क्या हो रहा है बिहार में …बिहार झारखंड को बहुत करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा ने कुछ तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. कैसे शोध के नाम पर यूजीसी के मार्फ़त लूट का नमूना
…तब मैं रांची में न्यूज ११ में था.२४ मार्च को मेरे एक दोस्त ने मुझे निमंत्रण दिया कि २८ मार्च, यानी चार दिन बाद एक सेमिनार है, उसमे एक रिसर्च पेपर पेश कर दो.मैंने कहा,तीन दिन में रिसर्च पेपर कैसे तैयार होगा? पहले क्यों नहीं बताया?और निमंत्रण पत्र में तो पेपर जमा करने की आखरी तारीख १० मार्च लिखी है.
दोस्त ने कहा, अरे कुछ भी पढ़ देना लास्ट डेट की चिंता मत करो. इसके लिए यूनिवर्सिटी से पैसा परसों ही तो आया है और जल्दबाजी में कार्ड छप कर कल आया है,सब बैक डेट में करना है. यूनिवर्सिटी में यूजीसी से पचास लाख रूपए सेमिनारों के लिए अक्तूबर में ही आ गया था लेकिन कमीशन के फेर में इसके अफसर फंड दबा कर बैठे रहे. अब ३१ मार्च तक इसे खर्च करना ही है सो सभी डिपार्टमेंट को पैसा भेज दिया कि इसे ३१ मार्च के पहले खर्च कर दो. – सबका हिस्सा फिक्स है, इसलिए खर्च दिखा देना है. अब मैंने भी अपना एक पुराना रिसर्च पेपर झाड पोछ कर निकाला, उसे पेश कर दिया. किसी ने न सुना, न पढ़ा. चाय पानी भोजन वगैरह हुआ. शोध सेमिनार संपन्न. इतिश्री पचास लाख गडाप.
और ये हाल सिर्फ रांची का नही है. मेरा बेटा दिल्ली यूनिवर्सिटी के देशबंधु कालेज से बी काम आनर्स कर रहा था. उसने बताया कि कई टीचर्स कभी क्लास नही लेते और उन्होंने साफ कह दिया है कि अगर किसी ने शिकायत की तो उसके मार्क्स कट कर उसे फेल करा देंगे. बाकी अटेंडेंस सबकी बन जाती है. जिसे पढ़ना है वह खुद पढ़े या कोचिंग ले. टीचर्स अपना ए पी आइ सुधारने, सेमिनार, रिसर्च प्रोजेक्ट, किताब लिखने, तेल मालिश करने जैसे कामों में बीजी रहने को बाध्य हैं क्योंकि प्रोमोशन के लिए यही देखा जाता है, ये नहीं कि आपने कितना पढ़ाया, कितना बढिया पढ़ाया, बच्चों को सिर्फ नम्बर से मतलब है, वो उन्हें आप बढ़िया से देते जाइये.
रत्नेश आनंद जी और अखौरी बिजय जी ने उच्च शिक्षा का जो हांल लिखा है, उस पर अगर अभिभावक और छात्र नही चेते, तो पूरी शिक्षा व्यवस्था दीमक ग्रस्त है. बस ढहने का इन्तजार कीजिये. और इंतजार कीजिये रिटर्न ऑफ़ डार्कनेस का.