियंत्रित किये जाने पर विचार किया जायेगा. एक भट्ठे से दूसरे भट्ठे की तय की गयी दूरी हेतु निर्धारित दिशा-निर्देश को पूरी तरह से पालन कराया जायेगा.

कार्यशाला के बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष

(प्रो.) अशोक कुमार घोष ने कहा कि पहले थर्मल पावर प्लांटों से उत्सर्जित फ्लाई-ऐश का भंडारण एक समस्या थी. लेकिन, आज यह उत्पाद के कच्चे माल के रूप में जाना जाता है. राज्य में जनित फ्लाई-ऐश के शत-प्रतिशत उपयोग करने पर केन्द्रित यह कार्यशाला राज्य को कार्बन-न्यूट्रल राज्य बनाने में काफी मायने रखता है.

डॉ. सौमेन मैती, उपाध्यक्ष, डेवलपमेन्ट अल्टरनेटिव्स, नई दिल्ली ने कार्यशाला में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों एवं प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि एक अनुमान के मुताबिक राज्य में करीब 7500 ईंट निर्माण इकाईयाँ स्थापित हैं. ऐसी ईंट निर्माण इकाईयाँ का परिवेशीय वायुमंडल में कार्बन-डॉयऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में परिवहन क्षेत्र तथा थर्मल पावर प्लांट के बाद तीसरा स्थान है. डॉ. मैती ने बताया कि राज्य में फ्लाई-ऐश आधारित करीब 500 इकाईयाँ स्थापित हैं. यदि राज्य के थर्मल पावर प्लांटों के उत्सर्जित फ्लाई-ऐश तथा ऐश पॉड का ऐश भी मिल जाय तो वर्त्तमान में स्थापित इकाईयों के अतिरिक्त करीब 2000 नई इकाइयाँ स्थापित हो सकती हैं.

डॉ. मैती ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य में नई लाल ईंट निर्माण इकाईयों की स्थापना हेतु एन.ओ.सी. नहीं जारी किया जाय. उन्होंने यह भी सूचित किया कि थर्मल पावर प्लांटों द्वारा फ्लाई-ऐश ईंट निर्माण इकाईयों को किसी न किसी कारण से फ्लाई ऐश की शत-प्रतिशत आपूर्ति नहीं हो पा रही है.

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्त्तन विभाग के प्रधान सचिव अरविन्द कुमार चौधरी ने कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए बताया कि आज भले ही हम उपरी- मृदा के संरक्षण को अहमियत न देते हों, परन्तु यह सत्य है कि इसके निर्माण में वर्षों लग जाते हैं. वैसे किसान जो कृषि उत्पाद बढ़ाने हेतु रासायनिक खादों का काफी इस्तेमाल करते हैं, इस तथ्य को जान चुके हैं. फ्लाई-ऐश से बनी ईंटों का उपयोग करने वाले उपभोक्ता अब जानने लगे हैं कि लाल ईंटों की तुलना में इसकी गुणवत्ता अच्छी है.

उन्होंने कहा कि यदि फ्लाई-ऐश निर्मित ईंटों की उपलब्धता पर्याप्त हो तो नई लाल ईंट निर्माण इकाईयों को एन.ओ.सी. नहीं दिये जाने के संबंध में संबंधित विभागों से चर्चा की जा सकती है. राज्य संपोषित निर्माण कार्यों में फ्लाई-ऐश ईंटों से निर्माण कार्य किया जाना संबंधित ठेकेदारों (Contractors) के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए, इसके लिए भी संबंधित विभागों से चर्चा की जायेगी.

उद्घाटन सत्र के समापन पर बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद् के सदस्य – सचिव एस. चन्द्रशेखर भा.व.से. द्वारा सभी गणमान्य अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया गया.

pncb

By dnv md

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